2122 1212 22
उसकी सूरत नई नई देखो।
तिश्नगी फिर जगा गई देखो।।
उड़ रही हैं सियाह जुल्फें अब ।
कोई ताज़ा हवा चली देखो ।।
बिजलियाँ वो गिरा के मानेंगे ।
आज नज़रें झुकी झुकी देखो ।।
खींच लाई है आपको दर तक ।
आपकी आज बेखुदी देखो ।।
रात गुजरी है आपकी कैसी ।
सिलवटों से बयां हुई देखो ।।
डूब जाएं न वो समंदर में ।
देखिये फिर लहर उठी देखो ।।
हट गया जब नकाब चेहरे से ।
कोई बस्ती यहां जली देखो ।।
वो तसव्वुर में लिख रहा ग़ज़लें ।
याद आती है आशिकी देखो ।।
खत को पढ़कर जला दिया उसने ।
चोट दिल पर कहीं लगी देखो।।
उसके दिल में धुंआ अभी तक है ।
आग अब तक नहीं बुझी देखो ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
उसकी सूरत नई नई देखो।
तिश्नगी फिर जगा गई देखो।।
उड़ रही हैं सियाह जुल्फें अब ।
कोई ताज़ा हवा चली देखो ।।
बिजलियाँ वो गिरा के मानेंगे ।
आज नज़रें झुकी झुकी देखो ।।
खींच लाई है आपको दर तक ।
आपकी आज बेखुदी देखो ।।
रात गुजरी है आपकी कैसी ।
सिलवटों से बयां हुई देखो ।।
डूब जाएं न वो समंदर में ।
देखिये फिर लहर उठी देखो ।।
हट गया जब नकाब चेहरे से ।
कोई बस्ती यहां जली देखो ।।
वो तसव्वुर में लिख रहा ग़ज़लें ।
याद आती है आशिकी देखो ।।
खत को पढ़कर जला दिया उसने ।
चोट दिल पर कहीं लगी देखो।।
उसके दिल में धुंआ अभी तक है ।
आग अब तक नहीं बुझी देखो ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
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