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यहां की नाज़नीनो में पली हसरत नहीं अच्छी ।
जहाँ मतलब परस्ती हो वहाँ उल्फत नहीं अच्छी ।।
बड़ा खतरा मुहबत से ये हिंदुस्तान है यारों ।
हसीनों के चमन में अब कोई ग़फ़लत नहीं अच्छी ।।
हुए बरबाद हम तेरी निगाहों की शरारत से ।
मेरी बर्बादियों पर फिर तेरी रहमत नहीं अच्छी ।।
गुजर जातीं हैं ये रातें कई मजबूरियां लेकर ।
सनम से लोग कहते हैं मेरी सोहबत नहीं अच्छी ।।
बड़ी कमसिन अदाएं हैं नज़र को फेरना मुश्किल ।
है मौसम आशिकाना भी मगर किस्मत नहीं अच्छी ।।
बड़े जालिम इरादे हैं ये कातिल हुस्न वाले हैं ।
इन्हें सर पर चढ़ाने की नई आदत नहीं अच्छी ।।
ज़रूरत पर जो दौलत काम आने से मुकर जाए ।
हिफ़ाज़त में रखी ऐसी कोई दौलत नहीं अच्छी ।।
बनावट का तबस्सुम हो दिलों में खार हो जिंदा ।
मियां!मक़सद के चाहत में हुई खिदमत नहीं अच्छी ।।
सुकूँ गर चाहिए तो सिर्फ बेगम की खुशामद कर ।
किसी से इश्क कर लाई गई आफ़त नहीं अच्छी ।।
कहा तू मान ले मेरा या फिर कोई तरीका दे ।
ग़ज़ल के वास्ते हमसे तेरी हुज़्ज़त नही अच्छी ।।
अगर मंजूर तुझको है तो मेरा हक़ मुझे दे दे ।
कभी खैरात में बटती कोई इज्जत नहीं अच्छी ।।
हमारे पास जो भी था तुम्हारे वास्ते ही था।
लगी अपनों की जेबों पर तेरी हिकमत नहीं अच्छी ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
यहां की नाज़नीनो में पली हसरत नहीं अच्छी ।
जहाँ मतलब परस्ती हो वहाँ उल्फत नहीं अच्छी ।।
बड़ा खतरा मुहबत से ये हिंदुस्तान है यारों ।
हसीनों के चमन में अब कोई ग़फ़लत नहीं अच्छी ।।
हुए बरबाद हम तेरी निगाहों की शरारत से ।
मेरी बर्बादियों पर फिर तेरी रहमत नहीं अच्छी ।।
गुजर जातीं हैं ये रातें कई मजबूरियां लेकर ।
सनम से लोग कहते हैं मेरी सोहबत नहीं अच्छी ।।
बड़ी कमसिन अदाएं हैं नज़र को फेरना मुश्किल ।
है मौसम आशिकाना भी मगर किस्मत नहीं अच्छी ।।
बड़े जालिम इरादे हैं ये कातिल हुस्न वाले हैं ।
इन्हें सर पर चढ़ाने की नई आदत नहीं अच्छी ।।
ज़रूरत पर जो दौलत काम आने से मुकर जाए ।
हिफ़ाज़त में रखी ऐसी कोई दौलत नहीं अच्छी ।।
बनावट का तबस्सुम हो दिलों में खार हो जिंदा ।
मियां!मक़सद के चाहत में हुई खिदमत नहीं अच्छी ।।
सुकूँ गर चाहिए तो सिर्फ बेगम की खुशामद कर ।
किसी से इश्क कर लाई गई आफ़त नहीं अच्छी ।।
कहा तू मान ले मेरा या फिर कोई तरीका दे ।
ग़ज़ल के वास्ते हमसे तेरी हुज़्ज़त नही अच्छी ।।
अगर मंजूर तुझको है तो मेरा हक़ मुझे दे दे ।
कभी खैरात में बटती कोई इज्जत नहीं अच्छी ।।
हमारे पास जो भी था तुम्हारे वास्ते ही था।
लगी अपनों की जेबों पर तेरी हिकमत नहीं अच्छी ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
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