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है आई खुश्बू तेरी जिधर से ।
गुज़र रहा हूँ उसी डगर से ।।
नशे का आलम न पूछ मुझसे ।
मैं पी रहा हूँ तेरी नज़र से ।।
हयात मेरी भी कर दे रोशन ।
ये इल्तिज़ा है मेरी क़मर से ।।
हजार पलके बिछी हुई हैं ।
गुज़र रहे हैं वो रहगुजर से ।।
खफा हैं वो मुफलिसी से मेरी ।
जो तौलते थे मुझे गुहर से ।।
यूँ तोड़कर तुम वफ़ा के वादे ।
निकल रहे हो मिरे शहर से ।।
उन्हें पता हैं मेरी खताएँ ।
वे राज लेते हैं मोतबर से ।।
न कर तू साजिश न काट उसको ।
मिलेगा साया उसी शजर से ।।
हैं आसुओं को छुपाना मुश्किल ।
निकल पड़े हैं जो चश्मे तर से ।।
बड़ी उम्मीदें थी आज उससे ।
मिला कहाँ वो मुझे जिगर से ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
है आई खुश्बू तेरी जिधर से ।
गुज़र रहा हूँ उसी डगर से ।।
नशे का आलम न पूछ मुझसे ।
मैं पी रहा हूँ तेरी नज़र से ।।
हयात मेरी भी कर दे रोशन ।
ये इल्तिज़ा है मेरी क़मर से ।।
हजार पलके बिछी हुई हैं ।
गुज़र रहे हैं वो रहगुजर से ।।
खफा हैं वो मुफलिसी से मेरी ।
जो तौलते थे मुझे गुहर से ।।
यूँ तोड़कर तुम वफ़ा के वादे ।
निकल रहे हो मिरे शहर से ।।
उन्हें पता हैं मेरी खताएँ ।
वे राज लेते हैं मोतबर से ।।
न कर तू साजिश न काट उसको ।
मिलेगा साया उसी शजर से ।।
हैं आसुओं को छुपाना मुश्किल ।
निकल पड़े हैं जो चश्मे तर से ।।
बड़ी उम्मीदें थी आज उससे ।
मिला कहाँ वो मुझे जिगर से ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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