तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

सोमवार, 28 दिसंबर 2015

तो बागी हूँ मैं अपनी जीत की तलवार लिखता हूँ


कातिलों  के  चमन  की  हर  दरो  दीवार  लिखता हूँ ।
यहाँ  नफ़रत  के  साये  में वतन  से प्यार लिखता  हूँ ।।

तू मुल्के  मुख़बिरी अय्याशियों  के  नाम  कर  डाला ।
जो  डायन  कह गया  माँ  को  उसे गद्दार लिखता हूँ।।

हों  पैरोकार  दहशतगर्द  के  जब  भी  सियासत  में ।
मिटाकर  हस्तियां  उनकी नई  सरकार लिखता  हूँ ।।

उखड़ती  ईट  सड़को  पर  तरक्की  देख ली  सबने ।
तेरे जुमलों शिगूफों  का  बड़ा  व्यापार  लिखता  हूँ ।।

गले जब तुम मिले उस से तो शक बदला  यकीनों  में ।
भ्रष्टता  का   नहीं  तुझको  मै  पहरेदार   लिखता  हूँ ।।

जलाकर  राख  करते जो अमन  का हौसला अक्सर ।
कलम  से  मैं  उन्हीं  के  वास्ते  अंगार  लिखता  हूँ ।।

किसी जन्नत की  माफिक  सैफई  में जगमगाहट  है।
अंधेरों  से  तड़पते  गाँव  का  अधिकार  लिखता हूँ ।।

रोटियां  छीन  ली तुमने  जेहन  दारों  की   थाली  से ।
गुनाहे   सिलसिला  तेरा  यहाँ  सौ  बार  लिखता  हूँ ।।

बगावत  है यहाँ  गर सच  को लिख देना किताबों में ।
तो बागी हूँ  मैं  अपने  जीत की तलवार  लिखता हूँ ।।

         - नवीन मणि त्रिपाठी

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