तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

शनिवार, 5 नवंबर 2016

है जिस पे कत्ल का इल्जाम वो मासूम लगता है

1222 1222 1222 1222
तू बचकर चल, जमाना ये बड़ा मरहूंम लगता है ।
है जिस पे कत्ल का इल्जाम वो मासूम लगता है ।।

पढ़ी है कुछ लकीरे जब से वो तकदीर की मेरी ।
मुझे हंसकर कहा  उसने कोई  मादूम  लगता है ।।

गुलामी पर बहस अब  बन्द होनी  चाहिए  यारों ।
सुना है  कह रही है वो , मेरा  मख़्दूम  लगता है ।।

ये राजे ग़म न तुम पूछो,बयां करना भी मुश्किल है।
इरादा   क्यों  मुझे   तेरा  यहां  मक्तूम  लगता  है ।।

न जाने क्यूँ उसे हर बार शक़  होता  रहा हम पर ।
नई फ़ितरत का आशिक़ है जरा मग्मूम लगता है ।।

शराफ़त से अदावत है उसे  परवाह ही  किसकी ।
हैं उसकी  हरकतें ऐसी कि वो  मज्मूम लगता है ।।

बिसातें बिछ चुकी हैं चाल  का अंदाज शातिर है ।।
बदलना इस तरह लहजा सही मजऊम लगता है ।।

 नवीन मणि त्रिपाठी 

शब्दार्थ

मा'दूम....(फ़ना)
मख़्दूम  ....स्वामी, आका
मक्तूम .....छिपा हुआ
मज्ज़ूम   ...निश्चित
मरहूम  ... स्वर्गवासी
मग्मूम   ...दुखित, रंजीदा
मज़्ऊम  ..विचारा हुआ, सोचा हुआ
मज़्मूम    ..अश्लील निंदित

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