2122 1212 22
हैं सदायें तमाम लाशों से ।
काम कब तक चलेगा बातों से ।।
फिर कड़े फैसले की बात हुई ।
सिर्फ मरहम मिला वजीरों से ।।
कर न् पाए वो फैसले अब तक ।
सीख लेते कहाँ हैं जख्मों से ।।
खो दिया क्यूँ मेरे जवानों को ।
प्रश्न उठने लगे हज़ारों से ।।
कुर्सियां छोड़ दें ये नालायक ।
बात कहिये ये हुक्मरानों से ।।
मौत आती रही है हिस्से में ।
कर सके खाक आसमानों से ।।
गोलियां ही इलाज है उनका ।
मांगिये जान मत जवानों से ।।
हाथ में फिर उठा लिया पत्थर ।
बात मत कर हरामजादों से ।।
उनकी फ़ित्रत कभी नही बदली ।
मौत लिखने लगे जिहादों से ।।
पत्थरों से है परवरिश उनकी ।
रोटियां मिल रहीं विवादों से ।।
जुर्म की इंतिहाँ पे खामोशी ।
उन को फुरसत कहाँ चुनावों से ।।
--- नवीन मणि त्रिपाठी
हैं सदायें तमाम लाशों से ।
काम कब तक चलेगा बातों से ।।
फिर कड़े फैसले की बात हुई ।
सिर्फ मरहम मिला वजीरों से ।।
कर न् पाए वो फैसले अब तक ।
सीख लेते कहाँ हैं जख्मों से ।।
खो दिया क्यूँ मेरे जवानों को ।
प्रश्न उठने लगे हज़ारों से ।।
कुर्सियां छोड़ दें ये नालायक ।
बात कहिये ये हुक्मरानों से ।।
मौत आती रही है हिस्से में ।
कर सके खाक आसमानों से ।।
गोलियां ही इलाज है उनका ।
मांगिये जान मत जवानों से ।।
हाथ में फिर उठा लिया पत्थर ।
बात मत कर हरामजादों से ।।
उनकी फ़ित्रत कभी नही बदली ।
मौत लिखने लगे जिहादों से ।।
पत्थरों से है परवरिश उनकी ।
रोटियां मिल रहीं विवादों से ।।
जुर्म की इंतिहाँ पे खामोशी ।
उन को फुरसत कहाँ चुनावों से ।।
--- नवीन मणि त्रिपाठी
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