212 212 212 212
क्यूँ हमें बारहा सिसकियां चाहिए ।
और उनको बड़ी कुर्सियां चाहिए ।।
देश ख़ामोश कब तक रहेगा यहां ।
और कितनी अभी अर्थियां चाहिए ।।
जो वतन को मुहब्बत का पैगाम दें ।
इस तरह मुल्क़ में बस्तियां चाहिए।।
बच न जाए कहीं कातिलों का जहां ।
जंग की अब हमें झलकियां चाहिए ।।
सिर्फ अखबार तक आपकी है नज़र ।
आपको तो बहुत सुर्खियाँ चाहिए ।।
वो समझते हैं बारूद के शब्द को ।
हाथ में अब नहीं तख्तियां चाहिए ।।
चन्द गुंजाइशें क्यूँ बचें बात की ।
बंद हमको सभी खिड़कियाँ चाहिए ।।
अब शराफ़त की बातें बहुत हो चुकीं।
दुश्मनी आपके दरमियाँ चाहिए ।।
कुछ तो करके दिखाएँ वतन को जरा ।
अब नहीं आपकी धमकियाँ चाहिए ।।
पीस का तमगा बेशक़ मुबारक तुम्हें ।
पर हमें जीत की बाजियाँ चाहिये ।।
-डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
क्यूँ हमें बारहा सिसकियां चाहिए ।
और उनको बड़ी कुर्सियां चाहिए ।।
देश ख़ामोश कब तक रहेगा यहां ।
और कितनी अभी अर्थियां चाहिए ।।
जो वतन को मुहब्बत का पैगाम दें ।
इस तरह मुल्क़ में बस्तियां चाहिए।।
बच न जाए कहीं कातिलों का जहां ।
जंग की अब हमें झलकियां चाहिए ।।
सिर्फ अखबार तक आपकी है नज़र ।
आपको तो बहुत सुर्खियाँ चाहिए ।।
वो समझते हैं बारूद के शब्द को ।
हाथ में अब नहीं तख्तियां चाहिए ।।
चन्द गुंजाइशें क्यूँ बचें बात की ।
बंद हमको सभी खिड़कियाँ चाहिए ।।
अब शराफ़त की बातें बहुत हो चुकीं।
दुश्मनी आपके दरमियाँ चाहिए ।।
कुछ तो करके दिखाएँ वतन को जरा ।
अब नहीं आपकी धमकियाँ चाहिए ।।
पीस का तमगा बेशक़ मुबारक तुम्हें ।
पर हमें जीत की बाजियाँ चाहिये ।।
-डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
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