2122 1212 22
दरमियाँ हुस्न पर्दा दारी है ।
कैसे कह दूँ कि बेक़रारी है ।।
कौन कहता बहुत ख़फ़ा हैं वो ।
आना जाना तो उनका जारी है ।।
ये बताता है नूर चेहरे का ।
रात उसने कहाँ गुजारी है ।।
कैसे कर लूं यकीन मैं तुम पर ।
साफ नीयत कहाँ तुम्हारी है ।।
अब तलक होश में नहीं हो तुम ।
आंख में इश्क़ की खुमारी है ।।
दाद किस्मत की उसके देता हूँ ।
जुल्फ जिसने तेरी सँवारी है ।।
आप ऐसे क्यूँ बात करते हैं ।
जैसे मुझ पर कोई उधारी है ।।
अब खजाना वहाँ से निकलेगा ।
रोज मिलता जहाँ भिखारी है ।।
शर्त वह फिर लगा के हारेगा ।
फ़ितरते इश्क़ तो जुआरी है ।।
ऐ कबूतर जरा सँभल के उड़ ।
देखता अब तुझे शिकारी है ।।
वोट की ख़्वाहिशें जरा देखो ।
कोई नेता बना मदारी है ।।
हिज्र में अश्क़ बह गए इतने ।
अब तलक वो नदी तो खारी है ।।
मौत से कौन बच सका यारो ।
आज हम कल तुम्हारी बारी है ।।
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
दरमियाँ हुस्न पर्दा दारी है ।
कैसे कह दूँ कि बेक़रारी है ।।
कौन कहता बहुत ख़फ़ा हैं वो ।
आना जाना तो उनका जारी है ।।
ये बताता है नूर चेहरे का ।
रात उसने कहाँ गुजारी है ।।
कैसे कर लूं यकीन मैं तुम पर ।
साफ नीयत कहाँ तुम्हारी है ।।
अब तलक होश में नहीं हो तुम ।
आंख में इश्क़ की खुमारी है ।।
दाद किस्मत की उसके देता हूँ ।
जुल्फ जिसने तेरी सँवारी है ।।
आप ऐसे क्यूँ बात करते हैं ।
जैसे मुझ पर कोई उधारी है ।।
अब खजाना वहाँ से निकलेगा ।
रोज मिलता जहाँ भिखारी है ।।
शर्त वह फिर लगा के हारेगा ।
फ़ितरते इश्क़ तो जुआरी है ।।
ऐ कबूतर जरा सँभल के उड़ ।
देखता अब तुझे शिकारी है ।।
वोट की ख़्वाहिशें जरा देखो ।
कोई नेता बना मदारी है ।।
हिज्र में अश्क़ बह गए इतने ।
अब तलक वो नदी तो खारी है ।।
मौत से कौन बच सका यारो ।
आज हम कल तुम्हारी बारी है ।।
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें