1212 1122 1212 22
उसे हयात का असली मज़ा नहीं आया ।
तमाम उम्र जिसे राब्ता नहीं आया ।।1
करीब ला दे जो मंजिल के आस पास मुझे ।
मेरे दिमाग़ में वो रास्ता नहीं आया ।। 2
ख़ुलूस दिल ने लिखा ख़त था एक दिन तुझको ।
तेरी तरफ़ से कोई मसबरा नहीं आया ।।3
अभी तलक है सलामत जो अम्न की बस्ती ।
है शुक्र रब का कोई सिर- फिरा नहीं आया ।।4
डुबा दिया मेरी कश्ती को मेरे अपनों ने ।
मुझे बचाने मेरा नाखुदा नहीं आया ।।5
लगा रहा है वो इल्ज़ाम मेरी चाहत पर ।
जो मेरे दर पे कभी इक दफ़ा नहीं आया ।।6
तेरे गुनाह की गुंजाइशें सलामत हैं ।
अभी चमन में कोई जलजला नहीं आया ।।7
ये कातिलों का हुनर है या कोई मजबूरी ।
के ज़िक्र उनके किसी नाम का नहीं आया ।।8
-- नवीन मणि त्रिपाठी
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