नव सृजन दीप बनना होगा
जीवन पथ पर चलना होगा
दो अंकुर हृदय वाटिका के
पोषित तुम रक्त कर्णिका के
तुम हो भविष्य मेरे घर के
सहयोगी हो जीवन भर के
तुम मीत रहोगे पल पल के
लाठी हो तुम मेरे कल के
कर्मों की उच्च श्रृंखला से
उर अंधकार हरना होगा
नव सृजन दीप बनना होगा
जीवन पथ पर चलना होगा
जब व्यथित हृदय हो जाये कभी
मन की क्यारी मुरझाए कभी
जब तेज मन्द हो जाये कभी
साँसों का स्वर खो जाए कभी
यह अहंकार बढ़ जाये कभी
नीरसता मन मे छाए कभी
जब राह नहीं मिल पाए कभी
उस पावन जगत नियंता से
तब आत्म शक्ति भरना होगा
नव सृजन दीप बनना होगा
जीवन पथ पर चलना होगा
कुछ कंटकमय पल आएंगे
नित अनुभव नया कराएंगे
कुछ दृष्टिकोण मिल जाएंगे
हर पंथ स्वतः खुल जाएंगे
मन में प्रकाश भर जाएंगे
तम तुमको छू ना पाएंगे
हर संघर्षों की धारा के
प्रतिकूल तुम्हे बहना होगा
नव सृजन दीप बनना होगा
जीवन पथ पर चलना होगा
अभिलाषाओं का मान रहे
सुंदर कर्मो का ध्यान रहे
आध्यात्म चेतना ज्ञान रहे
मनावता का सम्मान रहे
उत्कृष्ट लक्ष्य संज्ञान रहे
सर्वदा दूर मदपान रहे
चारित्रिक श्रेष्ठ कसौटी पर
सोना बनकर ढलना होगा
नव सृजन दीप बनना होगा
जीवन पथ पर चलना होगा
यह सत्य यथावत निश्चित है
आना जाना अनुबंधित है
जीवन, निर्वाण से परिचित है
संशय इसमें ना किंचित है
आत्मा ईश्वर से सिंचित है
सन्देश सदा ये इंगित है
नव जीवन पुनः सुनिश्चित है
उस मृत्यु के विश्रामालय से
नव वस्त्र पहन उठना होगा
नव सृजन दीप बनना होगा
जीवन पथ पर चलना होगा
-नवीन मणि त्रिपाठी
नोट - यह रचना 2005 में 20 वर्ष पहले विनीत -पुनीत के लिए लिखी थी ।
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