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इस तरह मुहब्बत में दिल लुटा के चलते हो ।
कह रहा जमाना ये तुम भी कितने सस्ते हो ।।
मैंकदा है वो चहरा रिन्द भी नशे में हैं ।
बेहिसाब पीकर तुम रात भर सँभलते हो ।।
टूट कर मैं बिखरा हूँ अपने आशियाने में ।
क्या गिला है अब मुझसे रंग क्यूँ बदलते हो ।।
दिल चुरा लिया तुमने हुस्न की नुमाइस में ।
बेनकाब होकर क्यूँ घर से तुम निकलते हो ।।
तिश्नगी जलाती है जब भी तुझको देखा है ।।
तुम बड़े सलीके से रूह में उतरते हो ।।
मिल गया तुम्हारा खत पढ़ लिया फ़साना भी ।
आग सी जवानी में बेसबब सुलगते हो ।।
कुछ ग़ज़ल का जादू है कुछ अदा भी कमसिन है ।
देखता हूँ कुछ दिन से इश्क में संवरते हो ।।
आसुओं का रिश्ता है अब तेरी मुहब्बत से ।
जानकर हकीकत को दिल से क्यों मुकरते हो ।।
इस तरह जवानी पर नाज़ क्या करोगे तुम ।
तुमतो उसकी सूरत पे मोम सा पिघलते हो ।।
तुम छुपा नहीं पाए दर्द वो जुदाई का ।
आंख सब बताती है किस तरह सिसकते हो ।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता है
http://rinkiraut13.blogspot.in/
आपको सूचित करते हुए बड़े हर्ष का अनुभव हो रहा है कि ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग 'मंगलवार' ९ जनवरी २०१८ को ब्लॉग जगत के श्रेष्ठ लेखकों की पुरानी रचनाओं के लिंकों का संकलन प्रस्तुत करने जा रहा है। इसका उद्देश्य पूर्णतः निस्वार्थ व नये रचनाकारों का परिचय पुराने रचनाकारों से करवाना ताकि भावी रचनाकारों का मार्गदर्शन हो सके। इस उद्देश्य में आपके सफल योगदान की कामना करता हूँ। इस प्रकार के आयोजन की यह प्रथम कड़ी है ,यह प्रयास आगे भी जारी रहेगा। आप सभी सादर आमंत्रित हैं ! "लोकतंत्र" ब्लॉग आपका हार्दिक स्वागत करता है। आभार "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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