1222 1222 122
पलायन का वरण तो दोष क्या है ।
प्रगति पर है ग्रहण तो दोष क्या है ।।
न अपनाओ कभी तुम वह प्रशंसा।
पृथक हो अनुकरण तो दोष क्या है ।।
जिन्हें शिक्षा मिली व्यभिचार की ही ।
करें सीता हरण तो दोष क्या है ।।
मरी हो सभ्यता प्रतिदिन जहां पर ।
नया हो उद्धरण तो दोष क्या है ।।
अनावश्यक अहं की तुष्टि से बच ।
करेंगे संवरण तो दोष क्या है ।।
वो भूखों मर रहा है कौन समझे ।
हुआ है आहरण तो दोष क्या है ।।
जमी घटने लगी इस देश मे अब ।
असम्भव संभरण तो दोष क्या है ।।
यथा सम्भव कहाँ उसने किया कब ।
नहीं हो अंतरण तो दोष क्या है ।।
उपेक्षित हो गयी जब संस्कृति ये ।
गलत हो आचरण तो दोष क्या है ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
पलायन का वरण तो दोष क्या है ।
प्रगति पर है ग्रहण तो दोष क्या है ।।
न अपनाओ कभी तुम वह प्रशंसा।
पृथक हो अनुकरण तो दोष क्या है ।।
जिन्हें शिक्षा मिली व्यभिचार की ही ।
करें सीता हरण तो दोष क्या है ।।
मरी हो सभ्यता प्रतिदिन जहां पर ।
नया हो उद्धरण तो दोष क्या है ।।
अनावश्यक अहं की तुष्टि से बच ।
करेंगे संवरण तो दोष क्या है ।।
वो भूखों मर रहा है कौन समझे ।
हुआ है आहरण तो दोष क्या है ।।
जमी घटने लगी इस देश मे अब ।
असम्भव संभरण तो दोष क्या है ।।
यथा सम्भव कहाँ उसने किया कब ।
नहीं हो अंतरण तो दोष क्या है ।।
उपेक्षित हो गयी जब संस्कृति ये ।
गलत हो आचरण तो दोष क्या है ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं