तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

आज का पंडित ,महा दलित हो गया है

आज का पंडित ,महा दलित हो गया है




भिक्षा के सहारे ,जिन्दगी की आस |
सदियों से उसका इतिहास |
कुछ मिल गया तो खाया ,
वरना भूखा ही सोया |
सदैव लक्ष्मी को दुत्कारा |
सरस्वती को पुकारा |
विद्या का पुजारी बन
जीवन बिताया |
विद्या का दान कर समाज को उठाया |
सात्विकता का पाठ पढाया |
नीति -अनीति का ज्ञान कराया |
भारतीय समाज को सभ्य बनाया |
नहीं बनना चाहा  ऐश्वर्य का प्रतीक |
विलासिता से नहीं कर सका प्रीति |
सर्वत्र जीवन मानव कल्याण में लगाता रहा |
वेद,पुराण ,ज्योतिष ,खगोल को
सजोता रहा |
वैज्ञानिकता को धर्म में पिरोता रहा |
पवित्रता की गंगा से सबको भिगोता रहा |
नहीं टूटा वह मुगलिया भायाक्रंतों से |
नहीं डिगा वह आपने सिद्धांतों से |
कभी दधीची तो कभी परशुराम बन
अनीति का दमन किया |
कभी मंगल तो कभी आजाद बन ,
गुलामी को दफ़न किया |
राष्ट्र हित में उसकी असंख्य कुर्बानियां |
भारतीय गौरव की अनगिनत निशानियाँ |
आखिर क्या दिया उसको इस देश ने ?
तुच्छ राजनीती के गंदे परिवेश ने |
आज वह मौन है |
अब उसकी सुनता ही कौन है |
अब उसका अस्तित्व खतरे में है |
जातीय संघर्ष के कचरे में है |
योग्यता के बाद भी अब वह अयोग्य है |
अपमान तिरष्कार व आभाव ही
उसका भोग्य है |
आज उसकी प्रतिभाएं कुंद हो रही हैं |
जीवन की आशाएं धुंध हो रहीं हैं |
भारतीय राजनीती की ओछी मानसिकता
की शिकार है |
गरीबी के दंस से ,
टूटता बिखरता उसका परिवार है |
दो वक्त की रोटी में बदहवास .....
पेट की आग में जलता अहसास......
बच्चों को पढ़ाना..|
अपने पैरों पर चलाना ...
कितना दूर हो गया है |
आरक्षण की तलवार से ,
सब कुछ चकना चूर हो गया है |
अब उसके बच्चे होटलों पर मिलते |
वे वहाँ कप प्लेट धुलते |
अब उसके घर की महिलाएं,
ब्यूटी पार्लर चलती हैं |
जिन्हें दलित कहते हैं ,
उनको सजातीं हैं |
अब वह भी शहर में रिक्शा चलाते मिलता है |
जिन्हें दलित कहते हैं ,
उनको वह ढोता है |
मजदूरी करके पाल रहा है पेट
उसके चरित्र का भी लग रहा है रेट |
ऐसे लोकतंत्र को बारम्बार धिक्कार है |
जहाँ योग्यता नहीं जाति आधार है |
आरक्षण
प्राकृतिक सिद्धांतो के बिरुद्ध है |
प्रकृति में
अयोग्यता का मार्ग अवरुद्ध है |
वैसाखी के सहारे राष्ट्र का विकास ,
एक कोरी कल्पना है |
टूट रहा लोकतंत्र का विश्वास ,
ये कैसी विडम्बना है |
हे भारतीय नेताओं !
अपने निहित स्वार्थों के खातिर |
सामाजिक समरसता को विषाक्त ,
कर ही दिया आखिर |
कब तक सेकोगे
जातिवाद की आग पर रोटियां ?
तुम्हारे मत -लोभ से,
देश टूट जायेगा |
वक्त तुम्हारी करतूतों पर ,
कालिख पोत जायेगा |
अब भी समय है ,
जागो और देश बचाओ |
अमूल्य प्रतिभाओं को पहचानो ,
और देश में सजाओ |
तुम्हारी करनी का परिणाम ,
परिलक्षित हो गया है |
सामाजिक विघटन
से वह विचलित हो गया है |
वह तुम्हारे देश की सम्पदा है ,
उसे डूबने से बचाओ |
उसकी योग्यता को सम्मान दिलाओ |
जाति आधारित आरक्षण को मिटाओ |
तुम्हारी छुद्रता से राष्ट्र कलंकित हो गया है |
हाँ यही सच है |
आज का पंडित महा दलित हो गया है ||
आज का पंडित महा दलित हो गया है ||



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