एक पुरानी ग़ज़ल 2014 में वैलेंटाइन डे पर लिखी थी । शेयर कर रहा हूँ ।
---*** ग़ज़ल***---
2122 2122 2122 2122
बाप को बदनामियों की ,तुहमतें खाने लगी हैं ।
फिर मुहब्बत आम की खबरें बहुत आने लगी हैं ।।
है लबो पर यह तकाजा , हम फ़ना हो जाएंगे अब ।
तितलियां फूलों से मिलने ,बे अदब जाने लगी हैं।।
हो गया मौसम गुलाबी और पहरे सख्त हैं ये ।
देखिये फिर भी बहारें आज इतराने लगी हैं ।
जिस्म की बाज़ार में वो इश्क़ गिरवीं रख गईं सब ।
जो मुहब्बत के तराने, फिर यहां गाने लगी हैं ।।
सोचकर चलना मुसाफिर,इश्क़ की फितरत समझ ले।
चाहतें ये आग जैसी घर को जलवाने लगीं हैं ।।
जब कभी तहजीब को जश्नों ने तोड़ा है यहां पर ।
फिर दबी हर ख्वाहिशें भी जुल्म बन ढाने लगीं हैं ।
- नवीन
---*** ग़ज़ल***---
2122 2122 2122 2122
बाप को बदनामियों की ,तुहमतें खाने लगी हैं ।
फिर मुहब्बत आम की खबरें बहुत आने लगी हैं ।।
है लबो पर यह तकाजा , हम फ़ना हो जाएंगे अब ।
तितलियां फूलों से मिलने ,बे अदब जाने लगी हैं।।
हो गया मौसम गुलाबी और पहरे सख्त हैं ये ।
देखिये फिर भी बहारें आज इतराने लगी हैं ।
जिस्म की बाज़ार में वो इश्क़ गिरवीं रख गईं सब ।
जो मुहब्बत के तराने, फिर यहां गाने लगी हैं ।।
सोचकर चलना मुसाफिर,इश्क़ की फितरत समझ ले।
चाहतें ये आग जैसी घर को जलवाने लगीं हैं ।।
जब कभी तहजीब को जश्नों ने तोड़ा है यहां पर ।
फिर दबी हर ख्वाहिशें भी जुल्म बन ढाने लगीं हैं ।
- नवीन
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