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यूँ तीरगी के साथ ज़माने गुज़र गए ।
वादे तमाम करके उजाले मुकर गए ।।
शायद अलग था हुस्न किसी कोहिनूर का ।
जन्नत की चाहतों में हजारों नफ़र गए ।।
ख़त पढ़ के आपका वो जलाता नहीं कभी ।
कुछ तो पुराने ज़ख़्म थे पढ़कर उभर गए।।
उसने मेरे जमीर को आदाब क्या किया ।
सारे तमाशबीनों के चेहरे उतर गए ।।
क्या देखता मैं और गुलों की बहार को ।
पहली नज़र में आप ही दिल मे ठहर गए ।।
अरमान था मेरा कि मैं पहुँचूँगा चाँद तक ।
इस बेरुखी के दौर में सपने बिखर गए ।।
कुछ खैर ख्वाह भी थे पुराने शजर के पास ।
आयीं जो आँधियाँ तो वो जाने किधर गए ।।
तकदीर हौसलों से बनाने चला था वो ।
आखिर गयी हयात सितारे जिधर गए ।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
यूँ तीरगी के साथ ज़माने गुज़र गए ।
वादे तमाम करके उजाले मुकर गए ।।
शायद अलग था हुस्न किसी कोहिनूर का ।
जन्नत की चाहतों में हजारों नफ़र गए ।।
ख़त पढ़ के आपका वो जलाता नहीं कभी ।
कुछ तो पुराने ज़ख़्म थे पढ़कर उभर गए।।
उसने मेरे जमीर को आदाब क्या किया ।
सारे तमाशबीनों के चेहरे उतर गए ।।
क्या देखता मैं और गुलों की बहार को ।
पहली नज़र में आप ही दिल मे ठहर गए ।।
अरमान था मेरा कि मैं पहुँचूँगा चाँद तक ।
इस बेरुखी के दौर में सपने बिखर गए ।।
कुछ खैर ख्वाह भी थे पुराने शजर के पास ।
आयीं जो आँधियाँ तो वो जाने किधर गए ।।
तकदीर हौसलों से बनाने चला था वो ।
आखिर गयी हयात सितारे जिधर गए ।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-12-2017) को "सत्य को कुबूल करो" (चर्चा अंक-2825) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आ0 चर्चा मंच पर ग़ज़ल को स्थान देने केलिए विशेष आभार व्यक्त करता हूँ । सादर नमन ।
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