तेरे पहलू में आकर हम सुकूँ अपना जला बैठे ।
न जाने क्या हुआ हमको जो दिल तुझसे लगा बैठे ।।
हवाएं भी मुख़ालिफ़ हो गईं तूफ़ान के जैसी ।
कई थीं ख्वाहिशें अपनी हवाओं में उड़ा बैठे ।।
हुई है आज महफ़िल में तेरेआने की फिर चर्चा ।
यहां पलकें उमीदें दिल जिगर सब कुछ बिछा बैठे ।।
बड़ी उलझी कहानी हो पढूं मैं खाक क्या तुमको ।
मेरी खामोश चाहत पर सुना पहरा लगा बैठे ।।
बड़ी क़ातिल निगाहें हैं बड़ी कमसिन अदाएं हैं ।
तेरी जुल्फों के साये में , मुकद्दर आजमा बैठे ।।
गज़ब ये हुस्न का जलवा लबों पर देखकर जुम्बिश ।
तुम्हारी शोखियों पर आरजू का घर बना बैठे ।।
न पूछो तुम कहाँ तक देख लेती हैं यहां नज़रें ।
तसव्वुर में तुम्हारे हुस्न से पर्दा उठा बैठे ।।
भरी बोतल सी छलकी जो तुम्हारी आंख से मदिरा ।
बचा जो होश थोड़ा था उसे भी हम लुटा बैठे ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
न जाने क्या हुआ हमको जो दिल तुझसे लगा बैठे ।।
हवाएं भी मुख़ालिफ़ हो गईं तूफ़ान के जैसी ।
कई थीं ख्वाहिशें अपनी हवाओं में उड़ा बैठे ।।
हुई है आज महफ़िल में तेरेआने की फिर चर्चा ।
यहां पलकें उमीदें दिल जिगर सब कुछ बिछा बैठे ।।
बड़ी उलझी कहानी हो पढूं मैं खाक क्या तुमको ।
मेरी खामोश चाहत पर सुना पहरा लगा बैठे ।।
बड़ी क़ातिल निगाहें हैं बड़ी कमसिन अदाएं हैं ।
तेरी जुल्फों के साये में , मुकद्दर आजमा बैठे ।।
गज़ब ये हुस्न का जलवा लबों पर देखकर जुम्बिश ।
तुम्हारी शोखियों पर आरजू का घर बना बैठे ।।
न पूछो तुम कहाँ तक देख लेती हैं यहां नज़रें ।
तसव्वुर में तुम्हारे हुस्न से पर्दा उठा बैठे ।।
भरी बोतल सी छलकी जो तुम्हारी आंख से मदिरा ।
बचा जो होश थोड़ा था उसे भी हम लुटा बैठे ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें