*1212 1122 1212 22*
नई नई ये हुकूमत जरा सँभल के चलो ।
बढ़ी हुई है लियाकत जरा सँभल के चलो ।।
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सुना है मुल्क में खाकर वो पाक ही भजते ।
है आप की भी शिकायत जरा सँभल के चलो ।।
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गुनाह करके मिटाना हुआ बहुत मुश्किल।
नहीं मिलेगी जमानत जरा सँभल के चलो ।।
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वो कह गये हैं चलाएंगे हम भी बुलडोजर ।
ये देखिए तो हिमाकत जरा संभल के चलो ।।
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न जिक्र कर न ले पंगा कभी भी औरत से ।
मिली है खूब हिदायत जरा सँभल के चलो ।।
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कई. मुकाम थे बाबा को देखिए हासिल ।
मिटी तमाम नफ़ासत जरा सँभल के चलो ।।
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तलाक तीन से पर्दा उठा दिया उसने ।
तलाक पर है कयामत जरा सँभल के चलो ।।
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घरों में नोट दबाकर नही. रखो वरना ।
है जोरदार नदामत जरा सँभल के चलो ।।
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उन्हें है वोट से मतलब नजर उसी पर है ।
है जातिवाद सलामत जरा सँभल के चलो ।।
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उगल रहे हैं वो लारा को और चारा भी ।
उजड़ गई है रियासत जरा सँभल के चलो ।।
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वो हेकड़ी हुई है गुम जो पत्थरों की थी ।
बड़ी है सख़्त अदालत जरा सँभल के चलो ।।
नावीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
नई नई ये हुकूमत जरा सँभल के चलो ।
बढ़ी हुई है लियाकत जरा सँभल के चलो ।।
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सुना है मुल्क में खाकर वो पाक ही भजते ।
है आप की भी शिकायत जरा सँभल के चलो ।।
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गुनाह करके मिटाना हुआ बहुत मुश्किल।
नहीं मिलेगी जमानत जरा सँभल के चलो ।।
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वो कह गये हैं चलाएंगे हम भी बुलडोजर ।
ये देखिए तो हिमाकत जरा संभल के चलो ।।
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न जिक्र कर न ले पंगा कभी भी औरत से ।
मिली है खूब हिदायत जरा सँभल के चलो ।।
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कई. मुकाम थे बाबा को देखिए हासिल ।
मिटी तमाम नफ़ासत जरा सँभल के चलो ।।
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तलाक तीन से पर्दा उठा दिया उसने ।
तलाक पर है कयामत जरा सँभल के चलो ।।
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घरों में नोट दबाकर नही. रखो वरना ।
है जोरदार नदामत जरा सँभल के चलो ।।
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उन्हें है वोट से मतलब नजर उसी पर है ।
है जातिवाद सलामत जरा सँभल के चलो ।।
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उगल रहे हैं वो लारा को और चारा भी ।
उजड़ गई है रियासत जरा सँभल के चलो ।।
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वो हेकड़ी हुई है गुम जो पत्थरों की थी ।
बड़ी है सख़्त अदालत जरा सँभल के चलो ।।
नावीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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