221 2121 1221 212
आबाद इस चमन में तेरी शेखियाँ रहें ।
बाकी न मैं रहूँ न मेरी खूबियां रहें ।।
नफ़रत की आग ले के जलाने चले हैं वे ।
उनसे खुदा करे कि बनीं दूरियां रहें ।।
दीमक की तर्ह चाट रहे आप देश को ।
कायम तमाम आपकी वैसाखियाँ रहें ।।
बैठे जहां हैं आप वही डाल काटते ।
मौला नजर रखे कि बची पसलियां रहें ।।
अंधा है लोक तन्त्र यहां कुछ भी मांगिये ।
बस शर्त वोट काटने की धमकियां रहें ।।
टुकड़े वतन के होंगे यही खाब आपका ।
आज़ाद है वतन तो चढ़ी त्यौरियां रहें ।।
अक्सर मिले हैं सिफ्र ही कुर्बानियों के नाम।
अहले चमन में आपकी गद्दारियाँ रहें ।।
हक छीनिये जनाब ये कानून पास कर ।
काबिल की जिंदगी में तो लाचारियाँ रहें ।।
ऊँचीथी जात जिसकी वो भूँखा मरा मिला।
कुछ तो तेरे रसूक की दुश्वारियां रहें ।।
कुछ लाइलाज़ रोग हैं इस संविधान में ।
दिन रात कर दुआ कि ये बीमारियां रहें ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
आबाद इस चमन में तेरी शेखियाँ रहें ।
बाकी न मैं रहूँ न मेरी खूबियां रहें ।।
नफ़रत की आग ले के जलाने चले हैं वे ।
उनसे खुदा करे कि बनीं दूरियां रहें ।।
दीमक की तर्ह चाट रहे आप देश को ।
कायम तमाम आपकी वैसाखियाँ रहें ।।
बैठे जहां हैं आप वही डाल काटते ।
मौला नजर रखे कि बची पसलियां रहें ।।
अंधा है लोक तन्त्र यहां कुछ भी मांगिये ।
बस शर्त वोट काटने की धमकियां रहें ।।
टुकड़े वतन के होंगे यही खाब आपका ।
आज़ाद है वतन तो चढ़ी त्यौरियां रहें ।।
अक्सर मिले हैं सिफ्र ही कुर्बानियों के नाम।
अहले चमन में आपकी गद्दारियाँ रहें ।।
हक छीनिये जनाब ये कानून पास कर ।
काबिल की जिंदगी में तो लाचारियाँ रहें ।।
ऊँचीथी जात जिसकी वो भूँखा मरा मिला।
कुछ तो तेरे रसूक की दुश्वारियां रहें ।।
कुछ लाइलाज़ रोग हैं इस संविधान में ।
दिन रात कर दुआ कि ये बीमारियां रहें ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें