तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

तुम बड़े सलीके से रूह में उतरते हो।


212 1222 212 1222
इस  तरह  मुहब्बत  में  दिल  लुटा के चलते  हो ।
कह  रहा  जमाना  ये  तुम  भी  कितने सस्ते हो ।।

मैंकदा   है  वो   चहरा  रिन्द  भी   नशे   में   हैं ।
बेहिसाब   पीकर   तुम   रात भर  सँभलते  हो ।।

टूट  कर   मैं   बिखरा  हूँ  अपने  आशियाने   में ।
क्या गिला है अब  मुझसे  रंग क्यूँ   बदलते  हो ।।

दिल  चुरा   लिया  तुमने  हुस्न की  नुमाइस   में ।
बेनकाब  होकर  क्यूँ   घर  से तुम  निकलते  हो ।।

तिश्नगी  जलाती  है  जब  भी तुझको देखा  है ।।
तुम  बड़े   सलीके   से   रूह  में   उतरते   हो ।।

मिल गया तुम्हारा  खत  पढ़ लिया  फ़साना भी ।
आग   सी   जवानी   में  बेसबब  सुलगते   हो ।।

कुछ ग़ज़ल का जादू है कुछ अदा भी कमसिन है ।
देखता  हूँ  कुछ  दिन  से  इश्क  में  संवरते  हो ।।

आसुओं  का   रिश्ता  है अब  तेरी  मुहब्बत से ।
जानकर हकीकत को दिल से क्यों मुकरते हो ।।

इस  तरह  जवानी  पर  नाज़  क्या  करोगे तुम ।
तुमतो उसकी सूरत पे  मोम  सा  पिघलते  हो ।।

तुम   छुपा   नहीं   पाए   दर्द  वो  जुदाई   का ।
आंख  सब  बताती है किस तरह सिसकते हो ।।

2 टिप्‍पणियां:


  1. बहुत सुन्दर कविता है

    http://rinkiraut13.blogspot.in/

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  2. आपको सूचित करते हुए बड़े हर्ष का अनुभव हो रहा है कि ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग 'मंगलवार' ९ जनवरी २०१८ को ब्लॉग जगत के श्रेष्ठ लेखकों की पुरानी रचनाओं के लिंकों का संकलन प्रस्तुत करने जा रहा है। इसका उद्देश्य पूर्णतः निस्वार्थ व नये रचनाकारों का परिचय पुराने रचनाकारों से करवाना ताकि भावी रचनाकारों का मार्गदर्शन हो सके। इस उद्देश्य में आपके सफल योगदान की कामना करता हूँ। इस प्रकार के आयोजन की यह प्रथम कड़ी है ,यह प्रयास आगे भी जारी रहेगा। आप सभी सादर आमंत्रित हैं ! "लोकतंत्र" ब्लॉग आपका हार्दिक स्वागत करता है। आभार "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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