एक छोटी बह्र की ग़ज़ल
212 1212
मिल गई नई नई ।
हुस्न की कोई परी ।।
झुक गई नजर वहीं।
जब नज़र कभी मिली।।
देखकर उसे यहां ।
खिल उठी कली कली ।
हिज्र की थी रात वो ।
लौ रही बुझी बुझी ।।
खा गया मैं रोटियां ।
बिन तेरे जली जली ।।
कुछ तो बात है जो वो।
रह रही कटी कटी।।
बात कुछ छुपी नहीं ।
चल रही गली गली ।।
याद है अभी तलक ।
जुल्फ थी खुली खुली।।
चूड़ियां खनक उठीं ।
आपकी हरी हरी ।।
चाहतों के दौर में ।
आशिकी पली बढ़ी ।।
कुछ पता न चल सका ।
दिल से कब घुली मिली।।
हार प्रेम का बना ।
जुड़ गई कड़ी कड़ी ।।
वो निहारती मुझे ।
राह में खड़ी खड़ी ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
212 1212
मिल गई नई नई ।
हुस्न की कोई परी ।।
झुक गई नजर वहीं।
जब नज़र कभी मिली।।
देखकर उसे यहां ।
खिल उठी कली कली ।
हिज्र की थी रात वो ।
लौ रही बुझी बुझी ।।
खा गया मैं रोटियां ।
बिन तेरे जली जली ।।
कुछ तो बात है जो वो।
रह रही कटी कटी।।
बात कुछ छुपी नहीं ।
चल रही गली गली ।।
याद है अभी तलक ।
जुल्फ थी खुली खुली।।
चूड़ियां खनक उठीं ।
आपकी हरी हरी ।।
चाहतों के दौर में ।
आशिकी पली बढ़ी ।।
कुछ पता न चल सका ।
दिल से कब घुली मिली।।
हार प्रेम का बना ।
जुड़ गई कड़ी कड़ी ।।
वो निहारती मुझे ।
राह में खड़ी खड़ी ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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