तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

रविवार, 25 मार्च 2018

आप मेरी बेबसी पर मुस्कुराते जाइये

2122 2122 2122 212

आज  के  हालात  पर  तुहमत  लगाते  जाइये ।
आप   मेरी   बेबसी   पर   मुस्कुराते   जाइये ।।

आंख पर पर्दा अना का खो  गयी  शर्मो  हया ।
रंग गिरगिट की  तरह  यूँ  ही  दिखाते जाइये ।।

तिश्नालब  हैं   रिन्द  सारे   मैकदा  है  आपका ।
जाम  रब  ने  है   दिया  पीते  पिलाते   जाइये ।।

इस चिलम में आग है  गम  को जलाने के लिए ।
फिक्र  अपनी  भी  धुएँ  में  कुछ  उड़ाते जाइये ।।

अश्क जो दिखता नहीं  वो शेर में छलका बहुत ।
चन्द  मिस्रे   जो   कहे   थे  वो  सुनाते  जाइये ।।

साथ सारा सिर्फ मरघट तक  रहेगा आपका ।
कुछ खुदा के साथ  भी रिश्ता बनाते जाइये ।।

लोग  सारे   आपके  हैं  आपकी  सरकार  है ।
जुल्म की यह  इंतिहा लेकिन छुपाते  जाइये ।।

रह न जाये आपसे  मेरा  कोई शिकवा गिला ।
फर्ज कुछ ऐसा  मुहब्बत का  निभाते जाइये ।।

है  बड़ी   चर्चा   में  शायद  आपकी  बेपर्दगी ।
आशिकों की है गली बस दिल जलाते जाइये ।।

है तसव्वुर  चाँद  का तो हुस्न  होगा  बेनकाब ।
बेखुदी में उस ग़ज़ल  को  गुनगुनाते  जाइये ।।

जा रहे हैं रूठ कर फिर रोकना मुमकिन कहाँ ।
दिल  से  कैसे  जाएंगे  यह  तो  बताते जाइये ।।

       ---नवीन मणि त्रिपाठी
      मौलिक अप्रकाशित

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