-------ग़ज़ल -------52 शेर के साथ
2122 1212 22
बात तुम भी खरी नही करते ।
काम कोई सही नही करते ।
चोट दिल पर लगी है फिर उनके।
काम ये मजहबी नहीं करते ।।
जब से अफसर बना दिया कोटा ।
बात अच्छी भली नहीं करते ।।
दोस्तों की किसी तरक्की में ।
यूँ मुसीबत खड़ी नहीं करते ।।
जिंदगी पर यकीन है जिनको । वो कभी खुदकुशी नहीं करते ।।
कुछ तो खुन्नस बनी रही होगी ।
बेसबब बेरुखी नहीं करते ।।
पेंग गर प्यार की बढ़ानी है ।
प्यार में हड़बड़ी नही करते ।।
है मुहब्बत का आसरा जिनको ।
हुस्न की रहबरी नहीं करते ।।
सिर्फ मिसरे से काम क्या चलता ।
टिप्पणी कुछ कभी नही करते ।।
थी गरीबी की दास्तां होगी ।
काम गन्दा सभी नहीं करते ।।
हमको मालूम राज की कीमत ।
बेवफाई कभी नही करते ।।
जिनको मंजिलकी फिक्रहै काफी ।
वक़्त से दुश्मनी नहीं करते ।।
है पता उन्को कैफियत अपनी ।
वो इधर तर्जनी नहीं करते ।।
ये मुहब्बत है खेल मत मुझसे ।
हम कभी दिल्लगी नहीं करते ।
रहनुमाई चली गई जब से ।
बात तब से बड़ी नहीं करते ।।
वोट पाकर वो खो गया वरना ।
लोग बे इज्जती नहीं करते ।।
है मुहब्बत का आसरा जिनको ।
हुस्न की रहबरी नहीं करते ।।
चोट दिल पर लगी है फिर उनके ।
काम ये मजहबी नहीं करते ।।
पेंग गर प्यार की बढ़ानी है ।
प्यार में हड़बड़ी नही करते ।।
सिर्फ मिसरे से काम क्या चलता ।
टिप्पणी कुछ नई नही करते ।।
वो निशाने पे तीर था वरना ।
वो कभी खलबली नहीं करते ।।
बैठ जाये कोई मेरे सर पर ।
छूट इतनी खुली नहीं करते ।।
सर फ़रोसी की है तमन्ना अब ।
वार में बुजदिली नहीँ करते ।।
कीमतें वे वसूलते हैं जो।
माल अपना दही नहीं करते ।।
शर्त है जिस्म दिल लगाने की ।
लोग क्या ज्यादती नहीं करते ।।
गर किसानों से वास्ता रखते ।
मुल्क में भुखमरी नहीँ करते ।।
कुछ तबीयत मचल गयी होगी ।
हम कभी आशिकी नही करते ।।
मुफ़्लिशी दौर से जो है वाकिफ़ ।
वो हमारी हसी नहीँ करते ।।
फंस न् जाएं ये पाँव ही अपने ।
हम जमीं दलदली नहीं करते ।।
खास शातिर हैं इश्क के मुजरिम ।
हाथ में हथकड़ी नहीं करते ।।
है छुपाना अगर ये धन काला ।
बिस्तरे मखमली नहीं करते ।।
खर्च का बोझ बढ़ गया जब से ।
बात अब रस भरी नही करते ।।
सर्जिकल हो गई वहां जब से ।
मूछ अपनी तनी नहीं करते ।।
ध्यान देतीं नहीं अगर मैडम ।
आज हम शायरी नहीं करते ।।
मैं तो ठहरा हूँ इस तरह दिल मे ।
आप अब हाजिरी नहीं करते ।।
देश द्रोही है कन्हैया उनका ।
दुश्मनों की कमी नहीं करते ।।
फिर हुए हैं जवान क्यो जख्मी।
लोग क्या मुखबिरी नहीं करते ?
नेकियाँ बेहिसाब हैं उनकी ।
हम कभी भी बदी नहीं करते ।।
क्यों उमीदें लगा के बैठे हो ।
अब्र ये चांदनी नहीं करते ।।
जब से लूटा है लाल कुर्ते ने ।
रेलवे में कुली नहीं करते ।।
बाम पंथी बिके हुए शायद ।
जुर्म पर सनसनी नहीं करते ।।
जब भी मारा है उसने आतंकी ।
क्यों वे जाहिर खुशी नहीं करते ।।
मैं भी आज़ाद हो गया होता ।
तेरे शिकवे बरी नहीं करते ।।
जब से दौलत का हाल जाना है ।
आँख वो शरबती नहीं करते ।।
कोई राधा नहीं दिखे तब तक ।
होठ पर बाँसुरी नहीं करते ।।
काफ़िया वो बना रहे काफी ।
ध्यान हर्फे रवी नहीं करते ।।
गर कलम जारही है मंजिल तक ।
रोक कर मन दुखी नहीं करते ।।
काम ऐसा बचा नहीं कोई ।
अब जिसे आदमी नहीं करते ।।
मिल गया जब से है उन्हें वोहदा ।
बात भी लाजिमी नहीं करते ।।
शुद्ध पण्डित का है लहू रग में ।
काम मे जाहिली नहीं करते ।।
हो गई हाफ सेंचुरी शायद।
बात हम बेतुकी नहीं करते ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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2122 1212 22
बात तुम भी खरी नही करते ।
काम कोई सही नही करते ।
चोट दिल पर लगी है फिर उनके।
काम ये मजहबी नहीं करते ।।
जब से अफसर बना दिया कोटा ।
बात अच्छी भली नहीं करते ।।
दोस्तों की किसी तरक्की में ।
यूँ मुसीबत खड़ी नहीं करते ।।
जिंदगी पर यकीन है जिनको । वो कभी खुदकुशी नहीं करते ।।
कुछ तो खुन्नस बनी रही होगी ।
बेसबब बेरुखी नहीं करते ।।
पेंग गर प्यार की बढ़ानी है ।
प्यार में हड़बड़ी नही करते ।।
है मुहब्बत का आसरा जिनको ।
हुस्न की रहबरी नहीं करते ।।
सिर्फ मिसरे से काम क्या चलता ।
टिप्पणी कुछ कभी नही करते ।।
थी गरीबी की दास्तां होगी ।
काम गन्दा सभी नहीं करते ।।
हमको मालूम राज की कीमत ।
बेवफाई कभी नही करते ।।
जिनको मंजिलकी फिक्रहै काफी ।
वक़्त से दुश्मनी नहीं करते ।।
है पता उन्को कैफियत अपनी ।
वो इधर तर्जनी नहीं करते ।।
ये मुहब्बत है खेल मत मुझसे ।
हम कभी दिल्लगी नहीं करते ।
रहनुमाई चली गई जब से ।
बात तब से बड़ी नहीं करते ।।
वोट पाकर वो खो गया वरना ।
लोग बे इज्जती नहीं करते ।।
है मुहब्बत का आसरा जिनको ।
हुस्न की रहबरी नहीं करते ।।
चोट दिल पर लगी है फिर उनके ।
काम ये मजहबी नहीं करते ।।
पेंग गर प्यार की बढ़ानी है ।
प्यार में हड़बड़ी नही करते ।।
सिर्फ मिसरे से काम क्या चलता ।
टिप्पणी कुछ नई नही करते ।।
वो निशाने पे तीर था वरना ।
वो कभी खलबली नहीं करते ।।
बैठ जाये कोई मेरे सर पर ।
छूट इतनी खुली नहीं करते ।।
सर फ़रोसी की है तमन्ना अब ।
वार में बुजदिली नहीँ करते ।।
कीमतें वे वसूलते हैं जो।
माल अपना दही नहीं करते ।।
शर्त है जिस्म दिल लगाने की ।
लोग क्या ज्यादती नहीं करते ।।
गर किसानों से वास्ता रखते ।
मुल्क में भुखमरी नहीँ करते ।।
कुछ तबीयत मचल गयी होगी ।
हम कभी आशिकी नही करते ।।
मुफ़्लिशी दौर से जो है वाकिफ़ ।
वो हमारी हसी नहीँ करते ।।
फंस न् जाएं ये पाँव ही अपने ।
हम जमीं दलदली नहीं करते ।।
खास शातिर हैं इश्क के मुजरिम ।
हाथ में हथकड़ी नहीं करते ।।
है छुपाना अगर ये धन काला ।
बिस्तरे मखमली नहीं करते ।।
खर्च का बोझ बढ़ गया जब से ।
बात अब रस भरी नही करते ।।
सर्जिकल हो गई वहां जब से ।
मूछ अपनी तनी नहीं करते ।।
ध्यान देतीं नहीं अगर मैडम ।
आज हम शायरी नहीं करते ।।
मैं तो ठहरा हूँ इस तरह दिल मे ।
आप अब हाजिरी नहीं करते ।।
देश द्रोही है कन्हैया उनका ।
दुश्मनों की कमी नहीं करते ।।
फिर हुए हैं जवान क्यो जख्मी।
लोग क्या मुखबिरी नहीं करते ?
नेकियाँ बेहिसाब हैं उनकी ।
हम कभी भी बदी नहीं करते ।।
क्यों उमीदें लगा के बैठे हो ।
अब्र ये चांदनी नहीं करते ।।
जब से लूटा है लाल कुर्ते ने ।
रेलवे में कुली नहीं करते ।।
बाम पंथी बिके हुए शायद ।
जुर्म पर सनसनी नहीं करते ।।
जब भी मारा है उसने आतंकी ।
क्यों वे जाहिर खुशी नहीं करते ।।
मैं भी आज़ाद हो गया होता ।
तेरे शिकवे बरी नहीं करते ।।
जब से दौलत का हाल जाना है ।
आँख वो शरबती नहीं करते ।।
कोई राधा नहीं दिखे तब तक ।
होठ पर बाँसुरी नहीं करते ।।
काफ़िया वो बना रहे काफी ।
ध्यान हर्फे रवी नहीं करते ।।
गर कलम जारही है मंजिल तक ।
रोक कर मन दुखी नहीं करते ।।
काम ऐसा बचा नहीं कोई ।
अब जिसे आदमी नहीं करते ।।
मिल गया जब से है उन्हें वोहदा ।
बात भी लाजिमी नहीं करते ।।
शुद्ध पण्डित का है लहू रग में ।
काम मे जाहिली नहीं करते ।।
हो गई हाफ सेंचुरी शायद।
बात हम बेतुकी नहीं करते ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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