221 2121 1221 212
ढूढा हूँ मुश्किलों से सलामत गुहर को मैं ।
समझा हूँ तेरे हुस्न के ज़ेरो ज़बर को मैं ।।
यूँ ही नहीं हूं आपके मैं दरमियाँ खड़ा ।
नापा हूँ अपने पाँव से पूरे सफर को मैं ।।
मारा वही गया जो भला रात दिन किया ।
देखा हूँ तेरे गाँव में कटते शजर को मैं ।।
मत पूछिए कि आप मेरे क्या नहीं हुए ।
पाला हूँ बड़े नाज़ से अहले जिगर को मैं ।।
शायद तेरे वजूद की कोई खबर मिले ।
पढ़ता रहा हूँ आज तलक हर खबर को मैं ।।
कुछ तो करम हो आपका उल्फत के नामपर
रक्खूँगाआप पर भी कहाँ तक नज़र को मैं।।
इस फ़ासले के दौर में ऐसा न हो कभी ।
तेरे पनाह गाह में तरसूं बसर को मैं ।।
देखा है जब से आपको होशो हवाश गुम ।
कितना नशा शराब में परखा असर को मैं ।।
मैं तो अना ए हुस्न पे हैरान हूँ बहुत ।
अब तक उठा सका नहीं परदा क़मर का मैं।।
गुजरी तमाम उम्र यहां इंतजार में ।
बस देखता ही रह गया शामो सहर को मैं ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
ढूढा हूँ मुश्किलों से सलामत गुहर को मैं ।
समझा हूँ तेरे हुस्न के ज़ेरो ज़बर को मैं ।।
यूँ ही नहीं हूं आपके मैं दरमियाँ खड़ा ।
नापा हूँ अपने पाँव से पूरे सफर को मैं ।।
मारा वही गया जो भला रात दिन किया ।
देखा हूँ तेरे गाँव में कटते शजर को मैं ।।
मत पूछिए कि आप मेरे क्या नहीं हुए ।
पाला हूँ बड़े नाज़ से अहले जिगर को मैं ।।
शायद तेरे वजूद की कोई खबर मिले ।
पढ़ता रहा हूँ आज तलक हर खबर को मैं ।।
कुछ तो करम हो आपका उल्फत के नामपर
रक्खूँगाआप पर भी कहाँ तक नज़र को मैं।।
इस फ़ासले के दौर में ऐसा न हो कभी ।
तेरे पनाह गाह में तरसूं बसर को मैं ।।
देखा है जब से आपको होशो हवाश गुम ।
कितना नशा शराब में परखा असर को मैं ।।
मैं तो अना ए हुस्न पे हैरान हूँ बहुत ।
अब तक उठा सका नहीं परदा क़मर का मैं।।
गुजरी तमाम उम्र यहां इंतजार में ।
बस देखता ही रह गया शामो सहर को मैं ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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