-----ग़ज़ल -----
*2122 1212 22*
हाथ काफी मले गए हर सू ।
कुछ सयाने गए छले हर सू ।।
बात बोली गई दीवारों से ।
खूब चर्चे सुने गए हर सू ।।
आग का कुछ पता न् चल पाया ।
बस धुंआ ही धुंआ उठे हर सू ।।
इक तरन्नुम में पढ़ ग़ज़ल मेरी ।
ये ज़माना तुझे सुने हर सू ।।
जुर्म की हर निशानियाँ कहतीं ।
अश्क़ यूं ही नहीं बहे हर सू ।।
वह मुहब्बत में डूबती होगी ।
ढूढ़ दरिया में बुलबुले हर सू ।।
इश्क का कुछ असर उन्हें भी है ।
रह रहे हैं कटे कटे हर सू ।।
मुस्कुरा कर वो कत्ल करते हैं ।
लोग मिलते कहाँ भले हर सू ।।
सर पे बांधे कफ़न मिला है वह ।
अब इरादे बड़े बड़े हर सू ।।
कुछ तरक्की नही हुई उनसे ।
सिर्फ मुद्दे बहुत उठे हर सू ।।
आज उसने नकाब फेंका है ।
देखिए आज जलजले हर सू ।।
उनके आने की खबर है शायद ।
रंग बिखरे हरे हरे हर सू ।।
प्यास देखी गयी नहीं उनसे ।
अब्र आकर बरस गए हर सू ।।
कितनी भोली अदा में दिखती है । चल रहे खूब सिलसिले हर सू ।।
कुछ अदब का लिहाज है वरना । उसके चर्चे बड़े बुरे हर सू।।
बेबसी पर सवाल मत पूछो ।
लोग मुश्किल से तन ढके हर सू ।।
नज़नीनो का क्या भरोसा है । जब मिले बेवफा मिले हर सू ।।
कितनी ज़ालिम निगाह है साकी । रोज आशिक दिखे नए हर सू ।।
रोजियाँ वो नहीं बढ़ा पाए ।
हो गए खूब मनचले हर सू ।।
होश आने का जिक्र कौन करे ।
खुल रहे रोज मैकदे हर सू ।।
कुछ अंधेरा नही मिटा पाए ।
दीप लाखों मगर जले हर सू ।।
रात मिलकर गई है जब से वो ।
हो रहे तब से रतजगे हर सू ।।
कोई पढ़ता नही सुख़न मेरे ।
क्या सुख़नवर नहीं बचे हर सू ।।
अब कलम बन्द कर दिया हमने ।
हौसले हैं बुझे बुझे हर सू ।।
--- नवीन मणि त्रिपाठी
*2122 1212 22*
हाथ काफी मले गए हर सू ।
कुछ सयाने गए छले हर सू ।।
बात बोली गई दीवारों से ।
खूब चर्चे सुने गए हर सू ।।
आग का कुछ पता न् चल पाया ।
बस धुंआ ही धुंआ उठे हर सू ।।
इक तरन्नुम में पढ़ ग़ज़ल मेरी ।
ये ज़माना तुझे सुने हर सू ।।
जुर्म की हर निशानियाँ कहतीं ।
अश्क़ यूं ही नहीं बहे हर सू ।।
वह मुहब्बत में डूबती होगी ।
ढूढ़ दरिया में बुलबुले हर सू ।।
इश्क का कुछ असर उन्हें भी है ।
रह रहे हैं कटे कटे हर सू ।।
मुस्कुरा कर वो कत्ल करते हैं ।
लोग मिलते कहाँ भले हर सू ।।
सर पे बांधे कफ़न मिला है वह ।
अब इरादे बड़े बड़े हर सू ।।
कुछ तरक्की नही हुई उनसे ।
सिर्फ मुद्दे बहुत उठे हर सू ।।
आज उसने नकाब फेंका है ।
देखिए आज जलजले हर सू ।।
उनके आने की खबर है शायद ।
रंग बिखरे हरे हरे हर सू ।।
प्यास देखी गयी नहीं उनसे ।
अब्र आकर बरस गए हर सू ।।
कितनी भोली अदा में दिखती है । चल रहे खूब सिलसिले हर सू ।।
कुछ अदब का लिहाज है वरना । उसके चर्चे बड़े बुरे हर सू।।
बेबसी पर सवाल मत पूछो ।
लोग मुश्किल से तन ढके हर सू ।।
नज़नीनो का क्या भरोसा है । जब मिले बेवफा मिले हर सू ।।
कितनी ज़ालिम निगाह है साकी । रोज आशिक दिखे नए हर सू ।।
रोजियाँ वो नहीं बढ़ा पाए ।
हो गए खूब मनचले हर सू ।।
होश आने का जिक्र कौन करे ।
खुल रहे रोज मैकदे हर सू ।।
कुछ अंधेरा नही मिटा पाए ।
दीप लाखों मगर जले हर सू ।।
रात मिलकर गई है जब से वो ।
हो रहे तब से रतजगे हर सू ।।
कोई पढ़ता नही सुख़न मेरे ।
क्या सुख़नवर नहीं बचे हर सू ।।
अब कलम बन्द कर दिया हमने ।
हौसले हैं बुझे बुझे हर सू ।।
--- नवीन मणि त्रिपाठी
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