ख़ैरमक़दम हमारा हुआ . तो हुआ ।
वार फिर. कातिलाना हुआ .तो हुआ ।।
फर्क पड़ता कहाँ अब सियासत पे है ।
रिश्वतों पर खुलासा हुआ तो हुआ ।।
ये ज़रुरी था सच की फ़ज़ा के लिए ।
झूठ पर जुल्म ढाना हुआ तो हुआ ।।
आप आये यहाँ तीरगी खो गयी ।
मेरे घर में उजाला हुआ तो हुआ ।।
हिज्र के दौर में हम सँभलते रहे ।
आपके बिन गुजारा हुआ तो हुआ ।।
मुझको मालूम था तीर तरकश् में है।
आप का मैं निशाना हुआ तो हुआ ।।
फिक्र उनको नहीं दिल पे गुजरेगी क्या ।
जुल्म इक आशिकाना हुआ तो हुआ ।।
याद आईं हैं जब उसकी रानाइयाँ ।
इश्क़ पर फिर तराना हुआ तो हुआ ।।
कैसे कह दूं भला बेवफा मैं उसे ।
वक्त पर जो सहारा हुआ तो हुआ ।।
कोई परवा न कीजै ज़माने की अब ।
वस्ल का इक इशारा हुआ तो हुआ ।।
छोड़ दें कैसे वो इश्क़ की राह को ।
हुस्न पर दिल दिवाना हुआ तो हुआ ।।
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
वार फिर. कातिलाना हुआ .तो हुआ ।।
फर्क पड़ता कहाँ अब सियासत पे है ।
रिश्वतों पर खुलासा हुआ तो हुआ ।।
ये ज़रुरी था सच की फ़ज़ा के लिए ।
झूठ पर जुल्म ढाना हुआ तो हुआ ।।
आप आये यहाँ तीरगी खो गयी ।
मेरे घर में उजाला हुआ तो हुआ ।।
हिज्र के दौर में हम सँभलते रहे ।
आपके बिन गुजारा हुआ तो हुआ ।।
मुझको मालूम था तीर तरकश् में है।
आप का मैं निशाना हुआ तो हुआ ।।
फिक्र उनको नहीं दिल पे गुजरेगी क्या ।
जुल्म इक आशिकाना हुआ तो हुआ ।।
याद आईं हैं जब उसकी रानाइयाँ ।
इश्क़ पर फिर तराना हुआ तो हुआ ।।
कैसे कह दूं भला बेवफा मैं उसे ।
वक्त पर जो सहारा हुआ तो हुआ ।।
कोई परवा न कीजै ज़माने की अब ।
वस्ल का इक इशारा हुआ तो हुआ ।।
छोड़ दें कैसे वो इश्क़ की राह को ।
हुस्न पर दिल दिवाना हुआ तो हुआ ।।
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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