यह ख़बर इज़्तिराब की सी है ।
बात जब इंकलाब की सी है ।।
वह बगावत पे आज उतरेगा ।
उसकी आदत नवाब की सी है ।।
हम सफ़र ढूढना बहुत मुश्किल ।
सोच जब इंतखाब की सी है ।।
देखकर जिसको बेख़ुदी में हूँ ।
उसकी फ़ितरत शराब की सी है ।।
आ रहे रात में सनम शायद ।
रोशनी आफ़ताब की सी है ।।
रोज पढ़ता हूँ उसको शिद्द्त से ।
वो जो मेरी किताब की सी है ।।
उसकी ख़ुश्बू बता रही मुझको ।
पंखुरी वह गुलाब की सी है ।।
हिज्र में अश्क़ इस तरह बहते ।
धार कुछ तो "चिनाब" की सी है ।।
कुछ तो होगी अना की फितरत भी ।
जो ग़ज़ल महताब की सी है ।।
उसके चहरे से हट गई देखो ।
ओढ़नी जो नक़ाब की सी है ।।
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
बात जब इंकलाब की सी है ।।
वह बगावत पे आज उतरेगा ।
उसकी आदत नवाब की सी है ।।
हम सफ़र ढूढना बहुत मुश्किल ।
सोच जब इंतखाब की सी है ।।
देखकर जिसको बेख़ुदी में हूँ ।
उसकी फ़ितरत शराब की सी है ।।
आ रहे रात में सनम शायद ।
रोशनी आफ़ताब की सी है ।।
रोज पढ़ता हूँ उसको शिद्द्त से ।
वो जो मेरी किताब की सी है ।।
उसकी ख़ुश्बू बता रही मुझको ।
पंखुरी वह गुलाब की सी है ।।
हिज्र में अश्क़ इस तरह बहते ।
धार कुछ तो "चिनाब" की सी है ।।
कुछ तो होगी अना की फितरत भी ।
जो ग़ज़ल महताब की सी है ।।
उसके चहरे से हट गई देखो ।
ओढ़नी जो नक़ाब की सी है ।।
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें