तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

सोमवार, 1 अक्तूबर 2018

हैं मिलते लोग अब कितने सयाने

1222 1222 122
तेरे  आने  से  आये  दिन   सुहाने ।
हैं  लौटे  फिर  वही  गुजरे ज़माने ।।

भरा अब तक नही है दिल हमारा ।
चले  आया  करो  करके   बहाने ।।

हमारे   फख्र   की   ये  इन्तिहा   है ।
वो  आये  आज हमको आजमाने ।।

बड़ी शिद्दत से तुझको पढ़ रहा था ।
हवाएं   फिर   लगीं   पन्ने   उड़ाने ।।

शिकायत दर्ज की जब दिल में हमने ।
अदाएँ   तब   लगीं   पर्दा   हटाने ।।

नज़र   से   लूट   लेना   चाहते   हैं ।
हैं मिलते लोग अब कितने सयाने ।।

न चर्चा कर यहाँ अपनी वफ़ा का ।
अभी  तक  घाव  जिन्दा हैं पुराने ।।

गवाही   आँख  उनकी   दे  रही   है ।
वो  आए  हैं  फ़क़त  रस्में  निभाने ।।

जरा सी सच बयानी  हो  गयी  तो  ।
ज़माना  आ गया  मुझको झुकाने ।।

नसीहत  दे  रही  है  मुफ़लिसी भी ।
लगे  हैं  यार  सब   आँखे   चुराने ।।

        ---नवीन मणि त्रिपाठी
            मौलिक अप्रकाशित

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