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उल्फत में अपना दिल न जलाएं तो क्या करें।
जब आप ही ये आग लगाएं तो क्या करें ।।
मजबूरियों के नाम शिकस्ता है अज़्म भी ।
तीरे नज़र वो दिल में चुभाएँ तो क्या करें ।।
हम तो वफ़ा के नाम पे कुर्बान हो गये ।
वो बेवफा ही कह के बुलाएं तो क्या करें ।।
मर्जी खुदा की थी जो हमें इश्क़ हो गया ।
कुछ लोग अब सवाल उठाएँ तो क्या करें ।।
जुल्मो सितम तो आपका काफूर हो रहा ।
अब मुस्कुरा के भूल न जाएं तो क्या करें ।।
रक्खा है रह्म मौला ने सबके लिए बहुत ।
दैरो हरम से दूर वो जाएं तो क्या करें ।।
क्या क्या नहीं किया है मुहब्बत के वास्ते ।
नजरें वो हम से रोज चुराएं तो क्या करें ।।
जाहिद नहीं वो जाम हमारे नसीब में ।
कीमत वो सुबहो शाम बढ़ाएं तो क्या करें ।।
जब उसने मैकदे में हमें फिर बुला लिया ।
अब तिश्नगी भी हम न मिटाएं तो क्या करें ।।
कुछ तो हमें भी इल्म जरूरी है आपसे ।
चहरे से जब नकाब हटाएँ तो क्या करें ।।
अब कोशिशों पे आपका इल्जाम बन्द हो ।
चलने लगीं खिलाफ हवाएं तो क्या करें।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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