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किसी पर जां निसारी हो रही है ।
नदी अश्कों से खारी हो रही है ।।
सुकूँ की अब फरारी हो रही है ।
अजब सी बेकरारी हो रही है ।।
तुम्हारे हुस्न पर है दाँव सारा ।
यहाँ दुनियां जुआरी हो रही है ।।
शिकस्ता अज़्म है कुछ आपका भी ।
सजाये मौत जारी हो रही है ।।
जली है फिर कोई बस्ती वतन की ।
फजीहत फिर हमारी हो रही है ।।
यहां तहजीब का आलम न पूछो।
वफ़ा की ख़ाकसारी हो रही है ।।
कहा था मत पियो इतना जियादह ।
बड़ी लम्बी खुमारी हो रही है ।।
जरा पर्दे में रहना सीख लो तुम ।
नज़र कोई शिकारी हो रही है ।।
कतारें लग चुकीं रिन्दों की देखो।
अदा से आबकारी हो रही है ।।
कटेगी किस तरह ये जिंदगी अब ।
दुआओं की भिखारी हो रही है ।।
सुना है महफ़िलो में आजकल तो ।
बड़ी चर्चा तुम्हारी हो रही है ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
किसी पर जां निसारी हो रही है ।
नदी अश्कों से खारी हो रही है ।।
सुकूँ की अब फरारी हो रही है ।
अजब सी बेकरारी हो रही है ।।
तुम्हारे हुस्न पर है दाँव सारा ।
यहाँ दुनियां जुआरी हो रही है ।।
शिकस्ता अज़्म है कुछ आपका भी ।
सजाये मौत जारी हो रही है ।।
जली है फिर कोई बस्ती वतन की ।
फजीहत फिर हमारी हो रही है ।।
यहां तहजीब का आलम न पूछो।
वफ़ा की ख़ाकसारी हो रही है ।।
कहा था मत पियो इतना जियादह ।
बड़ी लम्बी खुमारी हो रही है ।।
जरा पर्दे में रहना सीख लो तुम ।
नज़र कोई शिकारी हो रही है ।।
कतारें लग चुकीं रिन्दों की देखो।
अदा से आबकारी हो रही है ।।
कटेगी किस तरह ये जिंदगी अब ।
दुआओं की भिखारी हो रही है ।।
सुना है महफ़िलो में आजकल तो ।
बड़ी चर्चा तुम्हारी हो रही है ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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