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सुकूँ के साथ कुछ दिन जी लिया क्या ।
वो अच्छा दिन तुम्हें हासिल हुआ क्या ।।
बहुत दिन से हूँ सुनता मर रहे हो ।
गरल मजबूरियों का पी लिया क्या ।।
इलक्शन में बहुत नफ़रत पढाया।
तुम्हें इनआम कोई मिल गया क्या ।।
लुटी है आज फिर बेटी की इज़्ज़त ।
जुबाँ को आपने अब सी लिया क्या ।।
सजा फिर हो गयी चारा में उसको ।
खजाना भी कोई वापस हुआ क्या ।।
नही थाली में है रोटी तुम्हारी ।
तुम्हारा वोट था सचमुच बिका क्या ।।
बड़ी मेहनत से खेती हो रही है ।
तरक्की का मिला तुमको मजा क्या ।।
बिना बिल के जी एस टी लग रहा है ।
हमारी जेब पर डाका पड़ा क्या ।।
सुना था न्याय का मन्दिर वहां है ।
वहाँ भी फैसला बिकने लगा क्या ।।
मेरा धन बैंक मुझसे ले रहे हैं ।
मुझे यह आपसे तोहफा मिला क्या ।।
लुटेरे मुल्क के आजाद अब भी ।
तुम्हारे साथ कुछ वादा हुआ क्या ।।
बड़े अरमान से लाये थे तुमको ।
तुम्हे चुनना हमे महंगा पड़ा क्या ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
सुकूँ के साथ कुछ दिन जी लिया क्या ।
वो अच्छा दिन तुम्हें हासिल हुआ क्या ।।
बहुत दिन से हूँ सुनता मर रहे हो ।
गरल मजबूरियों का पी लिया क्या ।।
इलक्शन में बहुत नफ़रत पढाया।
तुम्हें इनआम कोई मिल गया क्या ।।
लुटी है आज फिर बेटी की इज़्ज़त ।
जुबाँ को आपने अब सी लिया क्या ।।
सजा फिर हो गयी चारा में उसको ।
खजाना भी कोई वापस हुआ क्या ।।
नही थाली में है रोटी तुम्हारी ।
तुम्हारा वोट था सचमुच बिका क्या ।।
बड़ी मेहनत से खेती हो रही है ।
तरक्की का मिला तुमको मजा क्या ।।
बिना बिल के जी एस टी लग रहा है ।
हमारी जेब पर डाका पड़ा क्या ।।
सुना था न्याय का मन्दिर वहां है ।
वहाँ भी फैसला बिकने लगा क्या ।।
मेरा धन बैंक मुझसे ले रहे हैं ।
मुझे यह आपसे तोहफा मिला क्या ।।
लुटेरे मुल्क के आजाद अब भी ।
तुम्हारे साथ कुछ वादा हुआ क्या ।।
बड़े अरमान से लाये थे तुमको ।
तुम्हे चुनना हमे महंगा पड़ा क्या ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १५ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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