ग़ज़ल
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जाती है नींद ख़्वाब के आये बगैर ही ।
आती है उसकी याद बुलाये बगैर ही ।।1
उसको हमारी तिश्नगी से दुश्मनी थी यूँ ।
भेजा वो मैक़दे से पिलाये बगैर ही ।।2
बादल में है जुनून जमीं की तपिश को देख ।
बरसेगा क्या ये अब्र भी छाए बग़ैर ही ।। 3
गहरे यकीं के साथ हों गर हौसले बुलंद ।
झुकती है कायनात झुकाए बग़ैर ही ।।4
किस किस का इंतजाम करेंगे यहाँ हुजूर ।
जब आ रहे हैं लोग बताए बगैर ही ।। 5
क़ातिल का शातिराना ये अंदाज देखिए ।
करता है कत्ल नजरें उठाये बग़ैर ही ।। 6
उम्मीद जिन से थी कि वो शब भर रुकेंगे आज ।
वो जा रहे हैं हाथ मिलाए बग़ैर ही ।।7
ऐसी सजा मिली है मुझे आशिकी में यार ।
मैं जी रहा हूँ उसको भुलाए बग़ैर ही ।।8
ये खासियत या ऐब है इस हुस्न का तेरे ।
जलते तमाम दिल हैं जलाए बगैर ही ।। 9
- नवीन
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