ग़ज़ल
2122 1212 22
दिल मे बैठा है कोई डर शायद ।
हो गए आप बाख़बर शायद ।।1
झोलियां भर के जा नहीं सकते ।
आप पर है कड़ी नज़र शायद ।।2
लोग जुमलों को अब नहीं सुनते ।
वक्त उनका गया ठहर शायद ।।3
हर कदम पर तमाम धोखे हैं ।
मिलना मुश्किल है मोतबर शायद ।।4
अब तो चेहरे की चमक गायब है ।
दर्द कोई गया उभर शायद ।।5
आपके तो करम कुछ ऐसे हैं ।
याद रक्खेंगे उम्र भर शायद ।।6
खो न जाए कहीं मेरी कुर्सी ।
फ़िक्र का हो चुका असर शायद ।।7
छूट जाता है तख़्त ओ ताज़ जिधर ।
जा रहे आप भी उधर शायद ।।8
-- नवीन
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