1222 1222 122
हरम में अब समझदारी से बचिए ।
जमाने की अदाकारी से बचिए ।।
अगर ख्वाहिश जरा सी है सुकूँ की ।
रकीबों की वफादारी से बचिए ।।
यहाँ दुश्मन से कब खतरा हुआ है ।
यहाँ अपनों की गद्दारी से बचिए ।।
इरादों में बहुत है खोट बाकी ।
नगर में आप मुख्तारी से बचिए ।।
रहेगी आपकी भी शान जिंदा ।
जरूरत है कि बेकारी से बचिए ।।
सनम के भी अलावा जिंदगी है ।
ऐ नादां इश्क़ लाचारी से बचिए ।।
उन्हें तो होश मुद्दत से नहीं है ।
हसीनों की नशातारी से बचिए ।।
है करके कुछ दिखाने की तमन्ना ।
तो पहले अपनी खुद्दारी से बचिए ।।
तरक्की खुद चली आएगी इक दिन ।
मगर मजहब की बीमारी से बचिए ।।
वो अक्सर पीठ में मारे है ख़ंजर ।
जरा दुश्मन की मक्कारी से बचिए ।।
हकीमों से है जो दौलत बचानी ।
मुहकमा गैर सरकारी से बचिए ।।
हजारों लोग फंदे फेकते हैं ।
नए चेहरों की इफ्तारी से बचिए ।।
बड़ी शातिर अदाएं ढूढ़तीं हैं ।
अभी दिल की गिरफ्तारी से बचिए ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
'
हरम में अब समझदारी से बचिए ।
जमाने की अदाकारी से बचिए ।।
अगर ख्वाहिश जरा सी है सुकूँ की ।
रकीबों की वफादारी से बचिए ।।
यहाँ दुश्मन से कब खतरा हुआ है ।
यहाँ अपनों की गद्दारी से बचिए ।।
इरादों में बहुत है खोट बाकी ।
नगर में आप मुख्तारी से बचिए ।।
रहेगी आपकी भी शान जिंदा ।
जरूरत है कि बेकारी से बचिए ।।
सनम के भी अलावा जिंदगी है ।
ऐ नादां इश्क़ लाचारी से बचिए ।।
उन्हें तो होश मुद्दत से नहीं है ।
हसीनों की नशातारी से बचिए ।।
है करके कुछ दिखाने की तमन्ना ।
तो पहले अपनी खुद्दारी से बचिए ।।
तरक्की खुद चली आएगी इक दिन ।
मगर मजहब की बीमारी से बचिए ।।
वो अक्सर पीठ में मारे है ख़ंजर ।
जरा दुश्मन की मक्कारी से बचिए ।।
हकीमों से है जो दौलत बचानी ।
मुहकमा गैर सरकारी से बचिए ।।
हजारों लोग फंदे फेकते हैं ।
नए चेहरों की इफ्तारी से बचिए ।।
बड़ी शातिर अदाएं ढूढ़तीं हैं ।
अभी दिल की गिरफ्तारी से बचिए ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें