2122 1122 1122 22
जब मुलाकात में सौ बार बहाना आया ।।
कैसे कह दूँ मैं तुझे प्यार निभाना आया ।।
क़ातिले इश्क़ का इल्ज़ाम लगा जब तुम पर ।
पैरवी करने यहां सारा ज़माना आया ।।
आज की शाम तेरी बज़्म में हंगामा है।
मुद्दतों बाद जो मौसम ये सुहाना आया ।।
रिन्द की तिश्नगी से रूबरू था तू साकी ।
और इल्जाम है तुझको न पिलाना आया ।।
उसकी ख़ामोश मुहब्बत पे है चर्चा इतनी ।
राज उल्फ़त का उसे कैसे छुपाना ।।
गुफ्तगूं होने लगी शह्र के बाजारों में ।
मेरे लब पे जो तेरा एक तराना आया ।।
इतना मासूम न समझो वो जवां है यारो ।
वक्त के साथ उसे तीर चलाना आया ।।
मुस्कुराते हैं यहां लोग उन्हीं पर अक्सर ।
फिक्र जिनको न अभी तक है उड़ाना आया ।।
शोर बरपा है सियासत के गुनहगारों पर ।
जब से संसद में उसे मुद्दा उठाना आया ।।
लूट लेता है तू कानून बनाकर मुझको ।
तेरे हिस्से में मेरे घर का खज़ाना आया ।।
फ़लसफा कुछ तू सुना जंगे हुनर का उनको ।
जिनकी आंखों को फ़क़त अश्क़ बहाना आया ।।
-डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
जब मुलाकात में सौ बार बहाना आया ।।
कैसे कह दूँ मैं तुझे प्यार निभाना आया ।।
क़ातिले इश्क़ का इल्ज़ाम लगा जब तुम पर ।
पैरवी करने यहां सारा ज़माना आया ।।
आज की शाम तेरी बज़्म में हंगामा है।
मुद्दतों बाद जो मौसम ये सुहाना आया ।।
रिन्द की तिश्नगी से रूबरू था तू साकी ।
और इल्जाम है तुझको न पिलाना आया ।।
उसकी ख़ामोश मुहब्बत पे है चर्चा इतनी ।
राज उल्फ़त का उसे कैसे छुपाना ।।
गुफ्तगूं होने लगी शह्र के बाजारों में ।
मेरे लब पे जो तेरा एक तराना आया ।।
इतना मासूम न समझो वो जवां है यारो ।
वक्त के साथ उसे तीर चलाना आया ।।
मुस्कुराते हैं यहां लोग उन्हीं पर अक्सर ।
फिक्र जिनको न अभी तक है उड़ाना आया ।।
शोर बरपा है सियासत के गुनहगारों पर ।
जब से संसद में उसे मुद्दा उठाना आया ।।
लूट लेता है तू कानून बनाकर मुझको ।
तेरे हिस्से में मेरे घर का खज़ाना आया ।।
फ़लसफा कुछ तू सुना जंगे हुनर का उनको ।
जिनकी आंखों को फ़क़त अश्क़ बहाना आया ।।
-डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें