1222 1222 1222 1222
वो अक्सर बेरुखी से वक्त का दीदार करती हैं ।
हवाएं इस तरह से जिंदगी दुस्वार करती हैं ।।
न जाने क्या मुहब्बत है हमारी हर तरक्की से ।
हज़ारों मुश्किलें हम से ही आंखें चार करती हैं ।।
बड़ी चर्चा है वो बदनामियों से अब नहीं डरता ।
है उसकी हरकतें ऐसी दिलों को ख्वार करतीं हैं ।।
जिन्हें खुद पर भरोसा ही नही रहता है मस्जिद में ।
उन्हें तो रहमतों की ख्वाहिशें लाचार करती हैं ।।
न् जाओ तुम कभी मतलब परस्तों के इलाके में ।
खुशामद की बलाएँ बेशबब बीमार करती हैं ।।
वफ़ा चाहो वफ़ा पढ़ लो जफ़ा चाहो जफ़ा पढ़ लो ।
तुम्हारी चाहतें मुझको खुला अखबार करती हैं ।।
सँभल के चल मेरे साथी निगाहें हैं बड़ी जालिम ।
सुना है वारदातें वो सरे बाज़ार करतीं हैं ।
उन्हें कैसी अदावत है समझना भी हुआ मुश्किल।
दुआएं पास आने से मेरे इनकार करतीं हैं ।।
न पूछो हाल अब उसका बहुत चर्चा है जोरों पर ।
अदाएं गैर की महफ़िल गुले गुलज़ार करती हैं ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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वो अक्सर बेरुखी से वक्त का दीदार करती हैं ।
हवाएं इस तरह से जिंदगी दुस्वार करती हैं ।।
न जाने क्या मुहब्बत है हमारी हर तरक्की से ।
हज़ारों मुश्किलें हम से ही आंखें चार करती हैं ।।
बड़ी चर्चा है वो बदनामियों से अब नहीं डरता ।
है उसकी हरकतें ऐसी दिलों को ख्वार करतीं हैं ।।
जिन्हें खुद पर भरोसा ही नही रहता है मस्जिद में ।
उन्हें तो रहमतों की ख्वाहिशें लाचार करती हैं ।।
न् जाओ तुम कभी मतलब परस्तों के इलाके में ।
खुशामद की बलाएँ बेशबब बीमार करती हैं ।।
वफ़ा चाहो वफ़ा पढ़ लो जफ़ा चाहो जफ़ा पढ़ लो ।
तुम्हारी चाहतें मुझको खुला अखबार करती हैं ।।
सँभल के चल मेरे साथी निगाहें हैं बड़ी जालिम ।
सुना है वारदातें वो सरे बाज़ार करतीं हैं ।
उन्हें कैसी अदावत है समझना भी हुआ मुश्किल।
दुआएं पास आने से मेरे इनकार करतीं हैं ।।
न पूछो हाल अब उसका बहुत चर्चा है जोरों पर ।
अदाएं गैर की महफ़िल गुले गुलज़ार करती हैं ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
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