तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

बुधवार, 19 अगस्त 2015

मनुहारों का गीत लिखूंगा

---***गीत***---

        
                      मनुहारों    का   गीत  लिखूंगा ।
                      मैं भी मन  का  मीत  लिखूंगा ।।

सौंदर्य   की   सहज  कल्पना ।
जीवन  की   अतृप्त   वासना ।
भावो   की   निर्द्वन्द  सर्जना ।
अंतर्मन   की   विरह   वेदना ।
निर्ममता   की   घोर  यंत्रणा ।
गयी  सिमट  सी मूल चेतना ।।

                     अंधकार   की  छाती   पर  मैं 
                     आशाओ का जीत  लिखूंगा ।।
                     मनुहारों   का  गीत  लिखूंगा ।
                     मैं भी  मन का  मीत  लिखूंगा ।।

घूँघट  पट   में  चाँद  सलोना।
महक उठा तन का हर कोना।
उर - स्पंदन   गुंजित   होना ।
भावुकता   का   रंग  पिरोना ।
धरती  प्यासी व्याकुल  होना ।
मेघों  का वह तपन  भिगोना ।

                      पायलिया की  छमछम मादक 
                      नूपुर   का  संगीत   लिखूंगा।।
                      मनुहारों   का  गीत  लिखूंगा ।
                      मैं भी मन  का  मीत लिखूंगा ।।

अंगड़ाई   में  मधुरिम  यौवन ।
तरुणाई सा  बहका  चितवन ।
इच्छाओं का  अद्भद  मधुवन।
प्रणय गन्ध विखराता उपवन।
अलक छटा लहराती बन ठन।
आलिंगन को व्यकुल तनमन ।

                सत रज तम में प्रीति  मिलाकर
                नव जीवन  का रीत  लिखूंगा ।।
                मनुहारों   का  गीत   लिखूंगा ।
               मैं भी मन  का  मीत  लिखूंगा ।।

जब   अलंकार   श्रृंगार   खिले।
तब आकर्षण  प्रतिकार  मिले ।
फिर  रात्रि  याचना  दीप  जले ।
आसक्ति   व्यथाओ  में  बदले । 
हिमखण्ड  हुए पिघले  पिघले ।
फिर ज्वार कहाँ उनसे सम्भले।

               प्रिय के  ऊष्ण  कपोलों  पर  मैं ,
               तृप्ति  मिलन का शीत लिखूंगा ।
               मनुहारों   का   गीत   लिखूंगा ।
               मैं  भी  अपना  मीत   लिखूंगा ।।

                              -नवीन मणि त्रिपाठी

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (21.08.2015) को "बेटियां होती हैं अनमोल"(चर्चा अंक-2074) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

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  2. भावों और शब्दों का अद्भुत संयोजन ...लाज़वाब गीत

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  3. अत्यंत सुंदर भावपूर्ण गीत. बधाई हो नवीन जी इस प्रस्तुति के लिए.

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