2122 1122 1122 22
गर शराफ़त में उसे सर पे बिठाया होगा ।
ज़ुल्म उसने भी बड़ी शान से ढाया होगा ।।
लोग एहसान कहाँ याद रखे हैं आलिम ।
दर्द बनकर वो बहुत याद भी आया होगा ।।
हिज्र की रात के आलम का तसव्वुर है मुझे ।
आंख से अश्क़ तेरे गाल पे आया होगा ।।
मुद्दतों बाद तलक तीरगी का है आलम ।
कोई सूरज भी वो मगरिब में उगाया होगा ।।
कर गया है वो मुहब्बत में फना की बातें ।
फिर शिकारी ने कहीं जाल बिछाया होगा ।।
कत्ल करने का हुनर सीख लिया है उसने ।
तीर आंखों से कई बार चलाया. होगा ।।
ढूढ़ मन्दिर में न मस्जिद में खुदा को अब तू ।
वो यकीनन तेरे दिल मे ही समाया होगा ।।
कौन कहता है कि वादे से मुकर जाता है ।
चाँद शरमा के तेरी बज्म में आया होगा ।।
इत्तिफाकन ही नज़र मिल गयी थी जो उनसे ।
क्या खबर थी वो मेरी जान का साया होगा ।।
मेरी बरबाद मुहब्बत की निशानी लेकर ।
ख्वाब उसने भी सरेआम जलाया होगा ।।
क्या लिखूं आज सितमगर की जफ़ा का किस्सा ।
बाद मरने के मिरे जश्न मनाया होगा ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
गर शराफ़त में उसे सर पे बिठाया होगा ।
ज़ुल्म उसने भी बड़ी शान से ढाया होगा ।।
लोग एहसान कहाँ याद रखे हैं आलिम ।
दर्द बनकर वो बहुत याद भी आया होगा ।।
हिज्र की रात के आलम का तसव्वुर है मुझे ।
आंख से अश्क़ तेरे गाल पे आया होगा ।।
मुद्दतों बाद तलक तीरगी का है आलम ।
कोई सूरज भी वो मगरिब में उगाया होगा ।।
कर गया है वो मुहब्बत में फना की बातें ।
फिर शिकारी ने कहीं जाल बिछाया होगा ।।
कत्ल करने का हुनर सीख लिया है उसने ।
तीर आंखों से कई बार चलाया. होगा ।।
ढूढ़ मन्दिर में न मस्जिद में खुदा को अब तू ।
वो यकीनन तेरे दिल मे ही समाया होगा ।।
कौन कहता है कि वादे से मुकर जाता है ।
चाँद शरमा के तेरी बज्म में आया होगा ।।
इत्तिफाकन ही नज़र मिल गयी थी जो उनसे ।
क्या खबर थी वो मेरी जान का साया होगा ।।
मेरी बरबाद मुहब्बत की निशानी लेकर ।
ख्वाब उसने भी सरेआम जलाया होगा ।।
क्या लिखूं आज सितमगर की जफ़ा का किस्सा ।
बाद मरने के मिरे जश्न मनाया होगा ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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