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बेबस पे और जुल्म न ढाने की बात कर।
गर हो सके तो होश में आने की बात कर ।।
क्या ढूढ़ता है अब तलक उजड़े दयार में ।
बेघर हुए हैं लोग बसाने की बात कर ।।
खुदगर्ज हो गया है यहां आदमी बहुत ।
दिल से कभी तो हाथ मिलाने की बात कर ।।
मुश्किल से दिल मिले हैं बड़ी मिन्नतों के बाद ।
जब हो गया है प्यार निभाने की बात कर ।।
यूँ ही बहक गये थे कदम बेखुदी में यार ।
इल्जाम मेरे सर से हटाने की बात कर ।।
मैंने भी आज देख ली दरिया दिली तेरी ।
अब तो न और पीने पिलाने की बात कर ।।
मुद्दत से हँस रहा मेरी मजबूरियों पे तू ।
कुछ तो मेरा गुनाह बताने की बात कर ।।
गिरता रहे क्यों बारहा नजरों से कोई शख्स ।
शिकवे शिकायतों को मिटाने की बात कर ।।
क्यूँ रट लगाये बैठा है बस एक बात पर ।
तू भी कभी कभार ज़माने की बात कर ।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
बेबस पे और जुल्म न ढाने की बात कर।
गर हो सके तो होश में आने की बात कर ।।
क्या ढूढ़ता है अब तलक उजड़े दयार में ।
बेघर हुए हैं लोग बसाने की बात कर ।।
खुदगर्ज हो गया है यहां आदमी बहुत ।
दिल से कभी तो हाथ मिलाने की बात कर ।।
मुश्किल से दिल मिले हैं बड़ी मिन्नतों के बाद ।
जब हो गया है प्यार निभाने की बात कर ।।
यूँ ही बहक गये थे कदम बेखुदी में यार ।
इल्जाम मेरे सर से हटाने की बात कर ।।
मैंने भी आज देख ली दरिया दिली तेरी ।
अब तो न और पीने पिलाने की बात कर ।।
मुद्दत से हँस रहा मेरी मजबूरियों पे तू ।
कुछ तो मेरा गुनाह बताने की बात कर ।।
गिरता रहे क्यों बारहा नजरों से कोई शख्स ।
शिकवे शिकायतों को मिटाने की बात कर ।।
क्यूँ रट लगाये बैठा है बस एक बात पर ।
तू भी कभी कभार ज़माने की बात कर ।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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