****ग़ज़ल **
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उनको चिराग़े इश्क़ जलाना ही चाहिए ।
अब तो मेरे दयार में आना ही चाहिए ।।
हिन्दू हो या मुसलमाँ वो इंसान ही तो है ।
अब फ़ासला दिलों का मिटाना ही चाहिए ।।
समझोगे कैसे इश्क़ की बारीकियों को यार ।
इक बार कहीं दिल तो लगाना ही चाहिए ।।
प्यासी जमीं को देख के इतरा न इस तरह ।
बादल तुझे बरस के तो जाना ही चाहिए ।।
माना कि ज़िंदगी में मयस्सर नहीं खुशी ।
फिर भी नई उमीद जगाना ही चाहिए ।।
गर खिल चुका है गुल तो मुक़द्दर तू आजमा ।
ख़ुश्बू से तितलियों को रिझाना ही चाहिए ।।
कीचड़ में डालता है तू पत्थर जो रौब से ।
छींटा तेरे वजूद तक आना ही चाहिए ।।
बख़्शा उसे है हुस्न ख़ुदा ने जो बेहिसाब ।
उसको फ़ज़ा में जश्न मनाना ही चाहिए ।।
गर चाहते हो जिंदगी का लुत्फ़ हो जवां ।
तुमको विसाले यार बनाना ही चाहिए ।।
नवीन
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