तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

हरम में अब समझदारी से बचिए

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हरम  में अब  समझदारी  से  बचिए ।
जमाने   की  अदाकारी  से   बचिए ।।

अगर  ख्वाहिश जरा सी है सुकूँ की ।
रकीबों  की   वफादारी   से  बचिए ।।

यहाँ  दुश्मन  से कब  खतरा हुआ है ।
यहाँ  अपनों  की  गद्दारी से  बचिए ।।

इरादों   में   बहुत   है   खोट बाकी ।
नगर  में  आप  मुख्तारी  से  बचिए ।।

रहेगी   आपकी    भी   शान   जिंदा ।
जरूरत  है  कि  बेकारी  से  बचिए ।।

सनम  के  भी   अलावा  जिंदगी  है ।
ऐ  नादां  इश्क़  लाचारी  से  बचिए ।।

उन्हें  तो   होश   मुद्दत  से  नहीं   है ।
हसीनों  की  नशातारी  से   बचिए ।।

है  करके  कुछ  दिखाने  की तमन्ना ।
तो  पहले  अपनी खुद्दारी से बचिए ।।

तरक्की खुद चली आएगी इक दिन ।
मगर मजहब की बीमारी से बचिए ।।

वो  अक्सर  पीठ  में   मारे  है ख़ंजर ।
जरा  दुश्मन की मक्कारी से बचिए ।।

हकीमों   से  है  जो  दौलत  बचानी ।
मुहकमा  गैर  सरकारी   से  बचिए ।।

हजारों    लोग    फंदे    फेकते   हैं ।
नए  चेहरों  की  इफ्तारी  से बचिए ।।

बड़ी    शातिर   अदाएं   ढूढ़तीं    हैं ।
अभी दिल की गिरफ्तारी से बचिए ।।

             नवीन मणि त्रिपाठी 
          मौलिक अप्रकाशित

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