सलाम ए इश्क दे गयीं जुल्फे ।
महफ़िलों में सवर गयीं जुल्फे ।।
बड़ी सहमी हुई अदाओं में ।
तिश्नगी फिर बढ़ा गयीं जुल्फें ।।
खत्म थे हौसले जज्बातों के ।
कुछ उम्मीदें जगा गयीं जुल्फे ।।
उसे कमसिन न कहो तुम यारों ।
आज लहरा के वो गयी जुल्फे ।।
चाँद पर चार चाँद है लगता
गाल पे जब भी छा गयी जुल्फें ।।
जख्म इक उम्र से भरा ही नहीं ।
तीर दिल पर चला गयीं जुल्फें ।।
मेरी उल्फत की तू बनी शोला ।
घर मेरा फिर जला गयीं जुल्फें ।।
उम्र गुजरी है किन तजुर्बों से ।
आइना कुछ दिखा गयीं जुल्फें ।।
बहुत उलझी हुई बिखरी बिखरी ।
रात का सच बता गयीं जुल्फें ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (06-12-2015) को "रही अधूरी कविता मेरी" (चर्चा अंक-2182) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Genius can not make do not have to work, not a substitute for labor. To develop talent, we must learn and highly stressful work long hours. The more talented people, the task he faces the more complex and more important.
जवाब देंहटाएं____________________________
I like: Buy FIFA Coins and Cheap FIFA Coins
बहुत उलझी हुई बिखरी बिखरी ।
जवाब देंहटाएंरात का सच बता गयीं जुल्फें !
सुन्दर अभिव्यक्ति ..... मंगलकामनाएं आपको !
aap sb ka bahut aabhar
जवाब देंहटाएं