जमीं पर चाँद क्यूँ उतरा नहीं था ।
कभी सूरज जहाँ ढलता नहीं था ।।
बहा ले जाए तुमको साथ अपने ।
वो सावन का कोई दरिया नहींथा।।
मेरे महबूब की महफ़िल सजी थी ।
मगर मेरा कोई चर्चा नहीं था ।।
मैं देता दिल भला कैसे बताएं ।
सही कुछ आपका लहज़ा नहीं था ।।
जरा सा ही बरस जाते ऐ बादल ।
हमारा घर कोई सहरा नहीं था ।।
जले हैं ख्वाब कैसे आपके सब ।
धुंआ घर से कभी उठता नहीं था ।।
तुम्हारी हरकतें कहने लगीं थीं।
तुम्हारा प्यार तो सच्चा नहीं था ।।
बयाँ गम कर गया फितरत थी उसकी ।
जो आंसू आँख में ठहरा नहीं था ।।
सुना हूँ आजकल वो पढ़ रहा है ।
मेरे चेहरे को जो पढता नहीं था ।।
जरूरत पर हुआ है मुन्तजिर वो ।
हमारे दर पे जो रुकता नहीं था ।।
नया है तज्रिबा मेरा भी यारों ।
कभी मैं इश्क़ में उलझा नहीं था ।।
ख़फ़ा है वह हमारी आरजू से ।
जो हमसे आज तक रूठा नहीं था ।।
बता देते मुहब्बत गैर से है ।
हमारा आपसे पर्दा नहीं था ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
कभी सूरज जहाँ ढलता नहीं था ।।
बहा ले जाए तुमको साथ अपने ।
वो सावन का कोई दरिया नहींथा।।
मेरे महबूब की महफ़िल सजी थी ।
मगर मेरा कोई चर्चा नहीं था ।।
मैं देता दिल भला कैसे बताएं ।
सही कुछ आपका लहज़ा नहीं था ।।
जरा सा ही बरस जाते ऐ बादल ।
हमारा घर कोई सहरा नहीं था ।।
जले हैं ख्वाब कैसे आपके सब ।
धुंआ घर से कभी उठता नहीं था ।।
तुम्हारी हरकतें कहने लगीं थीं।
तुम्हारा प्यार तो सच्चा नहीं था ।।
बयाँ गम कर गया फितरत थी उसकी ।
जो आंसू आँख में ठहरा नहीं था ।।
सुना हूँ आजकल वो पढ़ रहा है ।
मेरे चेहरे को जो पढता नहीं था ।।
जरूरत पर हुआ है मुन्तजिर वो ।
हमारे दर पे जो रुकता नहीं था ।।
नया है तज्रिबा मेरा भी यारों ।
कभी मैं इश्क़ में उलझा नहीं था ।।
ख़फ़ा है वह हमारी आरजू से ।
जो हमसे आज तक रूठा नहीं था ।।
बता देते मुहब्बत गैर से है ।
हमारा आपसे पर्दा नहीं था ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
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