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हर तरफ़ तिश्ना- लबी है शह्र में ।
सबकी अपनी बेबसी है शह्र में ।। 1
मन्दिर ओ मस्ज़िद को लेकर देखिये
फ़िर कहीं चर्चा हुई है शह्र में ।।2
फ़िर जला देंगी घरों को नफ़रतें ।
आग कुछ ऐसी लगी है शह्र में ।।3
कौन मुज़रिम है फ़िजा का ढूढिये ।
क्यों हवा बदली हुई है शह्र में ।।4
बेचकर आया है वो अपना ज़मीर ।
जिसकी इज्ज़त कीमती है शह्र में ।।5
सिर्फ़ मतलब के लिए मिलते हैं लोग ।
कहने को दरिया दिली है शह्र में ।।6
आदमी की दांव पर है ज़िन्दगी ।
मौत से रस्साकशी है शह्र में ।।7
लाती हैं मजबूरियां फुटपाथ तक ।
जीस्त आकर सो रही है शहर में ।।8
ख्वाहिशें दम तोड़ती हैं बारहा ।
हो रही क्यों खुदकुशी है शह्र में ।।9
ख़ुद को जब उसने बना डाला मशीन ।
तब कहीं रोटी मिली है शह्र में ।।10
छापते अब क्यूँ नहीं अखबार ये ।
भुखमरी कितनी बढी है शह्र में ।। 11
-- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
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