122 122 122 122
वो जब भी चला छोड़ने मैकशी को ।
अदाएं जगा कर गईं तिश्नगी को ।।
बयाँ हो गयी आज उनकी कहानी ।
छुपाते रहे जो यहां दुश्मनी को ।।
अमीरों की महफ़िल में सजधज के जाना ।
वो देते नहीं अहमियत सादगी को ।।
खुदा की नज़र है हमारे करम पर ।
भरोसा कहाँ रह गया आदमी को।।
पकड़ कर उँगलियों को चलना था सीखा।
दिखाते हैं जो रास्ता अब हमी को ।
मुहब्बत हुई इस तरह आप से क्यूँ ।
अभी तक न हम जोड़ पाये कड़ी को ।।
मेरे कत्ल का कर गए फ़तवा जारी ।
जो कल दे रहे थे दुआ जिंदगी को ।।
अदब काफिया बह्र सब हैं नदारद ।
जनाजे पे वो रख रहे शायरी को ।।
मुहब्बत को जिसने तबज्जो नहीं दी ।
वो तरसा बहुत उम्र भर इक
ख़ुशी को ।
वो जब भी चला छोड़ने मैकशी को ।
अदाएं जगा कर गईं तिश्नगी को ।।
बयाँ हो गयी आज उनकी कहानी ।
छुपाते रहे जो यहां दुश्मनी को ।।
अमीरों की महफ़िल में सजधज के जाना ।
वो देते नहीं अहमियत सादगी को ।।
खुदा की नज़र है हमारे करम पर ।
भरोसा कहाँ रह गया आदमी को।।
पकड़ कर उँगलियों को चलना था सीखा।
दिखाते हैं जो रास्ता अब हमी को ।
मुहब्बत हुई इस तरह आप से क्यूँ ।
अभी तक न हम जोड़ पाये कड़ी को ।।
मेरे कत्ल का कर गए फ़तवा जारी ।
जो कल दे रहे थे दुआ जिंदगी को ।।
अदब काफिया बह्र सब हैं नदारद ।
जनाजे पे वो रख रहे शायरी को ।।
मुहब्बत को जिसने तबज्जो नहीं दी ।
वो तरसा बहुत उम्र भर इक
ख़ुशी को ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें