तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

गजल

                         गजल


एक साजिश के तहत मुल्क बटाने निकले ।

फ़ौज के फख्र को मिट्टी में मिलाने निकले ।।

 

रूह  शरमाई  शहीदों  की  उनकी हरकत से ।

जिनकी खातिर हुए फना वो बेगाने निकले ।।

 

मजहबी  आग  लगा  दी  है  बड़ी  जुर्रत से ।

ये बदगुमान अमन को ही मिटाने निकले ।।

 

 अकल बख्से खुदा भी ऐसे  काली दासों की ।

घोसला जिस पे था वो शाख कटाने निकले ।।

 

फसल  उगाई  नफरतों  की  बेहतरीन यहाँ ।

अपनी  कुर्सी के  लिए  देश जलाने निकले ।।

 

जब  से  इंशानियत झुलसी है उनके दंगों से ।

घर से मुजरे  के  लिए  खूब  खजाने निकले ।।

 

इस ज़माने में शुकूं परस्त बनके  देख जरा ।

कत्ल  होते  हैं  जो  तहजीब बचाने निकले ।।

 

6 टिप्‍पणियां:

  1. बढिया ग़ज़ल....
    अर्थपूर्ण शेर कहे हैं !!

    अनु

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  2. सामयिक उम्दा गजल
    काश ये देश का दुर्भाग्य ना होता

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  3. मजहबी आग लगा दी है बड़ी जुर्रत से ।
    ये बदगुमान अमन को ही मिटाने निकले ।।......बहुत बढिया गजल..

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  4. वाह... उम्दा रचना, खूबसूरत शेर...बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@भूली हुई यादों

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  5. मजहबी आग लगा दी है बड़ी जुर्रत से ।
    ये बदगुमान अमन को ही मिटाने निकले ..
    गहराई लिए हर शेर ... सटीक ... ऐसे लोगों से देश को बचाना होगा ...

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  6. उम्दा रचना, खूबसूरत शेर

    Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर ….अब आंगन में फुदकती गौरैया नजर नहीं आती

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