तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

मंगलवार, 18 नवंबर 2014

मौत

मौत 

तू कितनी भोली है 
जिन्दगी की खूब सूरत सहेली है ।
चोली दामन का साथ 
दोनों के अपने जज्बात
नहीं कोई विरोध
जहाँ जन्दगी वही मौत 
और जहाँ मौत वहीँ जिन्दगी
 पर क्या जारी रहती है दुआ बन्दगी ?
मौत कभी तुम चुपके से आती हो ।
तो कभी शोर मचाती हो 
डंके की चोट पर आती हो ।
जिन्दगी को साथ ले जाती हो
एक नीद एक विराम
या फिर अनंत विश्राम 
और फिर वापस आ जाती है जिन्दगी 
नयी काया के साथ ।
फिर खुशियों की बरसात ।
फिर नव जन्मे बच्चे की किलकारी 
फिर मिल जाती है बचपन की फुलवारी।
मिलता है जवानी का प्रमाद 
प्रणय का उन्माद 
बुढापा और फिर थक जाना 
अनेकानेक कष्टों का करीब आना 
सहेली जिन्दगी को नारकीय
 वेदना से बचा लेती हो 
जिन्दगी को गोंद में समा लेती हो।
तुम नहीं देख पाती हो 
दर्द से विलखती जिन्दगी 
जीवन की बीमारियों की दरिंदगी
मौत तेरा शुक्र है 
उसे फिर से मिल जाता है वही यौवन 
वही जीवन ।
वही मकरंद 
वही आनंद ।
मौत ! सिर्फ तुम्हारी कृपा से 
असीम अनुकम्पा से 
परमानंद के सतत प्रवाह में 
बहती जिन्दगी बार बार 
रूप  बदल कर उर्जावान हो जाती है।
और फिर एहसान फरामोस होकर
 मौत तुम्हे भूल जाती है ।। 
हाँ मौत तुम्हे भूल जाती है ।
तुम्हे भूल जाती है ।।

       - नवीन मणि त्रिपाठी

1 टिप्पणी:

  1. पूरी यात्रा का एक सुन्दर चित्र खींचा है. सुन्दर रचना त्रिपाठी जी.

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