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आंखों में आबाद समंदर देखा है ।
हाँ मैंने उल्फ़त का मंजर देखा है ।।
कुछ चाहत में जलते हैं सब रोज यहां ।
चाँद जला तो जलता अम्बर देखा है ।।
आज अना से हार गया कोई पोरस ।
तुझमें पलता एक सिकन्दर देखा है ।।
एक तबस्सुम बदल गया फरमान मेरा ।
मैंने तेरे साथ मुकद्दर देखा है ।।
कुछ दिन से रहता है वह उलझा उलझा ।
शायद उसने मन के अंदर देखा है ।।
बिन बरसे क्यूँ बादल सारे गुज़र गए ।
मैंने उसकी जमीं को बंजर देखा है ।।
हो जाते जज़्बात बयां सब बातों से ।
नाम उसी का लब पर अक्सर देखा है ।।
खूब दुआएं जो देते थे जीने की ।
आज उन्हीं हाथों में ख़ंजर देखा है ।।
ज़ह्र पिये बस मीरा और सुकरात नहीं ।
मुल्क के हर इंसान में शंकर देखा है ।।
लाचारी का हाल न पूछो अब मुझसे ।।
तेरी खातिर सब कुछ खोकर देखा है ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
आंखों में आबाद समंदर देखा है ।
हाँ मैंने उल्फ़त का मंजर देखा है ।।
कुछ चाहत में जलते हैं सब रोज यहां ।
चाँद जला तो जलता अम्बर देखा है ।।
आज अना से हार गया कोई पोरस ।
तुझमें पलता एक सिकन्दर देखा है ।।
एक तबस्सुम बदल गया फरमान मेरा ।
मैंने तेरे साथ मुकद्दर देखा है ।।
कुछ दिन से रहता है वह उलझा उलझा ।
शायद उसने मन के अंदर देखा है ।।
बिन बरसे क्यूँ बादल सारे गुज़र गए ।
मैंने उसकी जमीं को बंजर देखा है ।।
हो जाते जज़्बात बयां सब बातों से ।
नाम उसी का लब पर अक्सर देखा है ।।
खूब दुआएं जो देते थे जीने की ।
आज उन्हीं हाथों में ख़ंजर देखा है ।।
ज़ह्र पिये बस मीरा और सुकरात नहीं ।
मुल्क के हर इंसान में शंकर देखा है ।।
लाचारी का हाल न पूछो अब मुझसे ।।
तेरी खातिर सब कुछ खोकर देखा है ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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