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मुद्दत से उलझा रहता है ।
यह मन कब तन्हा रहता है ।।
मिलता है अक्सर वो हंसकर ।
जो गम को पीता रहता है ।।
जो गुलाब भेजा था तुमने ।
वो दिल मे खिलता रहता है ।।
कब आओगे मेरे घर तुम ।
खत में वो लिखता रहता है ।।
उससे उसका हाल न पूछो ।
वह दिन भर रोता रहता है ।।
कुछ तो जलता है तेरे घर ।
रोज़ धुंआ उठता रहता है ।।
शायद उसको इश्क हुआ हो ।
मुझसे वो मिलता रहता है ।।
जख्म मिले हैं मुझको उनसे।
जिनसे ज़ख़्म छुपा रहता है ।।
आंख चुराने वालों को ही ।
मेरा दर्द पता रहता है ।।
प्रेम दिवस पर भूल न जाना।
मन कोई घुटता रहता है ।।
एक जमाने से वो मुझको।
चुपके से पढ़ता रहता है ।।
देख मुसाफ़िर सँभल के चलना ।
प्यार सदा अंधा रहता है ।।
परवानों के मरघट खातिर ।
एक दिया जलता रहता है ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
मुद्दत से उलझा रहता है ।
यह मन कब तन्हा रहता है ।।
मिलता है अक्सर वो हंसकर ।
जो गम को पीता रहता है ।।
जो गुलाब भेजा था तुमने ।
वो दिल मे खिलता रहता है ।।
कब आओगे मेरे घर तुम ।
खत में वो लिखता रहता है ।।
उससे उसका हाल न पूछो ।
वह दिन भर रोता रहता है ।।
कुछ तो जलता है तेरे घर ।
रोज़ धुंआ उठता रहता है ।।
शायद उसको इश्क हुआ हो ।
मुझसे वो मिलता रहता है ।।
जख्म मिले हैं मुझको उनसे।
जिनसे ज़ख़्म छुपा रहता है ।।
आंख चुराने वालों को ही ।
मेरा दर्द पता रहता है ।।
प्रेम दिवस पर भूल न जाना।
मन कोई घुटता रहता है ।।
एक जमाने से वो मुझको।
चुपके से पढ़ता रहता है ।।
देख मुसाफ़िर सँभल के चलना ।
प्यार सदा अंधा रहता है ।।
परवानों के मरघट खातिर ।
एक दिया जलता रहता है ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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