तीखी कलम से

मंगलवार, 23 दिसंबर 2014

पाकिस्तान को सांप पालने का सबक



 
     
      पाकिस्तान के पेशावर में निर्दोष बच्चों का आत्मघाती तालिबानी आतंकवादियों ने कत्लेआम किया जिसमें 132 बच्चों की मौत सहित कुल 148 लोगो के मारे जाने की खबर ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है । पूरा विश्व इन  नृशंस हत्याओं से दहल गया है । भारत में भी इस घटना का व्यापक असर देखा गया । सोसल मीडिया में भारतीय जनता ने इसका भरपूर विरोध किया । फेस बुक और व्हाट्स एप पर  जली मोमबत्तियां इस बात की प्रबल साक्षी होकर गवाही दे रही थी की भारत और पाकिस्तान का डी एन ए सचमुच में एक ही है । हम ह्रदय से उनके गम में शामिल थे तभी लस्करे तैयबा के संस्थापक ने जहर उगला उन्होंने ये बयान दिया की "इस घटना का असल गुनाहगार मोदी है इंसा अल्लाह हम बहुत जल्द हिन्दुस्तान से बदला लेंगे।" ख़ास बात यह कि इस बीच तालिबानी आतंकियों ने इस घटना की पूरी जिम्मेदारी भी ले ली थी और आत्मघाती दस्ते में शामिल आतंकियों का चित्र भी जारी कर दिया था परन्तु हाफिज सईद की पूरी कोशिश इस बात पर थी कि इस पूरी प्रतिशोध की आग को दिल्ली पर उड़ेल दी जाए । इसमें कोई शक नहीं की पाकिस्तान पूरे विश्व को आतंक निर्यात करने वाला सबसे बड़ा देश है ।पकिस्तान में आतंकियों की फैक्ट्रियां लगी हैं जहाँ आतंकवादी पैदा किये जाते हैं । और ये आतंकवादियों का सबसे बड़ा संरक्षक देश भी है । 1980 से पाकिस्तान ने घरेलू नीति में परिवर्तन कर आतंकियों का पोषण प्रारम्भ किया इन आतंकियों का इस्तेमाल सेना ने भारत में तबाही फैलाने के लिए किया । जिहाद के नाम पर सिलसिलेवार ढंग से ये आतंकी विश्व के अनेक देशों में अलग अलग संगठन व शाखाओं के रूप में कार्य करने लगे । वर्ष 2011 में तत्कालीन अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी किलिंटन ने बहुत स्पष्ट रूप से पाकिस्तानी हुक्मरानो को यह सन्देश दे दिया था कि " अपने घर के आँगन में साप पालकर यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए की वह आपको काटेंगे ही नहीं "। तब पकिस्तान के सर पर जू ही नहीं रेंगा । वे आपनी नीतियों को जारी रखने में ही भलाई समझते रहे । आज वही साप अब पकिस्तान को डसने लगे हैं ।
    आज पूरी दुनिया की नजर पकिस्तान पर है । लोगो ने उम्मीदे पाल ली हैं शायद पकिस्तान अब पेशावर की घटना के बाद आत्म चिंतन करे और आतंकियों के प्रति अपनी नीति में भारी फेर बदल करें । लेकिन जो लक्षण अभी सामने आ रहे है उस से तो यही लगता है कि सब कुछ ढाक के तीन पात ही हैं । आज पाकिस्तान में फैले सैकड़ो आतंकी संगठनों में वही संगठन बुरा है जो पाकिस्तान को नुकसान पहुंचा रहा है बाकी सभी आतंकी संगठन पाकिस्तानी जनरलों ,सेना,आई यस आई के प्यारे हैं । यह दोहरा आत्मघाती  मापदंड इस बात का इशारा करता है कि अभी इस देश में विनाश की बहुत बड़ी लीला बाकी है ।

      तालिबानी आतंकियों   की  घोषणा कि पाकिस्तानी सेना से बदला लेने के लिए पेशावर हत्या काण्ड किया गया ढूढ़ ढूढ़ कर सैनकों के बच्चों की हत्याएं की गयी । यह क्रूरता क्यों और कहाँ से आयी ? लाजिमी हो जाता है एक नजर तालिबान में क्यों न तालिबान के इतिहास को टटोला जाए
तालिबान आंदोलन  जिसे तालिबान यातालेबान के नाम से भी जाना जाता है, एक सुन्नीइस्लामिक आधारवादी आन्दोलन है जिसकी शुरूआत 1994 में दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान में हुई थी। तालिबान पश्तो भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ज्ञानार्थी (छात्र)। ऐसे छात्र, जो इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा पर यकीन करते हैं। तालिबान इस्लामिक कट्टपंथी राजनीतिक आंदोलन हैं। इसकी सदस्यता पाकिस्तान तथा अफ़ग़ानिस्तान के मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को मिलती है। 1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के दौरान मुल्ला उमर देश का सर्वोच्च धार्मिक नेता था। उसने खुद को हेड ऑफ सुप्रीम काउंसिल घोषित कर रखा था। तालेबान आन्दोलन को सिर्फ पाकिस्तान,सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने ही मान्यता दे रखी थी। अफगानिस्तान को पाषाणयुग में पहुँचाने के लिए तालिबान को जिम्मेदार माना जाता है।
अल कायदा और तालिबान एक सिक्के के दो पहलू बन चुके थे ।अमेरिका में आतंकवादी हमले के बाद दबाव में पाकिस्तानी सेना को इन पर आंशिक कार्यवाही करने के लिए बाध्य होंना पड़ा जिसके परिणाम स्वरुप इनके पाले हुए इन्ही सापों ने इनको डसना प्रारम्भ कर दिया है ।

        दूसरा प्रमुख संगठन लश्करे तैयबा है जिसे भारत विरोध के लिए बनाया गया है जिसका संचालक हाफिज सईद है । जिसे यू यन ओ ने अभी जानबूझ कर हाफिज साहिब के नाम से संबोधित किया था । बाद में भारत के विरोध के उपरान्त सुधार किया गया ।

        भारत के लिए हमेशा हमेशा जहर उगलने वाले कुख्यात आतंवादी हाफिज सईद के पाकिस्तानी सरकार की रहमो करम में बढ़ोत्तरी ही देखी जा रही है । उनकी रैलियो के लिए दो स्पेशल ट्रेन चलवाना उनके लिए पाक के नेक नियति का सबसे बड़ा सबूत है । आइये जान लें हाफिज की कुंडली । कम लोग जानते होंगे कि हरियाणवी गुज्जर है हाफिज सईद
जमात-उद-दावा प्रमुख हाफिज सईद हरियाणा का गुज्जर है। इसका खुलासा उसने खुद किया है। हालांकि विभाजन के वक्त वर्तमान हरियाणा पंजाब का ही हिस्सा था। लेकिन चुकिं हरियाणा बाद में पंजाब से अलग हो एक नया राज्य बना, इसलिए हाफिज सईद ने अपना मूल राज्य हरियाणा ही बताया है। कराची से छपने वाले एक अखबार रोजनामा उम्मत को दिए इँटरव्यू में हाफिज सईद ने कहा है कि विभाजन के वक्त उनका पूरा कुनबा वर्तमान हरियाणा में बसा था। उसके पिता किसान थे और वो किसान गुज्जर परिवार का था। हालांकि सईद ने हरियाणा स्थित अपने गांव और जिला का खुलासा नहीं किया है। वैसे सामान्य रुप से मुस्लिम गुज्जर ज्यादातर हरियाणा के यमुनानगर जिले में है और इससे सटे हुए यूपी के सहारनपुर जिले में भी मुस्लिम गुज्जर काफी है। सईद ने कहा है कि विभाजन के वक्त जब उसका परिवार भारत से चला तो रास्ते में हिंदुओं और सिखों की टोलियों ने उसके परिवार के 36 लोगों की हत्या की।

सईद के अनुसार विभाजन के बाद उसका परिवार पाकिस्तान के सरगोधा में बस गया जहां पर उसके परिवार के कुछ सदस्य जो पहले आ गए थे ने उनके पिता को रहने के लिए एक मिट्टी की बनी झोपड़ी दी थी। बाद में उसके परिवार को सरगोधा के पास ही स्थित एक गांव में 15 एकड़ जमीन दी, जहां से उसके परिवार के जीवन की दूसरी शुरूआत हुई। सईद ने अपने दिए इंटरव्यू में कहा है कि उसकी पढ़ाई बहावलपुर स्थित मदरसा में हुई और बाद में उसने इस्लाम और रीलिजन की पढ़ाई पंजाब यूनिवर्सिटी लाहौर से की। साथ ही दो साल के लिए इस्लाम की पढ़ाई के लिए वो सऊदी अरब भी गया जहां बब बिनबाज से उसने इस्लाम को लेकर काफी कुछ सीखा। हाफिज सईद के अनुसार विभाजन के दौरान उसका परिवार पैदल ही पाकिस्तान पहुंचा। उसके ठीक तीन महीनें बाद उसका जन्म हुआ। सईद के अनुसार उसकी मां अक्सर उसे बताती थी कि वो खुशकिस्मत है कि वो विभाजन के बाद पैदा हुआ। नहीं तो वो जन्म के साथ ही मारा जा सकता था।

सईद के अनुसार उसकी दो शादियां हुई है। पहली शादी तो परिवार की ही एक महिला से हुई थी। उससे उसके तीन बच्चे पैदा हुए। उसमें से दो बेटे फिलहाल हाफिज सईद के साथ ही है। जबकि बेटी की मौत हो गई। एक बेटा लाहौर यूनिवर्सिटी में पढ़ाता है। हाफिज सईद ने दूसरी शादि 2002 में की जो एक विधवा थी। सईद के अनुसार इस शादी का विरोध उसकी पहली पत्नी ने किया। लेकिन पहली पत्नी के बेटे ने शादी का समर्थन किया। क्योंकि जिस महिला के साथ उसने शादी वो किसी शहीद की विधवा थी। इसलिए उस परिवार को सहारा देने के लिए उसने शादी की। सईद के अनुसार लगभग इस तरह की 150 विधवा औरतों को उसके सहयोगियों ने सहारा दिया है। उसके कई सहयोगियों ने इस तरह की विधवाओं से शादी कर उन्हें सहारा दिया है। सईद के अनुसार उसने बिनबाज के ही सलाह पर इस्लाम के प्रचार के लिए कई मदरसे और एक यूनिवर्सिटी की स्थापना पाकिस्तान में की। उसका संगठन पंजाब में कम से कम पांच बड़े अस्पताल चलाता है। इस्लामाबाद और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आए भूकंप के दौरान उसके संगठन ने राहत कार्य चलाया था, जिसकी तारीफ अंतराष्ट्रीय संगठनों ने भी की थी।

गौरतलब है कि जमात-उद-दावा के प्रमुख और मुंबई आतंकी हमले के आरोपी हाफिज सईद पर 50 करोड़ रुपये के इनाम की घोषणा की है। आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का संस्थापक सईद भारत की मोस्‍ट वांटेड अपराधियों की सूची में शामिल है। मुंबई में 26/11 को हुए हमले में 166 लोग मारे गए थे और सैकड़ों अन्‍य घायल हुए थे। उस हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से सईद को सौंपने को कहा था। सईद ने कराची से प्रकाशित होने वाले उर्दू अखबार Roznama Ummat को दिए इंटरव्‍यू में हाफिज ने अपनी कहानी खुद अपनी जुबानी कही। सईद ने अपने शुरुआती जीवन से लेकर लश्‍कर और जमात उद दावा के गठन तक की कहानी बयां की। सईद के पूर्वजों का ताल्‍लुक हरियाणा के गुज्‍जर परिवार से था। सईद के पिता कमाल-उद-दीन एक साधारण किसान थे। विभाजन के बाद हाफिज के पूर्वज हरियाणा से माइग्रेट कर पाकिस्‍तान जा बसे।सईद का दावा है कि बंटवारे के बाद जब उसके परिवार के लोग पाकिस्‍तान पहुंचे तो उनमें से 36 लोगों को मार दिया गया था। सईद ने अपने पिता, मां और परिवार के अन्‍य सदस्‍यों से बंटवारे के वक्‍त हुए हादसों की कहानी सुनी। उसने कहा कि उसके परिवार के लोगों के साथ भारत में बहुत जुल्‍म हुआ और उन्‍हें हरियाणा स्थित पैतृक घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया ।

    ऐसा हाफिज के द्वरा प्रचारित किया जाता रहा और पाकिस्तानी सरकार जनता की नजर में वह प्रबल भारत विरोधी की शक्ल आख्तियार करके अपनी आतंक की दूकान चला रहा है ।

     वर्तमान परिस्थितियों पर अगर गौर करें तो पाकिस्तान में तालिबान की खिलाफ अभियान तेज हो चुका है इस्लामाबाद ! आतंकवादियों के खिलाफ लड़ाई तेज करते हुए पाकिस्तान ने शनिवार को पाकिस्तान तालिबान प्रमुख मुल्ला फजलुल्ला को मार गिराने का दावा किया, वहीं उसने 10 और आतंकवादियों को फांसी पर लटकाने का आदेश जारी करते हुए भारत को इस बात से भी आश्वस्त किया कि मुंबई हमले का कथित मास्टरमाइंडजकीउर रहमान लखवी को रिहा नहीं किया गया है। पेशावर सहित देश के विभिन्न इलाकों में अभियानों के दौरान एक दर्जन आतंकवादियों को ढेर कर दिया गया।
पाकिस्तान में राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश मामलों पर प्रधानमंत्री के सलाहकार सरताज अजीज ने शनिवार को कहा कि 26/11 के मुंबई हमले की साजिश के मुख्य आरोपी जकीउर रहमान लखवी को रिहा नहीं किया गया है और सरकार उसके मामले में एक याचिका दाखिल करने पर विचार कर रही है।
गुरुवार को पाकिस्तान के एक आतंकवाद रोधी अदालत ने लखवी को जमानत दे दी थी, जिसपर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी।
इसी बीच आज अपुष्ट खबरों में कहा गया है कि तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) प्रमुख मुल्ला फजलुल्ला शनिवार तड़के अफगानिस्तान में एक हवाई हमले में मारा गया।
पाकिस्तान के रक्षा मंत्रालय के एक असत्यापित ट्विटर अकाउंट के एक ट्वीट में शनिवार सुबह कहा गया है कि रक्षा मंत्रालय ने फजलुल्ला के मारे जाने की खबर की पुष्टि कर दी है।
पाकिस्तानी सेना ने तालिबान और अन्य आतंकवादियोंके खिलाफ अफगानिस्तान से लगे अशांत कबायली इलाकों में पिछले छह महीनों से एक बड़ा अभियान शुरू कर रखा है।
पेशावर के एक स्कूल पर तालिबान हमले के बाद पाकिस्तानी सेना ने आतंकवाद के खिलाफ अभियान तेज कर दिया है।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ पूरा राष्ट्र एकजुट है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद को किसी भी कीमत पर देश से समाप्त किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि पेशावर की त्रासदी ने देश को एकजुट कर दिया है और अतीत में आतंकवादियों के प्रति जिनके भीतर कोई सहानुभूति रही है, वे भी अब देश को सुरक्षित बनाने के लिए उनके सफाए की आवश्यकता बता रहे हैं।
इस बीच, उत्तरी वजीरिस्तान में अमेरिकी ड्रोन हमले में चार आतंकवादियों के मारे जाने की खबर है।
खुफिया सूत्रों ने कहा कि दत्ता खेल इलाके में ड्रोन ने एक मिसाइल दागा, जिसके कारण ये आतंकवादी मारे गए।वहीं, पेशावर शहर में सुरक्षा बलों तथा आतंकवादियों के बीच संघर्ष में पांच आतंकवादी मारे गए।
यह संघर्ष दारा आदमखेल कस्बे के निकट हुआ, जिसमें प्रमुख कमांडर मुस्तफा उर्फ मानन सहित पांच आतंकवादी मारे गए। मुस्तफा दर्रा आदमखेल इलाके में तालिबान का मुख्य सरगना था।
पेशावर के एक सैनिक स्कूल में हुए बालसंहार में आतंकवादियों को निर्देश देनेवाले आतंकवादी उमर मंसूर ने धमकी दी है कि यदि सेना तथा खुफिया एजेंसियां नहीं रुकीं, तो और बाल संहारों को अंजाम दिया जाएगा।
डान ऑनलाइन की रपट के मुताबिक, टीटीपी की वेबसाइट पर जारी एक वीडियो में मंसूर ने कहा है कि मंगलवार को स्कूल में हुआ हमला सेना की कार्रवाई का जवाब था।
पेशावर में हमले के बाद सजा-ए-मौत पर लगी पाबंदी को प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने बुधवार को हटा दिया था। इसके बाद पंजाब के गृहमंत्री शुजा खंजादा ने कहा कि पाकिस्तान में मौत की सजा पाए आठ आतंकवादियों को शनिवार को फांसी दे दी जाएगी।
जियो टीवी की रपट के मुताबिक, आतंकवादियों को फांसी कोट लकपत, अदियाला तथा बहावलपुर जेल में होगी।
पाकिस्तान की एक आतंकवाद रोधी अदालत ने शुक्रवार को दो अन्य आतंकवादियों को फांसी देने का आदेश दिया, जिन्हें वर्ष 2004 में सांप्रदायिक हत्या के मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी। दोनों को लाहौर से फैसलाबाद जेल स्थानांतरित कर दिया गया है। उम्मीद है कि दोनों को मंगलवार को फांसी पर लटका दिया जाएगा।
वहीं, कराची के सुक्कुर जेल के अधिकारियों ने एक अन्य आतंकवाद विरोधी अदालत से दो कैदियों बेहराम खान तथा सफकत हुसैन को दो अलग-अलग मामलों में फांसी पर लटकाने का आदेश देने का अनुरोध किया है। इसके साथ ही करीब 500 आतंक वादियों को बहुत शीघ्र फांसी पर लटकाने की योजना बन चुकी है । यह सब कुछ उन्ही लोगो के लिए है जो पकिस्तान के लिए खतरा बन चुके हैं परन्तु जो भारत के लिए खतरनाक हैं उनका पोषण आज भी जारी है । हमे उत्साहित होने की जरुरत नहीं है । पाकिस्तानी सेना का बहुत कुछ अस्तित्व भारत विरोध पर ही टिका रहता है । सच्चा लोकतंत्र पाकिस्तान में सेना कभी नहीं आने देगी । भारत और पाकिस्तान की जनता एक दूसरे की संवेदनाओं को मोमबत्तियां जला कर अमन का सन्देश देती रहें परन्तु जब तक पाकिस्तानी सेना और आई एस आई का ह्रदय परिवर्तन नहीं हो जाता तब पकिस्तान यूँ आतंक का निर्यातक देश बना रहेगा ।
      मै तो सिर्फ इतना ही कहूँगा -

तुम्हारे  मुल्क के मासूम  कत्ले आम  हुए।
पस्त  इंसानियत  के  हौसले  तमाम  हुए ।।
बीज दुनिया में दहशतों का तुमने बोया है।
कटी  फसल तो अमन चैन भी हराम हुए।।

                      इति
                        - नवीन मणि त्रिपाठी
       

शनिवार, 20 दिसंबर 2014

हे मोम बत्तियां जलाने वाले

हे मोम बत्तियां जलाने वाले 
शांति प्रिय भारतीय 
नमन है तुम्हारी सहन शीलता पर
पाक के दर्द में विलीनता पर 
तुम सचमुच में महान हो 
तुम्हारा नोबल से सम्मान हो 
तुम्हारी इन्ही संवेदनाओं से 
देश में तेज उजाला होता है ।
बमो का धमाका होता है ।
लाखो हिंदुस्तानियो के हत्यारों के लिए 
तुम्हारी संवेदनाये अनमोल हैं ।
तुम्हारी कृपा से देश में आतंक का 
मेलजोल है ।
तुम्हारी मोमबत्तिया तब नहीं जली 
जब देश में सैकड़ो बे गुनाह मुंबई में मरे ।
जब होटल ताज में लोग जले ।
जब तुम्हारे सैनिको के सर की नुमाइस लगी
जब तुम्हारे विमान को कंधार लाया गया ।
जब तुम्हारे संसद पर हमला हुआ 
जब देश के सैनिको की कारगिल में नृशंश 
हत्याएं हुई ।
और अब हाफिज की तैयारी 
बंद करो ये मानवतावादी दिखने का 
पाखंड ।
नहीं तो ये तुम्हारी देशनिरपेक्षता 
कर देगी  तुम्हारे ही देश को खंड खंड ।

         नवीन

नेह का गीत जब भी लिखा

----**गीत**----

एक   संवेदना , फिर    गयी   चेतना।
मन  की   मधुरिम  कली   खो  गयी।।
नेह   का   गीत  जब    भी    लिखा ।
वो    सिसकती     गली    रो   गयी ।।

एक  तर्पण   लिए   एक  अर्पण लिए।
जोहता   बाट   था  मै  समर्पण  लिए।।
थक गया प्रेम पहिया भी  घर्षण  लिए।
खुद को ढूढा बहुत ,आज दर्पण लिए।।

इस  तरह  देखना , तीर    से   भेदना ।
श्वास      जैसे      चली    हो     गयी ।।
नेह    का   गीत  जब   भी     लिखा ।
वो     सिसकती     गली    रो   गयी ।।

तुम   बहकती   रही   उम्र के  छाँव  में ।
दृग  छलकते   रहे  फिर  तेरे  गाँव  में।।
बैठ  हम  भी   गये  थे   उसी  नाव  में।
जिसपे  बोली डुबाने  की थी दांव  में ।।

एक    संकल्पना , दे    गयी   यन्त्रणा।
प्रीति   जब   मनचली     हो     गयी ।।
नेह    का    गीत   जब   भी    लिखा ।
वो    सिसकती     गली      रो    गयी।।

शब्द  की   व्यंजना   हम  सजोते   रहे।
हार  में   मन   के  मोती   पिरोते   रहे।।
भावना    बीज    ऊषर  में   बोते  रहे ।
अश्रु   की  धार  से   हम   भिगोते  रहे।।

एक  चिर  कामना, बन   गयी  साधना।
जिन्दगी      अधजली      हो     गयी ।।
नेह    का   गीत    जब   भी    लिखा ।
वो     सिसकती    गली     रो     गयी।।

जब  उगा  एक बंजर  में अंकुर  प्रणय।
टूटता   सा    गया   एक  भंगुर   ह्रदय।।
एक   मनुहार  भी  पा  सका ना विजय।
तोड़  कर  है गया आज मन का प्रलय।।

प्रेम  की   अर्चना , जब   बनी   वासना ।
रात    क्यूँ      मखमली     हो    गयी ।।
नेह    का    गीत    जब    भी   लिखा ।
वो     सिसकती     गली     रो    गयी ।।

          - नवीन मणि त्रिपाठी

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

अंत में ठहरे अकेले

अंत में ठहरे अकेले ।

बचपन में  कुछ  मीत मिले
मिल संग बहुत खेले कूदे 
मोटर गाडी फिर रेल चली 
फिर धनुष तीर बंदूक चली 
तब पापा ने भेजा स्कूल
सारी मस्ती चकनाचूर ।।

ये मुसीबत  कौन झॆले ।
अंत में ठहरे अकेले।।

नया नया स्कूल मिल गया ।
नया दोस्त अनुकूल मिल गया।
फिर यारी बढ़ गयी हमारी ।
दुनिया फिर से लगी थी न्यारी ।
दुर्दिन फिर से साथ  हो गये ।
विद्यालय से पास हो गये ।

किससे मिलते  ? कौन बोले ?
अंत में ठहरे अकेले ।।

कालेज का अब दौर आ गया।
जीने का अब ठौर आ गया ।
वो भी मिलती मै भी मिलता
दिल में कुछ कुछ होने लगता 
दिली मुहब्बत बढती जब तक
सारी डिग्री पूरी तब तक ।

वक्त ने मुझको धकेले
अंत में  ठहरे अकेले 

जीवन ने फिर सीख दिया
नही रहम का भीख दिया
रोजी रोटी ढूढ़ लिया ।
फिर कड़वा सा घूट पिया ।
बाबुल का छूटा घर द्वार ।
दूर हुआ  सारा  परिवार ।

 मन कहता घर मुझे बुला ले ।
अंत में ठहरे अकेले ।।

फिर शादी से बीबी आयी । 
जीवन साथ निभाने आयी ।
स्वार्थ जगत से नाता लाई
तबतक खुश जब तलक कमाई 
जब कुचक्र निर्धनता लाया 
रिश्ता लगने लगा पराया 

मतलब वाले सारे मेले ।
अंत में ठहरे अकेले ।।

जीवन में परिवार बढ़ा
बच्चों का संसार बढ़ा
बच्चो पर सर्वस्व लुटाया 
खूब पढ़ाया खूब लिखाया 
देख वक्त ने बदला भेष 
रोजी मिली उसे परदेश 

जिन्दगी में फिर झमेले।
अंत में  ठहरे अकेले ।।

जब बुढ़ापा आ गया 
वक्त थोडा रह गया 
अनसुना करने लगे तब
औपचारिक बन गये सब 
वे दुवाए मौत की करने लगे थे। 
जो कभी इस देह से मेरे बने थे ।

किसको किसको और तौले ।
अंत में ठहरे अकेले ।

मै अकेला ही चला था ।
मोह माया में बधा था ।
सत्य का उपहास करके 
मै ठगा सोचा स्वयं पे ।
छोड़ सारी कामना मैं
चल पड़ा निज आत्मा मैं ।

सीख जीवन की यहाँ ले ।
अंत में ठहरे अकेले ।।

            --- नवीन मणि त्रिपठी 
             दूरभाष 9839626686

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

तेरी हरकत पे निगहबान नज़र रखता है

                    ----**ग़ज़ल**-----

वो  बागवां  है ,गुलिस्तां  में   असर   रखता  है।

तेरी   हरकत  पे   निगहबान  नजर  रखता  है।।



जहाँ  रकीब   भी  रो  कर  गया  है  मइयत  पे।पाक   दामन   में  मुहब्बत भी  कहर रखता है।।



इस  आफताब  की जुर्रत  में  तपिस साजिश है।शुकूं  के  वास्ते  वो   शख्स  शजर   रखता  है ।।



ना तो काहिल है ना जाहिल ना निकम्मा कहना।कतल  अदाओं  पे  होने  का   हुनर  रखता  है ।।



जो  मस्जिदों  में  ना  सजदे का सलीका सीखा।बेनमाजी   भी  रहमतों   की  खबर  रखता  है ।।



हार  जाती  है   रोज   फिरका   परस्ती  नागन ।तुम्हारा  मुल्क   भी  बेख़ौफ़   शबर  रखता  है ।।



जम्हूरियत  के   सिपाही   हैं   खबरदार   बहुत ।हौसला   जंग   का   महफूज   शहर  रखता है ।।



ढूंढ  लेती  हैं   मुसाफिर   को  मंजिले  अक्सर ।इरादे    साफ़   में   ईमान   अगर    रखता   है ।।



हँसा   फ़कीर   ठहाकों   में   मौत   पर   उसके ।मरा  है  वो भी  जो  दौलत  में  बसर  रखता है।।



एक    अदना    गरीब    देखकर    इतराना   मत।बददुआओं   में   वही    तेज   जहर  रखता   है।।


                    --नवीन मणि त्रिपाठी

सोमवार, 1 दिसंबर 2014

लगी है आग जो थोड़ी सी बुझाकर देखे

--**गजल **--

आओ   मजहब  की  नई   रीत  बनाकर   देखें ।
दर्दे   इंसानियत   को  दिल  में  सजाकर   देखें ।।


जली   हैं   बेटियां  अक्सर  इन्हीं  चिताओं   में ।
लगी  है  आग  जो   थोड़ी  सी  बुझा  कर  देखें ।।


काबा  काशी   के  चरागों से  सबक क्या सीखा ?
गरीबखाने    में   इक    दीप   जलाकर    देखें ।।


लुट   गया   मुल्क  है  दौलत  के निगहबानों  से ।
काले   पर्दों  को  जरा  हम  भी  उठाकर   देखें ।।


डूबते   कर्ज  से   लाशें   दिखीं    किसानो   की ।
इस   हकीकत   का  गुनहगार   मिटाकर    देंखे।।


हो  ना  कुर्बान  फिर  शहीद  इस  सियासत   से।
जुबाँ  पे    ताले   सियासत  के  लगाकर   देखें ।।


खो ना जाए कहीं तहजीबे तकल्लुफ का चलन ।
चलो    इंसान    को    इंसान     बनाकर   देंखे ।।

           - नवीन मणि त्रिपाठी

मंगलवार, 18 नवंबर 2014

मौत

मौत 

तू कितनी भोली है 
जिन्दगी की खूब सूरत सहेली है ।
चोली दामन का साथ 
दोनों के अपने जज्बात
नहीं कोई विरोध
जहाँ जन्दगी वही मौत 
और जहाँ मौत वहीँ जिन्दगी
 पर क्या जारी रहती है दुआ बन्दगी ?
मौत कभी तुम चुपके से आती हो ।
तो कभी शोर मचाती हो 
डंके की चोट पर आती हो ।
जिन्दगी को साथ ले जाती हो
एक नीद एक विराम
या फिर अनंत विश्राम 
और फिर वापस आ जाती है जिन्दगी 
नयी काया के साथ ।
फिर खुशियों की बरसात ।
फिर नव जन्मे बच्चे की किलकारी 
फिर मिल जाती है बचपन की फुलवारी।
मिलता है जवानी का प्रमाद 
प्रणय का उन्माद 
बुढापा और फिर थक जाना 
अनेकानेक कष्टों का करीब आना 
सहेली जिन्दगी को नारकीय
 वेदना से बचा लेती हो 
जिन्दगी को गोंद में समा लेती हो।
तुम नहीं देख पाती हो 
दर्द से विलखती जिन्दगी 
जीवन की बीमारियों की दरिंदगी
मौत तेरा शुक्र है 
उसे फिर से मिल जाता है वही यौवन 
वही जीवन ।
वही मकरंद 
वही आनंद ।
मौत ! सिर्फ तुम्हारी कृपा से 
असीम अनुकम्पा से 
परमानंद के सतत प्रवाह में 
बहती जिन्दगी बार बार 
रूप  बदल कर उर्जावान हो जाती है।
और फिर एहसान फरामोस होकर
 मौत तुम्हे भूल जाती है ।। 
हाँ मौत तुम्हे भूल जाती है ।
तुम्हे भूल जाती है ।।

       - नवीन मणि त्रिपाठी

शनिवार, 15 नवंबर 2014

बगदादी के बाद

  बगदादी के बाद
                                                -नवीन मणि त्रिपाठी

विश्व के बदलते परिदृश्य में आईएसआईएस का मुखिया अबू बकर अल बगदादी मारा गया है या नहीं मारा गया है यह शोध का विषय बन गया है ।आने वाले कुछ दिनों के बाद प्रमाण सहित सच सबके सामने होगा ।आई एस आई एस ने भी ऐलान कर दिया है कि वो बहुत जल्द बगदादी के उत्तराधिकारी का ऐलान कर देगा। ट्विटर पर ISIS से जुड़ी वेबसाइट ने बगदादी की मौत का ऐलान किया। मीडिया में आ रही खबरें बता रही हैं कि  बगदादी और उसके टॉप कमांडर इराक के मोसूल के पास जा रहे थे, उसी दौरान उन पर हवाई हमला हुआ।

अल-इत्तेसाम मीडिया को इस्लामिक स्टेट इन इराक और सीरिया यानि आईएसआईएस से जुड़ा माना जाता है। उसने आज ट्वीट किया कि बहुत जल्द हम खलीफा अबु बकर अल-बगदादी की मौत की जानकारी तफ्सील से देंगे। साथ ही इस्लामिक स्टेट के नए खलीफा के नाम का खुलासा भी कर देंगे।

इससे पहले इंग्लैंड के अखबार डेली टेलीग्राफ को इराक के सुरक्षा अधिकारी हाशिम अल हाशिमी ने बताया कि हवाई हमले में बगदादी का एक बहुत ही खास सहयोगी एलीफ्री मारा गया है। इस हमले में आईएसआईएस की दस गाड़ियां पूरी तरह से तबाह हो गईं। बगदादी एलीफ्री से कभी भी अलग नहीं रहता था। बगदादी जहां भी जाता था एलीफ्री उसके साथ ही जाता था। दोनों हमेशा साथ ही रहते थे।  रिश्तेदार ने एलीफ्री की मौत की तस्दीक की है। जाहिर है इस हमले के दौरान बगदादी भी उसके साथ ही रहा होगा।

इराकी सेना के हवाले से कई अखबारों में ये खबर छपी है कि इराक-सीरिया की सीमा के पास अल-कायम इलाके में बगदादी के काफिले पर हवाई हमला हुआ। घायल बगदादी को अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल को पूरी तरह से खाली करा लिया गया था। खबर के मुताबिक बगदादी के लिए आईएसआईएस लड़ाकों ने खून दान करने वालों की भी मांग की थी। पूरी सम्भावना है की बगदादी मारा जा चुका है ।  इंतजार है तो सिर्फ अमेरिकी और ईराकी सरकार की घोषणाओं का परन्तु ये घोषणाएं लगता है डी एन ए जाँच के बाद ही हो सकेंगी । जाँच के लिए बगदादी का मृत शरीर चाहिए वह अभी भी आई एस आई एस के कब्जे में ही है । अब यह आई एस आई एस संगठन ऐसे मोड़ पर है जहाँ से यह अलकायदा की तरह शक्तिहीन अवस्था को प्राप्त कर सकता है । नेतृत्व की लड़ाइयाँ भी मुखर होंगी साथ ही इनका मनोबल गिरना भी स्वाभाविक ही है । आइये एक निगाह बगदादी पर डालते हैं

       अबू बक्र अल बग़दादी का जन्म १९७१ में ईराक़ के सामर्रा नगर में हुआ।अली बदरी सामर्राई, अबू दुआ, डाक्टर इब्राहीम, अल कर्रार और अबू बक्र अलबग़दादी आदि कई इसके उपनाम हैं। यह पीएचडी हैं। इसके पिता का नाम अलबू बदरी हैं जो सलफ़ी तकफ़ीरीविचारधारा को मानते हैं। अबू बक्र बग़दादी की शुरुवात धर्म के प्रचार साथ ही प्रशिक्षण से हुआ। लेकिन जेहादी विचारधारा की ओर अधिक झुकाव रखने के कारण वह इराक़ केदियाला और सामर्रा में जेहादी पृष्ठिभूमि के केन्द्रों में से एक केन्द्र के रूप में ऊभरा।

माना जाता है, अल बगदादी सामर्रा के निकट इराक में 1971 में पैदा हुआ हैं।उसने बगदादके इस्लामी विज्ञान विश्वविद्यालय से इस्लामी विज्ञान में मास्टर की डिग्री और पीएचडी अर्जित किया।जेहादी वेबसाइटों का दावा है कि वह प्रतिष्ठित परिवार का पढ़ा-लिखा इमाम है। वह 2003 में इराक में अमेरिकी घुसपैठ के बाद बागी गुटों के साथ अमेरिकी फौज से लड़ा था। वह पकड़ा भी गया और 2005-09 के दौरान उसे दह्निणी इराक में मेरिका के बनाए जेल कैंप बुका में रखा गया था। और 2010 में इराक के अलकायदा का नेता बन गया।



आई एस आई एस ( इस्लामिक स्टेट इन ईराक एंड सीरिया ) आज दुनिया का सबसे खतरनाक और क्रूर संगठन के  रूप में अपनी पहचान बना चूका है । आज अमेरिका के लिए  और सम्पूर्ण मानवता के लिए यह संगठन सबसे बड़ा खतरा बन चूका है । हाल ही में भारत सरकार की ओर से कुछ बयान आए हैं जिसमे कहा गया कि देश मुसलमान आतंकियों के बहकावे में आने वाले नहीं हैं। यह बयान भी उन स्थितियों की समीक्षा के उपरांत आया है जब पता चला कि देश के कुछ नवयुवक आई एस आई एस में भर्ती हो गये हैं और वे वहां उनके सहयोग में युद्ध लड़ रहे हैं । धार्मिक उन्माद के सहारे आतंकवाद का राज कायम करने की साजिश का खेल आई एस आई एस के आतंकियों के द्वारा खेला जा रहा है । खबर यह भी है कि अब अलकायदा का एक बड़ा गुट भी आई एस आई एस में शामिल हो चुका है । कुछ ही दिन पूर्व की बात है पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ के लाहौर स्थित फार्म हाउस से मात्र 15 किलो मीटर दूर आई एस आई एस आतंकी समूह को समर्थन करने वाले पोस्टर स्टीकर पाए गए हैं । वहां के अधिकारियों ने खतरनाक आतंकी संगठन आई एस आई एस की उपस्थिति के लिए चिंताए व्यक्त कर चुके  है  । लाहौर पुलिस ने जांच अभियान शुरू कर दिया है और आई एस आई एस के समर्थन करने वाले पोस्टरों के संदिग्धो को हिरासत में लेना प्रारंभ कर दिया है ।शरीफ के रायविंड आवास से 15 किलो मीटर दूर नबाब नियाज बेग में " खिलाफत मुबारक के उम्मा " लिखे पोस्टर और स्टीकर देखे गए हैं । लाहौर में कैनाल रोड के पास आई एस आई एस के समर्थन में रंगी दीवारे भी दिखीं । वहाँ पंजाब पुलिश के उप महा निरीक्षक हैदर अशरफ के अनुसार नगर में आई एस आई एस के समर्थन में पोस्टर लगाने वालो के खिलाफ एफ आई आर दर्ज हो चुकी है । एक ख़ुफ़िया विभाग के अधिकारी के अनुसार तहरीक ए तालिबान सिपह ए सहाब, लश्करे झंगवी और कुछ अन्य सुन्नी संगठनो  के हाथ होने की सम्भावना है।

       इसी तरह भारत में भी  इंडियन मुजाहिद्दीन के साथ अलकायदा और आई एस आई एस के लिंक की खबरें चर्चा में रहती हैं । अलकायदा का एक गुट आई एस आई एस के युद्ध लड़ रहा है । अभी कुछ दिन पूर्व  अलकायदा प्रमुख अल जवाहिरी के द्वारा भारत को धमकी दी गयी इसे नजर अंदाज कारन करना उचित नहीं होगा ।

      भारतीय प्रधानमंत्री का अपने भाषण यह कहना कि अमेरिका अब अच्छे आतंकवाद और बुरे आतंकवाद के फर्क को निकालना बंद करे । यह बयान निश्चय ही आई एस आई एस और अन्य आतंकी संगठनॉ के प्रति हो रही चिंताओं को रेखांकित करते हैं । आर्न्कियों के द्वारा बंधक बनाये गये भारतीयों को छुडाना भारत के लिए तीखा सबक था । इतना तो तय है की आई एस आई एस का बढना भारत के कभी भी शुभ संकेत नही हो सकता है ।

प्रश्न उठता है क्या दुनिया के  बड़े खतरनाक आतंकवादी संगठन अमेरिका की ही देन हैं ? आखिर क्यों पैदा करता है अमेरिका इन भस्मासुरों को ? इसकी भी पड़ताल होनी चाहिए । कुछ दिन पहले की बात है जब यह क्रूर आतंकी संगठन अमेरिका तथा अरब जगत के उसके पिट्ठुओं के द्वारा दी गयी आर्थिक एवम सैन्य मदत से सीरिया में बसर अल असद सरकार के खिलाफ जिहाद कर रहा था । यह संगठन अमेरिका की नजरो में अच्छा जिहादी और अच्छा आतंकी संगठन के रूप में पहचाना जाता था । कारण स्पष्ट था ।यह आतंकी संगठन अमेरिकी हितो की रक्षा करता था । अब वही संगठन अमेरिकी हितो के खिलाफ कार्य करने लगा है तो अब उसकी पहचान बुरे जेहादी के तौर पर की जा रही है । आई एस आई एस आतंकी संगठन के पृष्ठ भूमि का अवलोकन करे तो पायेंगे कि यह भस्मासुर ईराक में 2003 अमेरिकी हमले के बाद पैदा हुआ है । वर्ष 2011 के उपरांत जारी गृह युद्ध में यह अमेरिका द्वारा पोषित किया गया । इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन का अमेरिकी साम्राज्यवादी नीतियों के द्वारा जन्म होना अब बिलकुल सर्वमान्य बात हो चुकी है । अमेरिका की विदेश नीति के परिणाम स्वरूप ही इन भस्मासुरों का जन्म हुआ है ।

     गहराई से ऐतिहासिक विश्लेष्ण करने पर द्वितीय विश्व युद्ध के तुरंत बाद ही कम्युनिज्म और धर्म निरपेक्ष अरब राष्ट्रवाद को मात देने के लिए ही अमेरिका ने इस्लामिक दक्षिण पंथियो के साथ गठजोड़ बनाने का ऐलान कर दिया था । जिसके परिणाम स्वरुप समय समय पर वहां समय समय पर कट्टर इस्लामिक संगठनों का उदय होता रहा है । द्वितीय विश्व युद्ध में अरब और समूचे मध्य पूर्व में तेल के कुओं की खोज हो चुकी थी । इस युद्ध के पूर्व ही सऊदी अरब के सुल्तान इबू बिन सउद
के अमेरिका के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो चुके थे । इन सम्बन्धो में तब अत्यधिक प्रगाढ़ता देखी गयी जब 1938 में तेल के कुओं की खोज पूरी हो चुकी थी । खास बात ये थी की पूरी दुनियां में फ़ैल रही बहाबी सलाफी नामक इस्लामिक कट्टर पंथी  संगठन की जमीन सऊदी अरब ही था । सउदी अरब क.े कुओं के तेल से अर्जित अकूत धन का इस्तेमाल वहां के शेख शाह अपनी विलासिता पूर्ण जीवन और अय्यासियो पर खर्च करते रहे हैं । इस धन का उपयोग ये कट्टरपंथी ,बहाबी वाद फ़ैलाने में भी धड़ल्ले से किया जा रहा है ।२०१४ में निर्मित एक अमान्य राज्य तथा इराक एवं सीरिया में सक्रिय जिहादी सुन्नी सैन्य समूह है। अरबी भाषा में इस संगठन का नाम है 'अल दौलतुल इस्लामिया फिल इराक वल शाम'। इसका हिन्दी अर्थ है- 'इराक एवं शाम का इस्लामी राज्य'। शाम सीरिया का प्राचीन नाम है।
इस संगठन के कई पूर्व नाम हैं जैसे आईएसआईएस अर्थात् 'इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया', आईएसआईएल्, दाइश आदि। आईएसआईएस नाम से इस संगठन का गठन अप्रैल 2013 में हुआ। इब्राहिम अव्वद अल-बद्री उर्फ अबु बक्र अल-बगदादी इसका मुखिया है।शुरू में अल कायदा ने इसका हर तरह से समर्थन किया किन्तु बाद में अल कायदा इस संगठन से अलग हो गया। अब यह अल कायदा से भी अधिक मजबूत और क्रूर संगठन के तौर पर जाना जाता हैं।



यह दुनिया का सबसे अमीर आतंकी संगठन है जिसका बजट 2 अरब डॉलर का है।२९ जून २०१४ को इसने अपने मुखिया को विश्व के सभी मुसलमानों का खलीफा घोषित किया है। विश्व के अधिकांश मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों को सीधे अपने राजनीतिक नियंत्रण में लेना इसका घोषित लक्ष्य है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये इसने सबसे पहले लेवेन्त क्षेत्र को अपने अधिकार में लेने का अभियान चलाया है जिसके अन्तर्गत जॉर्डन, इजरायल, फिलिस्तीन,लेबनान, कुवैत, साइप्रस तथा दक्षिणी तुर्की का कुछ भाग आता हैं।आईएसआईएस के सदस्यो की संख्या करीब 12,000 से अधिक हो चुकी  हैं।
ऐसे में जब ये हवा अपने चरम पर है की बगदादी की मौत हो चुकी है तो इस संगठन के सामने गंभीर नेतृत्व का संकट आ गया ह



  वाशिंगटन से खबरें आईं कि आईएसआईएस के मुखिया अबु बकर अल बगदादी अमेरिकी हमलों में बुरी तरह घायल होने के बाद मारा गया है। खुद को खलीफा साबित करने वाले बगदादी की मौत की खबरों ने इस संगठन के सामने नेतृत्‍व से जुड़ा एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। बगदादी आईएसआईएस के लिए वह नाम है जिसने इस संगठन को दुनिया के नक्‍शे पर दहशत के बादशाह का खिताब दिलायासिर्फ इतना ही नहीं बगदादी के नाम पर ही दुनिया भर के युवा संगठन में भर्ती होने के लिए आगे आए। बगदादी ने वह कर दिखाया है जो दूसरे आतंकी संगठनों के नेता नहीं कर सके हैं।कौन संभालेगा आईएसआईएस की जिम्‍मेदारीअमेरिका की ओर से बयान जारी कर कहा गया है कि फिलहाल उनके पास बगदादी के मौत की कोई सूचना या पुष्टि नहीं है। लेकिन जो खबरें मीडिया में आई हैं उनके मुताबिक बगदादी को काफी चोटें आईं हैं। इन खबरों के बीच ही संगठन के नेतृत्‍व से जुड़ी बातें भी होने लगी हैं।संगठन में बगदादी के अलावा कोई और ऐसा नहीं है, जो बगदादी के ही अंदाज में इस आतंकी संगठन को आगे बढ़ा सके। इस एक बात की वजह से इस आतंकी संगठन में कई तरह का संकट पैदा हो गया है।आईएसआईएस का नेतृत्‍व यह कतई नहीं चाहता है कि इस संगठन की हालत बिल्‍कुल वैसी ही हो, जैसी अल कायदा की ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद हुई।अगर अबु अयमान अल-इराक हवाई हमलों में मारा नहीं जाता तो फिर वही इस संगठन की जिम्‍मेदारी संभालता। ऐसे में अब इस बात पर कयास लगाए जा रहे हैं कि या तो अबु अली अल अनबारी या फिर अबु मुस्लिम अल तुर्कमानी तो स‍ीरिया में भी संगठन का जिम्‍मा संभाले हुए हैं, बगदादी के बाद आईएसआईएस के नेता बन सकते हैं।क्‍या होनी चाहिए आईएसआईएस कैप्‍टन की खूबियां

अलकायदा की तरह ही आईएसआईएस भी अपने कैप्‍टन को लेकर काफी सख्‍त है। नेतृत्‍व की जिम्‍मेदारी सिर्फ उसे मिलेगी जो इस ऑर्गनाइजेशन की सभीशर्तों पर खरा उतरेगा।नए नेता का मिलिट्री खूबियों में खरा उतरना जरूरी नहीं है लेकिन उसे अपने धर्म से जुड़ी बातों को लेकर कट्टर सोच वाला होना चाहिए। बगदादी की ही तरह यह नया नेता भी सिर्फ संगठन का मुखिया नहीं होगा बल्कि उसे भी बगदादी की ही तरह खलीफा बनाया जाएगा। नए नेता को खलीफा के तौर पर घोषित करना संगठन के लिए ट्रंप कार्ड की तरह होगा। यह कदम उसे बाकी चरमपंथी संगठनों की तुलना में श्रेष्‍ठ साबित करेगा। पहले आईएसआईएस की ओर से उमर अल शिंशासी को बगदादी के उत्‍तराधिकारी बनाने का फैसला किया गया थाउमर भले ही विदेशी लड़ाकों के साथ बेहतर तालमेल बैठा लेता हो लेकिन धर्म से जुड़ी बातों में उसका ज्ञान सीमित था। ऐसे में आईएसआईएस की ओर से सिर्फ संगठन की सेना का ही मुखिया बनाया जाएगा। उमर आईएसआईएस के मुखिया से जुड़ी धर्म की बातों के ज्ञान पर खरा नहीं उतर सका था।

गलत हो सकती हैं बगदादी की मौत की खबरें

वहीं इस बात की भी संभावना है कि बगदादी की मौत या फिर उसकी चोट से जुड़ी सभी खबरें गलत हो सकती हैं। बगदादी के फॉलोअर्स की ओर से इस तरह की बासंग तों को दुनिया में फैलाने की कोशिशें हो रही हैं बहरहाल कुछ भी हो पर बगदादी ने अमेरिकी पत्रकारों

के सर कलम की गलती की है तो भुगतना तो पड़ेगा ही ।
      

शनिवार, 8 नवंबर 2014

"क्या पता फिर ये चिलमन खुले ना खुले"

प्रेम    के    आचमन   की   मुहूरत  रचो,
क्या पता फिर ये चिलमन खुले ना खुले ।
इन हवाओं  में  मन  का  भरम  तोड़ दो ,
क्या पता फिर ये उपवन खिले ना खिले ।।

आज  तुम  प्रीति  की  पांखुरी  सी  लगी ।
होंठ  पर  स्वर  सजी  बाँसुरी  सी   लगी ।।
एक   श्रृंगार   की    कुंडली    सी   लगी ।
एक  तृष्णा   की  अग्नि  जली  सी  लगी।।

प्रेम   के   रंग   में  अब   समर्पण   करो  ।
क्या  पता   फिर  ये  तनमन घुले ना घुले।।
प्रेम   के   आचमन   की    मुहूरत    रचो ।
क्या  पता  फिर  चिलमन खुले  ना  खुले ।।

जब  छनकती  सी  पायल  बजी  रात में ।
रंग    बिखरे  महावर  के   जज्बात   के ।।
चाँद    शर्मा     गया   चाँदनी   रात    में ।
भीग   सब  कुछ  गया   तेज  बरसात में ।।

द्वंद  संकोच   को   आग   में   डाल   दो ।
क्या  पता   फिर ये उलझन जले ना जले ।।
प्रेम   के   आचमन     की    मुहूरत   रचो ,2
क्या पता फिर ये  चिलमन खुले ना खुले ।।

जिसमे  वर्षो से  आँखों  के  काजल धुले ।
जन्म  से इस  प्रतीक्षित मिलन  को   चले ।।
बेबसी  नाम  की    इक  उमर   से   मिले ।
इस किनारे  की  बहकी  लहर  से  मिले ।।

मै   ठगा   सा    रहा   देख    कर  आपको  ,
क्या   पता फिर ये  चितवन  छले न  छले।।
प्रेम     के   आचमन    का    मुहूरत   रचो
क्या  पता फिर ये चिलमन खुले ना खुले ।।

मै   समर्पित   प्रणय  गीत   लिखता   रहा ।
वेदना     के स्वरों     को   सजोता  रहा ।।
त्याग  की  हर  परिधि को मिटाता    रहा ।
अश्रु   की  एक    सरिता   बहाता    रहा ।।

मौन  के शोर  को तुम  भी समझा    करो ,
क्या पता फिर ये  क्रन्दन मिले ना मिले।।
प्रेम   के   आचमन    की   मुहूरत    रचो,
क्या पता फिर ये चिलमन खुले ना खुले ।।

याद    आँचल   में  है  मुह  छिपाना   तेरा ।
चिट्ठियों   में   लिखा   हर   तराना   तेरा ।।
लाज  में   यूँ  नजर   का   झुकाना    तेरा।
सांझ   नदिया के पनघट  पे आना  तेरा ।।

मैं  तुम्हें  देख  लूं   तुम   मुझे   देख   लो ।
क्या पता  फिर ये  निर्जन मिले ना  मिले।।
प्रेम  के   आचमन   की    मुहूरत     रचो ।
क्या  पता  फिर ये चिलमन खुले ना खुले ।

                           -नवीन मणि त्रि
पाठी

शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2014

आँसू

--**"आँसू"**--
आँसू अनंत रूप में बिखर जाते हैं ....

गम के आँसू

ख़ुशी के आँसू
बनावटी आँसू 
घडियाली आँसू
रक्त के आँसू 
मुफ्त के आँसू
महंगे आंसू
सस्ते आँसू...................................।

 आंसू प्रतीक बन जाते हैं ........


मनोभावों के 

अदृश्य यातनाओं के 
अतृप्त इच्छाओं के 
अंतस के घावों के 
खंडित अभिलाषाओं के 
अनंत संवेदनाओं के 
तीखी व्यथाओं के ....................।

 आँसू छलक जाते हैं ......................।


मीत के मिलने पर 

या फिर बिछड़ने पर 
आशा के खोने पर
टूटे से सपने पर 
पीड़ा के डसने पर 
मृत्यु के हसने पर 
पर नैना  बहने पर 
ग्लानि के बसने पर.................

आँसू कभी नहीं आते 


दुष्ट अहंकारी को 

जीवन व्यापारी को
बिकी ईमानदारी को 
लिपटी गद्दारी को 
शोषक व्यभिचारी को
दंडाधिकारी को
सत्ता प्रभारी को 
भ्रष्टतम अधिकारी को

आँसू सूख जाते है .................


तानाशाही सरकार में 

निठारी सम अत्याचार में 
दामिनी बलात्कार में 
सैनिको के सर कलम कायराना संहार में
रोज लाखो बच्चियों की भ्रूण हत्या के ज्वार में 
देश बेचते भ्रष्टाचारी उपहार में ।
निर्दोषो की हत्यारी आतंकी तलवार में ...........

                          नवीन

शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2014

गीत

--------------***गीत***-------------


जो   प्रणय   दीप    ले   कंटको    पर   चले , 
राह   में    वह   मुशाफिर    मिलेगा     नहीं ।
स्वार्थ   का   दाग    जब   भी   लगेगा   तुम्हे ,
तुम    धुलोगी     बहुत     पर   मिटेगा  नहीं।

बन  के  जोगन   कहानी    लिखी   ना  गयी ,
मन  की  भाषा  भी  तुमसे   पढी   ना   गयी।
प्रेम     अट्टालिका     खूब      सजती     रही , 
नीव   की    ईट    पावन    रखी   ना   गयी।।

प्रीति   की     रोशनाई    कलम   में  ना  हो , 
तुम  ह्रदय   पर     लिखोगे   लिखेगा   नही।
जो   प्रणय   दीप   ले    कंटकों    पर   चले  
राह    में   वह    मुशफिर    मिलेगा   नहीं ।।

चांदनी   चाँद   से   जब    मिलन   को  चली 
बादलों    को     कहाँ     ये     गवारा   हुआ।
जब   किनारों    की     बाहों   में  लहरें  चली ,
खीच    सागर    लिया    ये    नजारा   हुआ।।

छीन   लेने   की   साजिश   वो   रचने   लगे , 
इस    ज़माने    से    कोई     बचेगा   नहीं ।।
जो   प्रणय   दीप   ले   कंटको     पर   चले  
राह   में   वह   मुशाफिर    मिलेगा     नही ।।

बन   के  समिधा   जलोगी   सदा  उम्र  भर, 
ये   है     ज्वाला   हवाओं   में   उठती  हुई ।
बन   के  आहुति   सुलगती  रही   जिन्दगी, 
जान   पहचान    से  भी    मुकरती    रही ।।

इस   हवन   कुण्ड   तो   बिरह   अग्नि   है , 
सब    जलेगा   धुँआ   कुछ   उठेगा   नहीं। 
जो  प्रणय  दीप    ले    कंटकों   पर   चले ,
राह   में    वह   मुशाफिर   मिलेगा   नही ।।

दृष्टि   चितवन   पे   जब   मेरी  रुकने  लगी ,
एक    उलझी    हुई    सी    कहानी   लगी ।
जब   नयन   ने   नयन  की  व्यथा  देख  ली , 
एक    बहकी    हुई     सी   सुनामी    लगी।।

आँधियों       में     दिवाली    मनाने     चले  
इन   हवाओं    में    दीपक    जलेगा   नहीं।
जो   प्रणय   दीप   ले    कंटकों    पर   चले , 
राह  में   वह    मुशाफिर     मिलेगा    नहीं ।।


             -नवीन मणि त्रिपाठी

रविवार, 12 अक्टूबर 2014

"लिख के जले हैं खत बहुत तेरे जबाब में "

-----------------**गज़ल**-----------------

मिटने    लगी   हैं   हस्तियाँ ,तेरे   गुलाब    में ।
मुझको  दिखा  है ईश्क भी ,अपने  रुआब  में।।

पीने की  बात  कर  ना  पिलाने  की  बातकर।
डूबा  है  बार  -बार   वो  हुश्न   ए  शराब  में ।।

जिनको  यकीं  है अपने  तजुर्बे  पे आज  भी।
ढूँढा  है   कोहिनूर  वही  दिन  के  ख्वाब  में ।।

उड़ती  सी   रंगतें   ये  असर   का   सबूत  हैं ।
छिपता  कहाँ  ये  ईश्क  किसी  के हिजाब में।।

ढूँढा    तमाम   उम्र    नूर   अहले   चमन   में ।
दिखने   लगा   है   चाँद    तुम्हारे  नकाब   में।।

निकले थे  लफ्ज  दिल से जुबाँ पे  हुए कतल ।
लिख  के  जले हैं  खत  बहुत  तेरे  जबाब में ।।

बदली  हुई   सी  कलियाँ  बदले  हुए  से  भौरे।
जब  भी  बहारें  आयी  थीं  अपने  शबाब  में।।

तक़रीर  जन्नतों  की ,सुनाने  से  क्या  मिला ।
बदली  नियत  कहाँ  है ,खाना ए  ख़राब  में ।। 

उम्मीद की थी जिस पे ,मुशीबत में होंगे साथ ।
अक्सर  दिखे  वो ,हड्डियाँ बन के कबाब  में ।।

                                   --  नवीन

शनिवार, 20 सितंबर 2014

नारी संवेदना

मुक्तक


एक  नारी  का जीवन  भी अभिशाप  है ।
जन्म   लेना   बना   क्यों   महापाप   है ।।
भेडियों   के   लिए ,जिन्दगी   क्यों बनी ।
हे    विधाता    तेरा ,कैसा   संताप    है ।।



अब  तो  जाएँ  तो जाएँ  कहाँ   बेटियां ।
सर  को  अपने  छिपायें  कहाँ  बेटियां ।।
इस ज़माने की नजरों को  क्या हो गया।
घर   में  लूटी   गयीं ,  बेजुबां   बेटियां ।।



जुर्म  की  दास्ताँ  भी  लिखी  ना  गयी ।
लाश  देखो  जली-अधजली  रह गयी।।
जब  दरिंदों  ने  बारिस  की तेजाब की।
वो  तड़पती  विलखती पडी  रह  गयी।।



माँ   की  ममता  भी, कैसी   पराई   हुई ।
आफतें  जान  पर , उसकी   आई   हुई।।
कोख   में    जिन्दगी ,  माँगती   बेटियां ।
दहशते    मौत    से  , वो    सताई  हुई ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

बुधवार, 10 सितंबर 2014

आरक्षण समर्थक मोहन भागवत के नाम पत्र


नहीं दिखे तुम्हें !
आरक्षण की कुंठा से ग्रसित 
योग्य छात्र आत्महत्या करते हुए।
नहीं देख पाए तुम 
प्रतिभाओ को चौराहों पर जलते हुए।
नजर अंदाज कर गये सवर्णों की दरिद्रता की पराकाष्ठा।
कहाँ सजो पाए तुम
निष्पक्ष निष्ठा ?
भूखे विलखते सवर्ण बच्चों के 
मुख से छिनते निवाले।
गरीबी के दंश से मरते मासूम 
भोले भाले।
उनके भी घर में छत नहीं
खेती के लिए जमीन नहीं।
खाने के लिए भर पेट अन्न नहीं।
बस्त्रो से ढकता तन नहीं ।


भीख मागते है उनके बच्चे।
जिन्हें दलित कहते है 
उनके जूठे बर्तन धोकर
 पेट पालते हैं ये बच्चे।
सवर्णों की पढ़ी लिखी बेटियां 
अब ब्यूटी पार्लर चलाती है।
जिन्हें दलित कहते हैं उनको सजाती हैं।
हिंदुत्व को टुकडो टुकड़ों में 
बाटने वाली आरक्षण नीति ।
हजार वर्ष पीछे ले गयी देश की उन्नति।


आज का हिन्दू
आरक्षण के लिए
बाबरी मस्जिद पर गोलिया बरसाने 
वालो का समर्थक बन जाता है।
उनकी सरकार को चुन कर लाता है।
धर्म परायणता के ठीकेदार् तो तुम्ही थे
देश में धार्मिक संस्कार के आधार भी तुम्ही थे।
यही है तुम्हारे हिंदुत्व की ताकत।
जिसे तुमने अब पहचाना
फिर बुन लिया 
एक हजार वर्ष तक आरक्षण देने का 
ताना बाना।


देश में सत्य के समर्थक की पहचान थी
 तुम्हारी संस्था।
सभी सवर्णों की शान थी तुम्हारी संस्था।
एक उम्मीद की किरण
शायद तुम न्याय दिलाओगे।
देश को आरक्षण मुक्त कराओगे।
पर यह क्या किया??
भरोसे को धोखा दिया !!!!!!
तुम्हें शर्म नहीं आयी ???
तुम्हारी अंतरात्मा तुम्हे क्यों नहीं धिक्कार पाई?
तुमने कैसे खो दी विश्वसनीयता ?
कहाँ खो गयी तुम्हारी मानवता ?
अफ़सोस ये की औरो की तरह तुम भी वोट के 
सौदागर बन गये।
सिद्धांतो से समझौता कर गये।
अब तुम्हारी पहचान !!!!!!
किसी राजनीतिक पार्टी की 
कठपुतली के सिवा कुछ नहीं।
संस्था में वो बात नहीं।
तुम्हारे लिए मेरे पास अब वो जज्बात भी नहीं।
जिस तरह सूरज पूरब में 
कभी अस्त नहीं हो सकता ।
उतना ही सच  है ,....
कोई आरक्षण समर्थक,
कभी देश भक्त नहीं हो सकता ।
कभी देश भक्त नहीं हो सकता।।

                                                        -नवीन

रविवार, 7 सितंबर 2014

मित्र नहीं होता

दृष्टि , ईमानदारी,
निगाह  , नियति,
इरादा.....
मित्रता  से पूर्व ही किये जाने लगे 
ये परीक्षण ।
अब बहुत गहराई से
 होने लगा है निरीक्षण।
लेन देन, सौदे बाजी, 
सम्बन्धों की बद मिजाजी ।
तीखे सवालों  का व्यूह, 
प्रस्तर की भाति मौन.... ।
प्रत्युतर  दे कौन ?
सवालों से आवाक् !
कैसे कह दूं ......बेबाक।
सच निकलेगा नहीं ।
झूठ  की फितरत नहीं ।
फिर तनाव की खरीदारी।
बे मेल यारी ।
 उत्पन्न अनुराग,
आकर्षण-प्रतिकर्षण 
वैचारिक संघर्षण । 
दुविधा पूर्ण  .....
मित्रता  की मनोविकृति 
कहाँ से आएगी ?
सामाजिक  परिष्कृति।।
मत जाओ , मत स्वीकारो
कभी मत पुकारो 
 जो आपके आचरण को
मर्यादित  संबंधो के व्याकरण को।
तराजू पर  अक्सर
 कई बार तोले ।
फिर हौले से शब्द बोलें ।
सा री  .............सॉरी।
ये  है अविश्वास की रेखाओं वाली
अजीब  बीमारी।
संवेदनाये धिक्कारती हैं।
अंतरात्मा कचोटती है ।
सबको मित्र कहना जरूरी नहीं होता ।
वैचारिक समानता के बिना 
 कोई मित्र नहीं होता ।।
हां मतलब परस्त तो मिलेंगे ।
पर  मित्र नहीं होता ।।
पर मित्र नहीं होता।।

          नवीन

बुधवार, 3 सितंबर 2014

भारतीय ज्योतिष की कसौटी पर नरेन्द्र मोदी के वादे



         नरेन्द्र दामोदर दास मोदी" … जी हाँ एक  ऐसा नाम जिससे तय होगा भारत जैसे विशाल देश का भविष्य । देश की तमाम जनता के मन में एक कौतूहल बना हुआ है कि मोदी जी ने जो सपने दिखाए हैं क्या वह वास्तव में  पूरे हो पाएंगे ? क्या उनका व्याज सहित लौटाने का वादा पूरा हो पायेगा ? क्या वे भ्र्ष्टाचार मुक्त भारत की तश्वीर जनता के सामने पेश कर पाएंगे ? इस तरह के अनेकों सवाल जनता के मन में गूँज रहे हैं ,जिनका उत्तर भविष्य की तलहटी में छिपा हुआ है । आइये हम भी टटोलते हैं अपने ऋषि महर्षियों के द्वारा दिए गए ज्योतिष विज्ञानं के अनमोल उपहार से मोदी जी का भविष्य ।

   
        मोदी जी का जन्म 17 सितम्बर 1950 को दोपहर  11 बजे बड़ नगर  मेहसाणा जनपद गुजरात में हुआ था । इनका जन्म अनुराधा नक्षत्र के द्वितीय चरण में हुआ था । शास्त्रों के अनुसार अनुराधा नक्षत्र के  द्वितीय चरण में जन्म लेने वाला जातक कला संगीत में रूचि रखने वाला ,कोर्ट कचहरी में विजय प्राप्त करने वाला राज्य पक्ष से सम्मानित एवम और राज्य सत्ता में उच्य पदासीन होते हैं । शत्रुओं से कभी घबराते नहीं उनको परास्त करने की गजब की शक्ति पायी जाती है । पिता या पैतृक संपत्ति का लाभ इन्हें नही प्राप्त होता है। घर परिवार से दूर रह कर ये अपने पुरषार्थ को आगे बढ़ाते हैं। जीवन अक्सर विवादस्पद मोड़ आते रहते हैं। उक्त सभी लक्षण मोदी  जी में दृष्टिगोचर हैं।
            प्रधान मंत्री मोदी जी की कुंडली पर गौर करें तो वृश्चिक लग्न की कुंडली में लग्नेश मंगल चन्द्रमा से युत होकर लग्न में विराजमान हैं। मंगल त्रिकोण का स्वामी भी है। चन्द्र मंगल  युति महा लक्ष्मी योग कहलाता है। अतः निश्चय ही ऐसे व्यक्तित्व  लिए अर्थ कभी समस्या उत्पन्न नहीं कर पाता है।  आर्थिक स्थितियां सुदृढ़  जाती हैं। गुजरात के मुख्य मंत्री काल में  मोदी ने गुजरात की आर्थिक व्यवस्था सुदृढ़ करने में देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा सर्वथा अग्रणी रहे हैं। अब उनके हाथों में सम्पूर्ण देश आ चुका है तो पूरी सम्भावना है की देश भी विकास के दर में तेजी से वृद्धि करेगा और देश की उन्नति होगी।

               कुंडली में लग्नेश मंगल और भाग्येश चन्द्रमा का होना भाग्यवर्धक स्थितियों द्योतक माना जाता है। लग्नेश चन्द्रमा का लग्न में बैठना वीरता प्रमाणित करता है , क्यों की मंगल ग्रह वीरता का कारक है और वह भी स्वगृही होकर लग्न  में ही स्थित है। यह जातक को अत्यधिक बोल्ड बना देता है। चन्द्रमा नीच राशि में स्थित है अतः यह मोदी जी को महान कूटनीतिज्ञ बनाने में पूर्ण सक्षम है एवम कुशल आलोचक बनाने में पूर्ण सहायक भी है भी है।
             यदि हम मोदी जी की कुंडली में एकादस भाव की समीक्षा करें तो पाएंगे कि एकादस भाव  कन्या राशि है वहां बुध सूर्य की युति बुद्धादित्य योग का निर्माण कर रही हैं यह बुद्धादित्य योग लाभ भाव में बन रहा है और वह भी लाभेश के साथ। यहाँ लाभेश अपनी उच्य राशि कन्या में स्थित है। भारतीय प्रधानमंत्री का लाभ भाव अत्यंत शक्तिशाली है। किसी  भी व्यक्ति की  कुण्डली में बुद्धादित्य योग व्यक्ति की वैचारिक शक्ति को सुदृढ़ कर आर्थिक रूप से आत्म निर्भर करता है। जीवन में ऐसे व्यकति सदैव अपने मिशन में लाभ की अवस्था में उत्तरोत्तर वृद्धि करते रहते हैं। स्पष्ट है की देश उनकी योजनाओं से अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने का अवसर प्राप्त करता रहेगा।
          भाषण कला व प्रभावशाली संवाद स्थापित करने के लिए बुध ग्रह का शक्तिशाली होना परम आवशयक माना जाता है। मोदी की कुंडली में बुध उच्य राशिस्थ है। इनकी वाक पटुता से देश व विदेश दोनों प्रभावित होंगे।  वैमनस्यता एवं शत्रु को परास्त करने में बुध अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उच्य का बुध उच्य बौद्धिक स्तर को दर्शाता है। राहु बुध का मित्र ग्रह माना जाता है राहु  की पूर्ण दृष्टि मित्र ग्रह बुध और बुध राशि पर है। यहाँ यह दृष्टि शुभ फलदाई होगी जिस से देश की उन्नति के मार्ग प्रसस्त होंगे।
            शनि ग्रह मोदी की कुण्डली में पराक्रम एवं सुख भाव का स्वामी है। अर्थात शनि तृतीय और चतुर्थ  भाव का स्वामी है। शनि राज्य भाव दसम में कर्मेश शुक्र के साथ युत होकर स्थित है। पराक्रमेश सुखेश शनि और कर्मेश शुक्र का यह योग मोदी को सत्ता की बुलंदियों तक पहुचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुका है। नरेन्द्र मोदी पहली बार मुख्य मंत्री  बने तब दिनांक 30-9-1998से 30-11-2001तक शुक्र की महादशा में शनि की अंतर दशा चल रही थी। मोदी जी पहली बार मुख्यमंत्री दिनांक 7अक्टूब 2001में बने थे। अतः दशम भाव में शुक्र शनि का योग इन्हें एक दुसरे की अंतर प्रत्यंतर दशाओं में शुभफल दाता के रूप में ही देखा जाएगा।

          चतुर्थ भाव में स्थित गुरु सीधे सीधे दशम में स्थित शनि  दृष्टि संबंध रखता है। मोदी सदैव न्याय के समर्थक होंगे। न्याय प्रिय होंगे। कभी भी ऐसे कृत्यों में शामिल नहीं हो सकते जो भ्र्ष्टाचार को पोषित करें। गुरु शनि का समसप्तक दृष्टि संबन्ध इन्हें कभी भी अन्याय व भरष्टाचार  सहन नहीं करने देगा। अन्याय कूटनीति भ्रष्टाचार आदि को मुहतोड़ जबाब देकर देश को स्तब्ध करते रहेंगे। कुंडली का नवम भाव धर्म का होता है धर्मेश चन्द्रमा लगनस्थ है यह प्रबल धार्मिक आस्था से ओत प्रोत करता है।  अतः मोदी जी सभी धर्मों के प्रति आदरयुक्त रहेंगे।
       यदि अंक ज्योतिष को भी संज्ञान में लेकर चलें तो नरेंद्र मोदी का मूलांक 8है और भाग्यांक 5है। 8 का अंक शनि का है। मूलांक 8 के जातक अपने दायित्वों के प्रति गहरी निष्ठां रखते हैं। शनि के कारण सेवा भावना कूट कूट भरी होती है। यह अंक योग्य सेवक का सूचक है। भाग्य अंक5 बुध का है   यह अंक व्यापार कौशल ,उत्कृष्ट वक्ता लेखक आदि का परिचायक है। शनि और बुध आपस में मित्र ग्रह हैं इस तरह 8 और 5का अंक मोदी जी के लिए शुभ प्रभाव देने वाला वाला है ।26 मई 2014 को मोदी जी ने प्रधान मंत्री भारत सरकार का पद भार संभाल लिया है । यहाँ मूलांक 8 की भूमिका स्पष्ट है। शनि का यह अंक भारत को तकनीकि विकास में सहायता प्रदान करेगा।लौह उद्योग कोयला उद्योग लौह प्रतिष्ठान भारतीय रेल आदि शनि से सम्बन्धित विभाग मोदी के कार्यकाल में बुलंदियों को छूने में कामयाब होंगे । शनि न्याय का ग्रह कहा जाता है। अत: मोदी के कार्यकाल में बड़ा परिवर्तन भी देखने को मिलेंगा । बहुत सारे कानूनों में फेर बदल किये जायेंगे।भ्रष्टाचार मुक्त होकर भारतीय न्याय पालिका गर्वान्वित होगी।
      मोदी जी दिनांक 30-11-2011से दिनांक 30-11-2021 तक चन्द्रमा की महादशा को भोग रहे हैं। चंद्रमा भाग्य का स्वामी होकर केन्द्र में लग्नस्थ है । भाग्येश चन्द्रमा की दशा मोदी जी के जीवन का स्वर्णिम काल है।  भाग्येश चंद्रमा की महादशा में राहू की अन्तर्दशा में शुक्र की प्रत्यंतर दशा  में मोदी जी प्रधान मंत्री पद पर आसीन हुए। राहु त्रिकोण में बैठ कर पंचमेश बन कर प्रबल कारक की भूमिका में आ जाता है । रहू केतु की कोई अपनी राशि नहीं होती अत: ये जिस भाव में होते हैं उनके स्वामी जैसी भूमिका निभाते हैं । यहाँ राहु पंचमेश की भांति ही कार्य कर रहा है । शुक्र भी राज्य पद सत्ता के भाव में कर्म भाव का स्वामी होकर उपस्थित है ।अंतत: स्पष्ट है कि मोदी जी अपने द्वारा किये गये वादों को पूरा करने में कामयाब होंगे। देश का भविष्य योग्य हाथों में है इसमें भारतीय ज्योतिष के अनुसार कोई संशय नजर नही आता है ।

             -  पं. नवीन मणि त्रिपाठी
            जी वन /28 अर्मापुर स्टेट- कानपुर
                 दूरभाष- 9839626686

शनिवार, 23 अगस्त 2014

ये वक्त देखता रहा सहमा हुआ शजर

**गजल **

जज्बात  ए  गजल  उनकी  हुई आज बे  असर।
भटका   बहर  रदीफ़  काफिया   में   उम्र  भर ।।


वो    कायदे    वसूल    बताने    लगे  हैं    खूब ।
जंग   ए   शिकस्त   जो   हमें    करते रहे  नजर।।


हैरान   माफिया   है   कलम    का    ठगा   हुआ।
जब  असलियत  की  रूबरू   चर्चा  हुई   खबर।।


पत्ते   भी    चले    दूर    खिंजा   ए  बहार    में ।
ये   वक्त    देखता    रहा    सहमा  हुआ शजर।।


मासूम   बे    गुनाह   पर   पड़ने  लगी   निगाह ।
उनकी   नियत   ख़राब   है   डरने  लगा   शहर।।


कुछ   तो   जरुर  है  यहाँ   खामोशियों  में  अब।
बेटी   गरीब    की   थी   दरिंदों    का   है  कहर।।


अब मजहबी कातिल की बात कर ना तू "नवीन"।
दीवार   ए   मुखबिरी  से   साँस  जायेगी   ठहर ।।

         -  नवीन मणि त्रिपाठी

मंगलवार, 19 अगस्त 2014

वैचारिक प्रदूषण

हर ओर बलात्कार
नृशंस हत्याव्ओ से हाहाकार
गुंजित दिशाएं 
नारियो की चीख से।
फिर भी हम नही जाग पाए 
गहरी नीद से 
क्या हो गया भारतीय समाज को ?
कौन मिटा रहा 
इसके गौरव पूर्ण इतिहास को ?
चीर हरण में युधिष्ठिर की भांति
अखबारों की सुर्खियों पर
हम मौन हैं ।
हम इतना भी नहीं सोच पाते
सभ्यता संस्कृति के 
लुटेरे कौन हैं।
पाश्चात्य सभ्यता .....अँधानुकरण ।
युवाओं की जेब में 
ब्लू फिल्मो का संवरण
उत्तेजित करने वाले 
वस्त्रो का आवरण
महत्वाकांक्षाओं का भरण 
नैतिकता का क्षरण
रोज लुट रहा समाज का आभूषण
एक खतरनाक वायरस की तरह
फ़ैल रहा 
वैचारिक प्रदूषण।
हार गये तुम ?
उठो और देश बचाओ।
इस से पहले निगल जाये 
तुम्हारी स्मिता को ।
बची खुची सभ्यता को ।
अपनी खोई सभ्यता अपनाओ।
वैचारिक प्रदूषण भगाओ ।
वाचारिक प्रदूषण भगाओ।।

        -नवीन मणि त्रिपाठी

रविवार, 17 अगस्त 2014

प्रणय के नाम



तुम्हारी झील सी आँखों  में, अक्सर खो चुके हैं हम ।
प्यास जब भी हुई व्यकुल तो बादल बन चुके हैं हम।।
ये अफसानों  की है दुनिया, मुहब्बत  की कहानी है ।
सयानी  हो  चुकी  हो  तुम ,सयाने हो  चुके  हैं  हम ।।


कदम फिसले नहीं जिसके वो रसपानो को क्या जाने।
मुहब्बत की नहीं जिसने ,वो बलिदानों को क्या जाने ।।
ये  दरिया  आग  का  है , ईश्क में जलकर जरा देखो ।
समा  देखी  नहीं  जिसने, वो परवानो  को क्या जाने ।।


तेरे  जज्बात  के  खत  को , अभी  देकर गया  कोई ।
दफ़न    थीं   चाहतें  ,उनको   भी  बेघर  गया  कोई ।।
हरे  जख्मों के  मंजर  की , फकत इतनी निशानी है ।
हमें   लेकर   गयी   कोई,  तुम्हे   ले कर गया   कोई ।।


मिलन  की  आस को लेकर, वियोगी  बन  गया था मै।
ज़माने  भर  के लोगों का , विरोधी  बन  गया  था मै ।।
रकीबो  के  शहर   में  ,जुल्म   के  ताने   मिले  इतने ।
बद चलन बन गयी थी तुम , तो भोगी  बन गया था मै।।


                  -नवीन मणि त्रिपाठी
(सारे तथ्य काल्पनिक हैं
मुक्तक में मेरे अथवा किसी
अन्य के जीवन से कोई
 सरोकार नहीं है ।)

मंगलवार, 12 अगस्त 2014

इन शहीदों का मुकम्मल सलाम बाकी है

इन  शहीदों  का , मुकम्मल  सलाम  बाकी  है ।
मुल्क  के  पन्नों  में ,अहले  मुकाम  बाकी  है ।।

जिसने फंदों से मुहब्बत की मौत  की खातिर ।
उनकी जज्बात पे,  लिक्खा कलाम  बाकी है ।।

चिता  शहीद  पे  मेलों   का  जिक्र  कौन  करे ।
अब  तो  चादर  भी, कब्र पर तमाम  बाकी है ।।

हुए   हलाल   तो  दीवाने  ए  हिन्द  खूब  यहाँ ।
तमाशबीन ,  वतन    का    हराम    बाकी   है ।।

मजहबी   साजिशें    रचने   लगे   सियासतदा ।
सहादतों   का   ये , कैसा    ईनाम   बाकी   है ।।

जश्ने  आजादी   गुलामी  को   मिटाने पे  मिली।
मुफलिसी  दौर  में , जीता    गुलाम   बाकी  है।।

कौम  से   कौम  लड़ाते  वो  आज मकसद  से।
अमन   शुकूँ   का ,यहाँ  पर  पयाम  बाकी  है ।।


                  -नवीन मणि त्रिपाठी

रविवार, 10 अगस्त 2014

कानपुर का साहित्य साम्राज्य





                                                                 _                                         -नवीन मणि त्रिपाठी


कानपुर शहर का ठेठ फक्कड़ी अंदाज "वाह गुरु " और "झाडे रहो कलट्टर गंज "इस तरह के अनेक चर्चित वाक्य हर गली चौराहे पर अपना रस बिखेर ही देते हैं । औद्योगिक जीवन शैली ,घनी आबादी, मशीनों ,चिमनियों के कचरे और कीचड में रचा बसा शहर अपनी पहचान आज भी सजोये हुए है । कहा जाता है कमल कीचड़ में खिलते हैं । यह सच भी है । आजादी की जंग हो या वैचारिक क्रांति के लिए साहित्यकारों की भूमिका , इस शहर ने अनेको कमल खिलाये हैं ।
        कानपुर साहित्यकारों की धरती रही है। यहाँ की उन्मुक्त लेखन शैली देश को जागरूक करने में अपनी महती भूमिका के लिए अति महत्त्वपूर्ण पहचान रखती है । देश की आजादी के लिए कानपुर के साहित्यिक पुरोधाओ ने देश के लिए उर्जावान साहित्य लिखकर देश के स्वतंत्रता सेनानियों के लिए महत्वपूर्ण आलम्ब प्रस्तुत किया है । क्रांतिकारियों की धरती पर कभी क्रांतिकारी साहित्यकारों की कभी कमी नहीं रही । कानपुर को साहित्य की राजधानी मान लेना भी मान लेना तर्क संगत ही होगा । देश के बड़े बड़े साहित्यकारों का कर्म क्षेत्र कानपुर रहा है । इसके अतिरिक्त हिंदी साहित्यकारों का जन्मदाता भी कानपुर रहा है ।
   
     आदि कवि महर्षि बाल्मीकि ( बिठूर) जिन्होंने रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की है वह पवित्र धरती  कानपुर की ही है । काव्य धारा में निराला जी नीरज जी व् अनेक रचनाकारो ने कानपुर के साहित्यिक अमरत्व का परचम लहराया है । आज की चर्चा यदि हम कानपुर के लेखको के सम्बन्ध में करें तो हमें भारतेंदु युग से ही शुरुआत करनी चाहिए ।

      भारतेंदु युग के समकालीन आदरणीय प्रताप नारायण मिश्र जी जिनका कर्म क्षेत्र कानपुर ही रहा है ।आपने कानपुर में नाटक सभा नाम का एक संगठन भी तैयार किया था । आपका कार्य कल 1856 से1895 के मध्य रहा है । मिश्र जी ने सामाजिक कुरीतियों पर गहरा कटाक्ष किया है। मिश्र जी की पहचान कुशल नाटककार ,निबन्धकार ,और अनुवादक के रूप में थी । स्वंत्रता संग्राम में मिश्र जी की कलम समाज में नव चेतना के साथ लोगों को जागरुक किया । स्पष्ट ,सटीक व् सामयिक लेखन के द्वारा देश के हित में उन्होंने सच को लिखना ही बेहतर समझा । लगभग उनकी सभी कृतियाँ देश हित पर ही केन्द्रित मिलती हैं ।
     मिश्र जी ने "ब्रह्मण" नामक पत्रिका का संपादन और प्रकाशन किया था ।
    कलि कौतूहल, कलि प्रभाव, हठी हमीर , गो संकट आदि अमर नाटकों की रचना कर कानपुर एवम देश के साहित्य को गर्वान्वित किया है ।

      अंग्रेजी शासन के विरुद्ध कानपुर के महान साहित्यिक पत्रकार लेखक गणेश शंकर विद्यार्थी जी की कलम में अद्भुद लेखन शक्ति थी ।विद्यार्थी जी प्रताप नामक पत्रिका का संपादन किया था । उनके लेख के एक एक शब्द आग उगलते थे । अंग्रेजी शासन और व्यवस्था के खिलाफ उनके लेख बेहद ओजस्वी हुआ करते थे । कहा जाता है सरदार भगत सिंह भी उनसे कभी कभी मिलने आते थे । अपने निर्भीक चिंतन को विद्यार्थी जी ज्यो का त्यों लिखने में कोई संकोच नहीं करते थे । जलियावाला बाग कांड और सरदार भगत सिंह की फांसी पर अपना तीखा विचार विचार प्रवाह उन्होंने प्रताप में प्रकाशित किया था । उनके आजादी के क्रांतिकारी लेख जन मानस पर अपना सकारात्मक प्रभाव छोड़ते थे । गणेश शंकर विद्यार्थी जी साम्प्रदायिकता के घोर विरोधी थे ।

   एक बार ग्वालियर के महाराज रात्रि भोज पर आमंत्रित कर उन्हें एक शाल भेट की थी ।आशय अप्रत्यक्ष था की प्रताप में ग्वालियर रियासत के लिए नकारात्मक टिप्पणियां ना प्रकाशित हों । विद्यार्थी जी शाल तो ग्रहण कर लिया लेकिन उस शाल का उपयोग उन्होंने जीवन भर नहीं किया । लेखन के प्रति समर्पण भाव का ज्वलंत उदारण आज के पत्रकारों के लिए प्रेरणा स्रोत है ।
बाद में उन्होंने आचार्य महाबीर प्रसाद द्विवेदी जी के साथ उनकी पत्रिका सरस्वती के संपादन विभाग में नौकरी भी किये
  विद्यार्थी जी ने कर्मयोगी , हित वाणी , और स्वराज नामक पत्रों के लिए लेख लिखे । साम्प्रदायिक उन्माद की आग में साम्प्रदायिकता से लड़ते हुए 25 मार्च 1929 को विद्यार्थी जी शहीद हो गये ।

        कानपुर के गौरवमयी स्तंभों में श्यामलाल गुप्त पार्षद जी का नाम बहुत श्रद्धा से लिया जाता है । आपका जन्म 16सितम्बर1893 में  कानपुर के नरबल में हुआ था । पार्षद जी जब कक्षा पांच में पढ़ते थे तब उन्होंने एक कविता लिखी थी -
परोपकारी पुरुष मुहिम में पावन पद पाते देखे ।
उनके सुन्दर नाम स्वर्ण में सदा लिखे जाते देखे।।

      श्याम लाल गुप्त जी ने सचिव नामक मासिक पत्र का संपादन किया । उनके कई क्रांतिकारी लेख व रचनाए क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणास्रोत रही हैं ।
उनका लिखा हुआ यह गीत -

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ।
झंडा ऊंचा रहे हमारा ।।
उनके इस गीत को बाद में राष्ट्र गीत के सम्मान से नवाजा गया ।
     इस प्रकार कानपुर अनेक महान साहित्यकारों से गर्वान्वित होता रहा है । यदि हम नगर के साहित्यकारों पर दृष्टि पात करें । तो पाएंगे वर्तमान साहित्यकार भी साहित्य की इस परिपाटी को जीवंत रखने में  एक परिमार्जन के साथ अपनी महत्त्व पूर्ण भूमिका हेतु प्रयत्नशील हैं ।

    कानपुर के   वर्तमान प्रसिद्ध कथाकार गिरिराज किशोर जी ना केवल कानपुर बल्कि देश के वरिष्ठ साहित्यकारों के मध्य सशक्त हस्ताक्षर के रूप में पहचाने जा रहे है । गिरिराज जी उत्कृष्ट कथाकार के साथ साथ उपन्यासकार एवम नाटक कार भी हैं ।
  आप पद्म श्री पुरष्कार से अलंकृत हैं । वर्तमान हिंदी साहित्य में गिरिराज जी की अनेको महत्वपूर्ण उपलब्धिया रही हैं ।
      आपकी पुस्तक पहला गिरमिटिया , ढाई घर, अंतर ध्वंस  ,यातना घर अत्यंत प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी हैं ।उनकी नयी पुस्तक मृग तृष्णा काफी चर्चा में है ।

        कानपुर व देश के गौरव के रूप में पहचान बन चुके आदरणीय राजेन्द्र राव जी की कलात्मक और बिंदास लेखन शैली पाठको की पसंद की बुलंदियों को छूने में सक्षम है। निर्विवाद रूप से राव साहब की लेखन विशिष्टता समय के साथ अपनी जीवंत पृष्ठभूमि व लोकप्रियता के परिवर्तन शील उदारता के संग कलमबद्ध करने में सफल हो ही जाती है । राव साहब भी कथाकार के साथ साथ उपन्यासकार भी हैं ।आप समय समय पर उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा पुरष्कृत किये जाते रहे हैं । आपकी महत्वपूर्ण पुस्तकें  असत्य के प्रयोग , पाप पुण्य से परे , सूली ऊपर सेज पिया की ,कीर्तन काफी लोक प्रिय रही हैं । आपकी पहली कहानी का नाम शिफ्ट था ।

      हिंदी साहित्य में यदि कानपुर की चर्चा होगी तो प्रियंवद जी का जिक्र स्वर्णिम अक्षरों में लिपिबद्ध मिलेगा । प्रियंवद जी की अद्भुद लेखन शैली ,निराला अंदाज हरफन मौला वाली तस्वीर अपने आप में उनको अति विशिष्ट बनाती है । बेशक आपकी पहचान एक कथाकार और उपन्यासकार के रूप में प्रसिद्द है परन्तु मजे की बात यह है की पुस्तक लाल कनेर का फूल उनका काव्य संग्रह है । वह चर्चित और लोकप्रिय पुस्तक है। प्रियंवद जी की पहचान एक इतिहासकार के रूप में भी होती है । आपकी पुस्तक भारत विभाजन की अंतर कथा ऐतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित अमर कृति है । आपकी अन्य पुस्तकें बोसिदनी, मुट्ठी में बंद चिड़िया,एक अपवित्र प्रेम ,धर्मस्थल ,परछाई ,नाच विशेष चर्चित रहीं हैं । आपका उपन्यास वे वहां कैद हैं लोक प्रियता के स्तर पर अच्छी पहचान बना चूका है ।

कानपुर के अमरीक सिंह दीप जी की कहानियां गहरी संवेदनाओं से ओत प्रोत होती हैं । दीप जी कानपुर के वरिष्ठ कथाकार हैं । आपकी कहानियां सामाजिक व्यथाओं पर तीखा प्रहार करती हैं और  दीप जी की अपनी कहानियों के माध्यम से पाठक तक अपना मौलिक सन्देश बहुत ही खूबसूरत अंदाज में पहुचाने में सफल हो जाते हैं । वैचारिक क्रांति को जन्म देने में सक्षम दीप जी कहानियों का अंत एक ऐसे मोड़ पर होता देखा गया है जहाँ विचारधाराओं का परिवर्तन स्वाभाविक तौर पर आंदोलित हो जाता है ।
      दीप जी एक कुशल अनुवादक भी हैं आप ने देश विदेश की कई कहानियों का अनुवाद बहुत ही सुन्दर ढंग से किया है । आपकी कहानी संग्रह "कहाँ जायेगा सिद्धार्थ" ,झाड़े रहो कलट्टर गंज ,सिर फोड़ती चिड़िया ,काला हांड़ी ,काली बिल्ली ,एक कोई और , बन पाँखी काफी प्रसिद्ध हो चुकी हैं । दीप जी का उपन्यास एक और पंचाली वर्तमान में प्रकाशित हुआ है । साहित्यिक परिवेश में एक और पांचाली की चर्चा खूब है ।
    कानपुर के साहित्यकारों में वर्तमान में कुछ साहित्यकार हाल के कुछ वर्षों से अपनी महत्वपूर्ण पहचान बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है । इस कड़ी में युवा कथाकार गोविन्द उपाध्याय जी का नाम प्रमुख है । गोविन्द जी देश के सशक्त कथाकारों की कतार में आकर खड़े हो चुके हैं । गोविन्द जी की कहानियों में आंचलिक पृष्ठभूमि की झलक मिलती है । आंचलिकता के मर्मज्ञ कथाकार के रूप में आपकी पहचान बन चुकी है । आज कल देश की महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं में आप निरंतर दिख रहे  । गोविन्द जी कहानी संग्रह पंखहीन ,समय रेत और फूकन फूफा ,सोन परी का तीसरा अध्याय ,चौथे प्रहर का विरह गीत ,आदमी कुत्ता और ब्रेकिंग न्यूज जैसी कहानी संग्रह चर्चाओं  रहीं हैं ।
     प्राख्यात साहित्यकार कृष्ण विहारी जी का संबंध भी कानपुर से ही है । कृष्ण बिहारी जी आबूधाबी से साहित्यिक पत्रिका "निकट " का संपादन कार्य देख रहे हैं । आपकी पहली कहानी १९७१ में प्रकाशित हुई थी कृष्ण बिहारी जी कहानियां देश बड़ी हिंदी साहित्यिक पत्रिकाओं में अक्सर देखने को मिल जाती हैं । कृष्ण बिहारी वर्ष में दो माह कानपूर में ही गुजारते हैं । आपकी महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में दो औरतें ,पूरी हकीकत पूरा फ़साना ,नातूर ,एक सिरे से दुसरे सिरे तक ,इंतजार श्वेत--- स्याम ---रतनार अच्छी संग्रह के रूप में प्रसिद्ध है । कृष्ण बिहारी जी की नई पुस्तक उसका चेहरा बाजार में आ चुकी है ।


      कानपुर आज उत्कृष्ट साहित्यकारों से भरा पड़ा है । यहाँ की साहित्यिक खुशबू पूरे विश्व में हिंदी जगत के साहित्य को महका रही है । प्रेम गुप्ता मानी और राजकुमार सिंह जैसे अनेक सशक्त साहित्यकारों की चर्चा अधूरी रह गई है । अगले किसी अंक में उनकी चर्चा की जाएगी । प्राचीन और द्विवेदी युग के साहित्यकारों की विरासत को वर्तमान साहित्यकार अपनी पुरजोर लेखन की ताकत से संभालने में कामयाब हैं । सम्पूर्ण पाठक कानपुर के साहित्यिक कथाकारों के उज्जवल भविष्य की कामना करता है ।