तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

ग़ज़ल


इस   कदर  रूठी   है  किस्मत  आजकल।
बे  वजह  लगती   है  तोहमत  आजकल।।

जिसने   तोडा   मुल्क   का  हर  हौसला ।
बन  रही  उसकी  भी  तुरबत  आजकल।।

चन्द   लम्हों    की    लगी   हैं   बोलियाँ ।
अब  कहाँ मिलती है मोहलत आजकल।।

ढूंढ   मत   इन्साफ   की   उम्मीद  अब ।
हर तरफ जहमत ही जहमत आजकल ।।

मत   कहो   मजबूरियों  को  शौक  तुम ।
बिक  रही   बाज़ार  अस्मत  आजकल ।।

लुट  गयी   जागीर   उस   अय्यास  की ।
वह मिटा  है उसकी  निस्बत आजकल ।।

गैर   मुमकिन   है   सराफत   हो    बची ।
हो   गयी  मशहूर   सोहबत   आजकल ।।

वास्ता  जिसका   खुदा   से  कुछ  न था ।
फिर  वहीँ  बरसी  है  रहमत  आजकल ।।

      --नवीन मणि त्रिपाठी

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