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कफ़स को तोड़ बहारों में आज ढल तो सही ।
तू इस नकाब से बाहर कभी निकल तो सही ।।
तमाम उम्र गुजारी है इश्क में हमने ।
करेंगे आप हमें याद एक पल तो सही ।।
सियाह रात में आये वो चाँद भी कैसे ।
अदब के साथ ये लहज़ा ज़रा बदल तो सही ।।
बड़े लिहाज़ से पूंछा है तिश्नगी उसने ।
आना ए हुस्न पे इतरा के कुछ उबल तो सही ।।
झुकी नज़र से अदाओं में मुस्कुरा देना ।
ऐ दिल सनम की शरारत पे कुछ मचल तो सही।।
बुझा बुझा सा है मंजर दयार का तेरे ।
चराग बन के फिजाओं में आज जल तो सही ।।
सुलग रही है कई दिन से जिंदगी कोई ।
सदाएं आपकी करतीं कभी दखल तो सही ।।
जमी है वर्फ़ ज़माने की खूब रिश्तों पर ।
बची हो आग तो हंसकर जरा पिघल तो सही ।।
तेरे लिए वो किताबें ग़ज़ल की लिखता है ।
असर हो दिल पे तो अपनी सुना ग़ज़ल तो सही।।
सफर अधूरा है मंजिल अभी है दूर बहुत ।
तू थोड़ी दूर तलक मेरे साथ चल तो सही ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
कफ़स को तोड़ बहारों में आज ढल तो सही ।
तू इस नकाब से बाहर कभी निकल तो सही ।।
तमाम उम्र गुजारी है इश्क में हमने ।
करेंगे आप हमें याद एक पल तो सही ।।
सियाह रात में आये वो चाँद भी कैसे ।
अदब के साथ ये लहज़ा ज़रा बदल तो सही ।।
बड़े लिहाज़ से पूंछा है तिश्नगी उसने ।
आना ए हुस्न पे इतरा के कुछ उबल तो सही ।।
झुकी नज़र से अदाओं में मुस्कुरा देना ।
ऐ दिल सनम की शरारत पे कुछ मचल तो सही।।
बुझा बुझा सा है मंजर दयार का तेरे ।
चराग बन के फिजाओं में आज जल तो सही ।।
सुलग रही है कई दिन से जिंदगी कोई ।
सदाएं आपकी करतीं कभी दखल तो सही ।।
जमी है वर्फ़ ज़माने की खूब रिश्तों पर ।
बची हो आग तो हंसकर जरा पिघल तो सही ।।
तेरे लिए वो किताबें ग़ज़ल की लिखता है ।
असर हो दिल पे तो अपनी सुना ग़ज़ल तो सही।।
सफर अधूरा है मंजिल अभी है दूर बहुत ।
तू थोड़ी दूर तलक मेरे साथ चल तो सही ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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