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बुझते हुए से आज चराग़ों की तरह है ।
जो शख्स मेरे चाँद सितारों की तरह है ।।
करता है वही कत्ल मिरे दिल का सरेआम ।
मिलता मुझे जो आदमी अपनों की तरह है ।।
रह रह वो कई बार मुझे देखते हैं अब ।
अंदाज मुहब्बत के इशारों की तरह है ।।
कुछ रोज से चेहरे की तबस्सुम पे फिदा वो ।
किसने कहा वो आज भी गैरों की तरह है ।।
यूँ ही न बिखर जाए कहीं टूट के मुझसे ।
नाजुक सा मुकम्मल वो गुलाबों की तरह है ।।
लाती हैं हवाएं भी नई जान चमन में ।
आना तेरा भी दर पे बहारों की तरह है ।।
भूला कहाँ हूँ आज तलक हुस्न का मंजर ।
यादों में कोई जुल्फ घटाओं की तरह है ।।
आये हैं मेरे घर पे तो किस्मत है ये मेरी ।
यह वक्त मेरे दिल की मुरादों की तरह है ।।
उलझा हुआ हूं मैं भी जमाने से अभी तक ।
बेचैनियों का दौर सवालों की तरह है ।।
रखता है सलामत वो मुझे हर बला से अब ।
कोई तो निगहबान दुआओं की तरह है ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
बुझते हुए से आज चराग़ों की तरह है ।
जो शख्स मेरे चाँद सितारों की तरह है ।।
करता है वही कत्ल मिरे दिल का सरेआम ।
मिलता मुझे जो आदमी अपनों की तरह है ।।
रह रह वो कई बार मुझे देखते हैं अब ।
अंदाज मुहब्बत के इशारों की तरह है ।।
कुछ रोज से चेहरे की तबस्सुम पे फिदा वो ।
किसने कहा वो आज भी गैरों की तरह है ।।
यूँ ही न बिखर जाए कहीं टूट के मुझसे ।
नाजुक सा मुकम्मल वो गुलाबों की तरह है ।।
लाती हैं हवाएं भी नई जान चमन में ।
आना तेरा भी दर पे बहारों की तरह है ।।
भूला कहाँ हूँ आज तलक हुस्न का मंजर ।
यादों में कोई जुल्फ घटाओं की तरह है ।।
आये हैं मेरे घर पे तो किस्मत है ये मेरी ।
यह वक्त मेरे दिल की मुरादों की तरह है ।।
उलझा हुआ हूं मैं भी जमाने से अभी तक ।
बेचैनियों का दौर सवालों की तरह है ।।
रखता है सलामत वो मुझे हर बला से अब ।
कोई तो निगहबान दुआओं की तरह है ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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